बीजिंग:
विदेश मंत्री एसएम कृष्णा के दौरे से ठीक एक दिन पहले चीन के एक सरकारी अखबार ने दोस्ताना रवैया दिखाते हुए सरकार से कहा है कि वह भारत के प्रति एक सुस्पष्ट लक्ष्यों वाली नीति बनाए और ध्यान में रखे कि भारत ने क्षेत्र में अमेरिका के साथ मित्रता करने में राजनीतिक स्वतंत्रता का चयन किया है।
चीन के सत्तारूढ़ दल ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी)’ की ओर से प्रकाशित कट्टरपंथी अंग्रेजी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स डेली’ के चाइनीज संस्करण ‘हुआनक्वी शिआबो’ का कहना है कि चीन की सरकार को मित्रता को मजबूत करने के लिए भारत के प्रति एक सुस्पष्ट लक्ष्यों वाली नीति बनानी चाहिए।
अखबार का कहना है कि नयी दिल्ली की स्वतंत्र विदेश नीति और हाल ही में ‘दक्षिण चीन सागर’ में तेल शोधन से भारत द्वारा अपना हाथ खिंचने आदि को ध्यान में रखकर नीति का निर्माण होना चाहिए।
अखबार ने लिखा है, ‘‘लंबे समय से भारत चीन की विदेश नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं रहा है और चीन ने अभी तक भारत के प्रति अपनी नीतियों का सुस्पष्ट लक्ष्य निर्धारित नहीं किया है।’’ ‘स्पष्ट होने चाहिए भारत के प्रति चीन के रणनीतिक लक्ष्य’ नामक शीषर्क से लिखे लेख में अखबार में कहा है, ‘‘वर्तमान में जब हिन्द महासागर में भारतीय सेना की गतिविधियां बढ़ रही हैं और वे पूर्व की तरफ रुख कर रहे हैं दोनों देशों के बीच पारस्परिक विश्वास की कमी होने पर दोनों गलत नीतियां बना सकते हैं।’’
अपने राष्ट्रवादी झुकाव के लिए प्रसिद्ध इस अखबार में यह खबर कृष्णा के दौरे के एक दिन पहले प्रकाशित हुई है। कृष्णा चीन के शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) में भाग लेने यहां आ रहे हैं। भारत इसमें पर्यवेक्षक है। सम्मेलन यहां छह और सात जून को होना है।
इस लेख के प्रकाशित होने से दो दिन पहले ही अमेरिकी रक्षा मंत्री लियोन पेनेटा ने सिंगापुर में घोषणा की थी कि अमेरिका एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 60 प्रतिशत नौसेना की तैनाती करेगा। लेख में कहा गया है कि अमेरिका की एशिया-प्रशांत नीति इस बात पर निर्भर करती है कि वह क्षेत्र के महत्वपूर्ण देशों को कैसे प्रभावित करके उनका समर्थन हासिल करता है।
उसका कहना है कि अमेरिका के प्रति झुकाव दिखाने वाले कई अन्य एशियाई देशों से उलट भारत कभी अमेरिका के साथ गुटबाजी में नहीं पड़ा। पारंपरिक तौर पर भारत कभी गुटबाजी में नहीं पड़ा और वह हमेशा राजनीतिक रूप से स्वतंत्र रहा है। लेख में कहा गया है, ‘‘भारत अमेरिका के गुट में शामिल नहीं हो रहा है यह चीन के लिए लाभप्रद है। चीन और भारत को मित्र बन जाना चाहिए।’’ लेख में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत का सैन्यवाद का इतिहास नहीं रहा है और वह कभी ‘सुपर पावर’ नहीं बनना चाहता है। उसका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अक्सर कहा जाता है कि भारत की महत्वकांक्षा दक्षिणी कोरिया और जापान से छोटी है। इसलिए चीन ने भारत को कभी खतरा नहीं माना है।
चीन के सत्तारूढ़ दल ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी)’ की ओर से प्रकाशित कट्टरपंथी अंग्रेजी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स डेली’ के चाइनीज संस्करण ‘हुआनक्वी शिआबो’ का कहना है कि चीन की सरकार को मित्रता को मजबूत करने के लिए भारत के प्रति एक सुस्पष्ट लक्ष्यों वाली नीति बनानी चाहिए।
अखबार का कहना है कि नयी दिल्ली की स्वतंत्र विदेश नीति और हाल ही में ‘दक्षिण चीन सागर’ में तेल शोधन से भारत द्वारा अपना हाथ खिंचने आदि को ध्यान में रखकर नीति का निर्माण होना चाहिए।
अखबार ने लिखा है, ‘‘लंबे समय से भारत चीन की विदेश नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं रहा है और चीन ने अभी तक भारत के प्रति अपनी नीतियों का सुस्पष्ट लक्ष्य निर्धारित नहीं किया है।’’ ‘स्पष्ट होने चाहिए भारत के प्रति चीन के रणनीतिक लक्ष्य’ नामक शीषर्क से लिखे लेख में अखबार में कहा है, ‘‘वर्तमान में जब हिन्द महासागर में भारतीय सेना की गतिविधियां बढ़ रही हैं और वे पूर्व की तरफ रुख कर रहे हैं दोनों देशों के बीच पारस्परिक विश्वास की कमी होने पर दोनों गलत नीतियां बना सकते हैं।’’
अपने राष्ट्रवादी झुकाव के लिए प्रसिद्ध इस अखबार में यह खबर कृष्णा के दौरे के एक दिन पहले प्रकाशित हुई है। कृष्णा चीन के शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) में भाग लेने यहां आ रहे हैं। भारत इसमें पर्यवेक्षक है। सम्मेलन यहां छह और सात जून को होना है।
इस लेख के प्रकाशित होने से दो दिन पहले ही अमेरिकी रक्षा मंत्री लियोन पेनेटा ने सिंगापुर में घोषणा की थी कि अमेरिका एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 60 प्रतिशत नौसेना की तैनाती करेगा। लेख में कहा गया है कि अमेरिका की एशिया-प्रशांत नीति इस बात पर निर्भर करती है कि वह क्षेत्र के महत्वपूर्ण देशों को कैसे प्रभावित करके उनका समर्थन हासिल करता है।
उसका कहना है कि अमेरिका के प्रति झुकाव दिखाने वाले कई अन्य एशियाई देशों से उलट भारत कभी अमेरिका के साथ गुटबाजी में नहीं पड़ा। पारंपरिक तौर पर भारत कभी गुटबाजी में नहीं पड़ा और वह हमेशा राजनीतिक रूप से स्वतंत्र रहा है। लेख में कहा गया है, ‘‘भारत अमेरिका के गुट में शामिल नहीं हो रहा है यह चीन के लिए लाभप्रद है। चीन और भारत को मित्र बन जाना चाहिए।’’ लेख में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत का सैन्यवाद का इतिहास नहीं रहा है और वह कभी ‘सुपर पावर’ नहीं बनना चाहता है। उसका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अक्सर कहा जाता है कि भारत की महत्वकांक्षा दक्षिणी कोरिया और जापान से छोटी है। इसलिए चीन ने भारत को कभी खतरा नहीं माना है।
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