पीएम मोदी की अमेरिकी यात्रा के संदर्भ में इसे बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है
वाशिंगटन:
दुनिया की प्रमुख मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) के सदस्यों ने भारत को भी इसमें शामिल करने पर सहमति जताई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा के संदर्भ में इसे बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
एमटीसीआर के किसी भी सदस्य नहीं जताई आपत्ति
इस मामले से सीधे तौर पर जुड़े राजनयिकों ने बताया कि 34 देशों के इस समूह में भारत को शामिल करने के प्रस्ताव पर किसी भी सदस्य ने आपत्ति नहीं जताई। भारत के इस समूह में शामिल होने से अमेरिका से ड्रोन विमान खरीदने तथा अपने उच्च प्रौद्योगिकी वाले प्रक्षेपास्त्रों का मित्र देशों को निर्यात करने के उसके प्रयासों को बल मिलेगा।
एमटीसीआर की घोषणा के बाद भारत और अमेरिका भारतीय सेना को प्रीडेटर श्रृंखला के मानवरहित विमान बेचने से जुड़ी अपनी चर्चा को तेज कर सकते हैं। इसके अलावा भारत अब ब्रह्मोस जैसी अपने उच्च तकनीकी मिसाइलों को मित्र देशों को बेच देगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने किया था कड़ा समर्थन
इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एमटीसीआर और तीन अन्य निर्यात नियंत्रण व्यवस्था- ऑस्ट्रेलिया समूह, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह और वासेनार समझौते में भारत की सदस्यता का कड़ा समर्थन किया था। वहीं भारत के परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का सदस्य बनने के मामले में ओबामा प्रशासन फिलहाल सब अच्छा रहने की ही कामना कर रहा है। चीन इस समूह में भारत की सदस्यता का खुलकर विरोध कर रहा है।
अप्रैल 1987 में स्थापित ऐच्छिक एमटीसीआर का मकसद उन बैलिस्टिक मिसाइलों और दूसरे ऐतिहासिक आपूर्ति तंत्रों के प्रसार को सीमित करना है, जिनका इस्तेमाल रासायनिक, जैविक और परमाणु हमलों के लिए किया जा सकता है। एमटीसीआर अपने 34 सदस्यों से अपील करता है कि 500 किलोग्राम के पेलोड को कम से कम 300 किलोमीटर तक ले जा सकने वाली मिसाइलों और संबधित प्रौद्योगिकियों को और सामूहिक तबाही वाले किसी भी हथियार की आपूर्ति बंद करें। इस समूह में देश के अधिकतर प्रमुख मिसाइल निर्माता शामिल है। वर्ष 2008 के बाद से भारत उन पांच देशों में से एक है, जो एकपक्षीय ढंग से एमटीसीआर के समर्थक हैं।
एमटीसीआर के किसी भी सदस्य नहीं जताई आपत्ति
इस मामले से सीधे तौर पर जुड़े राजनयिकों ने बताया कि 34 देशों के इस समूह में भारत को शामिल करने के प्रस्ताव पर किसी भी सदस्य ने आपत्ति नहीं जताई। भारत के इस समूह में शामिल होने से अमेरिका से ड्रोन विमान खरीदने तथा अपने उच्च प्रौद्योगिकी वाले प्रक्षेपास्त्रों का मित्र देशों को निर्यात करने के उसके प्रयासों को बल मिलेगा।
एमटीसीआर की घोषणा के बाद भारत और अमेरिका भारतीय सेना को प्रीडेटर श्रृंखला के मानवरहित विमान बेचने से जुड़ी अपनी चर्चा को तेज कर सकते हैं। इसके अलावा भारत अब ब्रह्मोस जैसी अपने उच्च तकनीकी मिसाइलों को मित्र देशों को बेच देगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने किया था कड़ा समर्थन
इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एमटीसीआर और तीन अन्य निर्यात नियंत्रण व्यवस्था- ऑस्ट्रेलिया समूह, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह और वासेनार समझौते में भारत की सदस्यता का कड़ा समर्थन किया था। वहीं भारत के परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का सदस्य बनने के मामले में ओबामा प्रशासन फिलहाल सब अच्छा रहने की ही कामना कर रहा है। चीन इस समूह में भारत की सदस्यता का खुलकर विरोध कर रहा है।
अप्रैल 1987 में स्थापित ऐच्छिक एमटीसीआर का मकसद उन बैलिस्टिक मिसाइलों और दूसरे ऐतिहासिक आपूर्ति तंत्रों के प्रसार को सीमित करना है, जिनका इस्तेमाल रासायनिक, जैविक और परमाणु हमलों के लिए किया जा सकता है। एमटीसीआर अपने 34 सदस्यों से अपील करता है कि 500 किलोग्राम के पेलोड को कम से कम 300 किलोमीटर तक ले जा सकने वाली मिसाइलों और संबधित प्रौद्योगिकियों को और सामूहिक तबाही वाले किसी भी हथियार की आपूर्ति बंद करें। इस समूह में देश के अधिकतर प्रमुख मिसाइल निर्माता शामिल है। वर्ष 2008 के बाद से भारत उन पांच देशों में से एक है, जो एकपक्षीय ढंग से एमटीसीआर के समर्थक हैं।
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