वाशिंगटन:
मुंबई में जन्मा एक मुस्लिम पुलिस अधिकारी अमेरिका के इंडियानापोलिस शहर के सबसे बड़े हिन्दू मंदिर का सुरक्षा प्रभारी है। यह चुनाव से पहले धार्मिक असहिष्णुता के बढ़ने के बीच धर्मों के बीच सहयोग और सामाजिक सद्भाव का उदाहरण है।
स्थानीय पुलिस विभाग के लेफ्टिनेंट जावेद खान ताइक्वांडो में ब्लैक ब्लेट और किक बॉक्सिंग में चैंपियन हैं। वह मंदिर के सुरक्षा निदेशक हैं। मुंबई में जन्मे और पुणे के लोनावला में पले बढ़े खान को मंदिर में आने वाले श्रद्धालु मंदिर का एक अभिन्न हिस्सा मानते हैं।
खान ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘‘हम सब एक हैं, यही मेरा संदेश है। हम सब ईश्वर की संतान हैं। एक ही ईश्वर है जिसकी हम अलग अलग नाम और रूपों में पूजा करते हैं।’’ खान 2001 में इंडियानापोलिस में आ बसे थे। वह इससे एक साल पहले अमेरिका आए थे। वह विभिन्न मार्शल आर्ट चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए 1986 से भारत से कई बार अमेरिका गए थे।
उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले उनकी बेटी ने इस हिन्दू मंदिर में एक तेलुगू लड़के से शादी की जिसके बाद वह मंदिर में लोगों को जानने लगे। खान ने कहा, ‘‘जल्द ही मुझे लगा कि वहां सुरक्षा की जरूरत है। फिर मैंने अपनी सेवाएं देने की पेशकश की। मैं अब मंदिर का सुरक्षा निदेशक हूं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जब भी मैं मंदिर जाता हूं, मुझे नहीं लगता कि मैं अमेरिका में हूं, मुझे लगता है कि मैं भारत में हूं।’’ मंदिर के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ. मोहन राजदान ने कहा कि मंदिर में आने वाला हर व्यक्ति खान को जानता है और उनका सम्मान करता है। उन्होंने कहा, ‘‘आज के समय में ऐसा (किसी मुस्लिम को मंदिर की रक्षा करने का) उदाहरण नहीं दिखता। इससे एक बड़ा संदेश मिलता है।’’
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
स्थानीय पुलिस विभाग के लेफ्टिनेंट जावेद खान ताइक्वांडो में ब्लैक ब्लेट और किक बॉक्सिंग में चैंपियन हैं। वह मंदिर के सुरक्षा निदेशक हैं। मुंबई में जन्मे और पुणे के लोनावला में पले बढ़े खान को मंदिर में आने वाले श्रद्धालु मंदिर का एक अभिन्न हिस्सा मानते हैं।
खान ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘‘हम सब एक हैं, यही मेरा संदेश है। हम सब ईश्वर की संतान हैं। एक ही ईश्वर है जिसकी हम अलग अलग नाम और रूपों में पूजा करते हैं।’’ खान 2001 में इंडियानापोलिस में आ बसे थे। वह इससे एक साल पहले अमेरिका आए थे। वह विभिन्न मार्शल आर्ट चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए 1986 से भारत से कई बार अमेरिका गए थे।
उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले उनकी बेटी ने इस हिन्दू मंदिर में एक तेलुगू लड़के से शादी की जिसके बाद वह मंदिर में लोगों को जानने लगे। खान ने कहा, ‘‘जल्द ही मुझे लगा कि वहां सुरक्षा की जरूरत है। फिर मैंने अपनी सेवाएं देने की पेशकश की। मैं अब मंदिर का सुरक्षा निदेशक हूं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जब भी मैं मंदिर जाता हूं, मुझे नहीं लगता कि मैं अमेरिका में हूं, मुझे लगता है कि मैं भारत में हूं।’’ मंदिर के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ. मोहन राजदान ने कहा कि मंदिर में आने वाला हर व्यक्ति खान को जानता है और उनका सम्मान करता है। उन्होंने कहा, ‘‘आज के समय में ऐसा (किसी मुस्लिम को मंदिर की रक्षा करने का) उदाहरण नहीं दिखता। इससे एक बड़ा संदेश मिलता है।’’
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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