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This Article is From Dec 10, 2022

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमेरिका और आयरलैंड के प्रस्ताव से भारत ने बनाई दूरी, पाकिस्तान की वजह से किया ऐसा फैसला

शुक्रवार को पेश इस प्रस्ताव का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 15 में से 14 देशों ने समर्थन किया. सिर्फ भारत ही अनुपस्थित रहा. प्रस्ताव पारित होने के बाद अमेरिका ने कहा कि यह प्रस्ताव अनगिनत लोगों का जीवन बचाएगा.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमेरिका और आयरलैंड के प्रस्ताव से भारत ने बनाई दूरी, पाकिस्तान की वजह से किया ऐसा फैसला

अमेरिका और आयरलैंड की तरफ से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लाए गए एक प्रस्ताव से भारत दूरी बनाते हुए अनुपस्थित हो गया. अमेरिका और आयरलैंड ने प्रतिबंधित किए गए देशों में मानवीय सहायता की छूट देने का प्रस्ताव पास किया था.

प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान पाकिस्तान का जिक्र करते हुए भारत यह कहकर अनुपस्थित हो गया कि प्रतिबंधित देश खासकर उसके पड़ोसी देश के आतंकवादी संगठनों को इस प्रस्ताव से फंड इकट्ठा करने और आतंकवादियों की नई बहाली करने में मदद मिल सकती है.

अमेरिका और आयरलैंड की तरफ से  पेश प्रस्ताव में किसी भी देश की मानवीय सहायता के समय फंड और अन्य वित्तीय संपत्तियों के अलावा वस्तुओं और सेवाओं का भुगतान आवश्यक है और यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लगाए गए प्रतिबंध समिति और फ्रीज संपत्ति का उल्लंघन नहीं माना जाएगा.

शुक्रवार को पेश इस प्रस्ताव का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 15 में से 14 देशों ने समर्थन किया. सिर्फ भारत ही अनुपस्थित रहा. प्रस्ताव पारित होने के बाद अमेरिका ने कहा कि यह प्रस्ताव अनगिनत लोगों का जीवन बचाएगा.

परिषद की अध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने अपने देश की तरफ से मतदान की व्याख्या करते हुए कहा कि "हमारी चिंताएं इस तरह के मानवीय सहायता का पूरा फायदा उठाने वाले आतंकवादी समूहों के सिद्ध उदाहरणों से उत्पन्न होती हैं, और 1267 प्रतिबंध समिति सहित प्रतिबंध व्यवस्थाओं का यह मज़ाक बनाते हैं." कंबोज ने पाकिस्तान और उसकी सरजमीं पर मौजूद आतंकी संगठनों का भी परोक्ष रूप से जिक्र किया.

रुचिरा कंबोज ने जमात-उद-दावा के एक स्पष्ट संदर्भ में कहा, "हमारे पड़ोस में आतंकवादी समूहों के कई मामले सामने आए हैं, जिनमें इस परिषद द्वारा सूचीबद्ध आतंकवादी समूह भी शामिल हैं, जिन्होंने इन प्रतिबंधों से बचने के लिए खुद को मानवीय संगठनों और नागरिक समाज समूहों के रूप में फिर से अवतार लिया है. जमात-उद-दावा खुद को मानवीय सहायता वाला संगठन कहता है, लेकिन व्यापक रूप से यह लश्कर-ए-तैयबा (LET) के लिए एक फ्रंट संगठन के रूप में देखा जाता है."

रुचिरा कंबोज ने कहा, "फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन (एफआईएफ) आतंकवादी संगठनों जेयूडी और लश्कर द्वारा संचालित एक धर्मार्थ संस्था और आतंकवादी समूह जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) द्वारा समर्थित अल रहमत ट्रस्ट भी पाकिस्तान में स्थित हैं. ये आतंकवादी संगठन धन जुटाने और लड़ाकों की भर्ती के लिए मानवीय सहायता की छत्रछाया का उपयोग करते हैं."

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