पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (PTI : फाइल फोटो)
बीजिंग:
एनएसजी सदस्यता में रोड़ा डालने के भारत के आरोप का चीन ने यह कहकर जवाब दिया है कि भारत अभी भी 1962 के युद्ध की मानसिकता में 'अटका' हुआ है। चीन द्वारा भारत की एनएसजी सदस्यता को बाधित करने को लेकर नयी दिल्ली की कड़ी प्रतिक्रियाओं के बीच एक चीनी सरकारी समाचार पत्र ने यह बात कही है। 'ग्लोबल टाइम्स' में छपे इस लेख में अपील की गई है कि बीजिंग के रुख का अधिक तथ्यपरक मूल्यांकन किया जाए।
परिणामों को स्वीकार करना मुश्किल
चीनी मीडिया के मुताबिक 'ऐसा प्रतीत हो रहा है कि एनएसजी में भारत के प्रवेश पाने में असफल रहने के मद्देनजर भारतीय जनता के लिए सियोल में हुई बैठक के परिणामों को स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है।' इस लेख का शीर्षक था - चीन, भारत को सहयोग के लिए पुराने रुख़ को त्याग देना चाहिए।
इसमें कहा गया है कि 'कई भारतीय मीडिया संस्थान केवल चीन पर दोष मढ़ रहे हैं। वे आरोप लगा रहे हैं कि इस विरोध के पीछे चीन के भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक उद्देश्य हैं। कुछ लोग चीन और चीनी उत्पादों के खिलाफ विरोध करने के लिए सड़कों पर भी उतर आए हैं और कुछ समीक्षकों ने कहा है कि इस घटना से भारत और चीन के संबंध ठंडे पड़ जाएंगे।
रणनीतिक फैसलों में बड़ा अंतर
इस लेख में कहा गया है कि भारत 1960 के दशक में चीन के साथ हुए युद्ध के साये में ‘अब भी अटका हुआ’लगता है और कई लोग अब भी उसी ‘पुराने भूराजनीतिक दृष्टिकोण’को पकड़े हुए हैं कि चीन भारत को विकास करते नहीं देखना चाहता। लेख में कहा गया है कि‘नयी दिल्ली ने बीजिंग को संभवत: गलत समझ लिया है, जिसके कारण इसके रणनीतिक फैसलों में बड़ा अंतर पैदा हो सकता है। दरअसल चीन अब भारत को केवल राजनीतिक ही नहीं, बल्कि उससे ज्यादा आर्थिक परिप्रेक्ष्य में देखता है।’
एनएसजी में प्रवेश के लिए नयी दिल्ली के पिछले महीने जोर लगाने के मद्देनजर ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने कई लेख छापे हैं जिनमें यह दावा किया गया है कि चीन का रुख़ नैतिक आधार पर सही है और पश्चिम ने भारत को ‘शह' दी है। बता दें कि ‘ग्लोबल टाइम्स’ सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के प्रकाशनों का हिस्सा है। भारत के प्रवेश को रोकने के चीन के रुख को सही ठहराते हुए आज के लेख में भी वही तर्क दिया गया जो अक्सर बार बार दिया जाता रहा है कि एनएसजी में शामिल होने के लिए भारत का एनपीटी पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य है और नए सदस्यों के प्रवेश के लिए सर्वसम्मति आवश्यक है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
परिणामों को स्वीकार करना मुश्किल
चीनी मीडिया के मुताबिक 'ऐसा प्रतीत हो रहा है कि एनएसजी में भारत के प्रवेश पाने में असफल रहने के मद्देनजर भारतीय जनता के लिए सियोल में हुई बैठक के परिणामों को स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है।' इस लेख का शीर्षक था - चीन, भारत को सहयोग के लिए पुराने रुख़ को त्याग देना चाहिए।
इसमें कहा गया है कि 'कई भारतीय मीडिया संस्थान केवल चीन पर दोष मढ़ रहे हैं। वे आरोप लगा रहे हैं कि इस विरोध के पीछे चीन के भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक उद्देश्य हैं। कुछ लोग चीन और चीनी उत्पादों के खिलाफ विरोध करने के लिए सड़कों पर भी उतर आए हैं और कुछ समीक्षकों ने कहा है कि इस घटना से भारत और चीन के संबंध ठंडे पड़ जाएंगे।
रणनीतिक फैसलों में बड़ा अंतर
इस लेख में कहा गया है कि भारत 1960 के दशक में चीन के साथ हुए युद्ध के साये में ‘अब भी अटका हुआ’लगता है और कई लोग अब भी उसी ‘पुराने भूराजनीतिक दृष्टिकोण’को पकड़े हुए हैं कि चीन भारत को विकास करते नहीं देखना चाहता। लेख में कहा गया है कि‘नयी दिल्ली ने बीजिंग को संभवत: गलत समझ लिया है, जिसके कारण इसके रणनीतिक फैसलों में बड़ा अंतर पैदा हो सकता है। दरअसल चीन अब भारत को केवल राजनीतिक ही नहीं, बल्कि उससे ज्यादा आर्थिक परिप्रेक्ष्य में देखता है।’
एनएसजी में प्रवेश के लिए नयी दिल्ली के पिछले महीने जोर लगाने के मद्देनजर ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने कई लेख छापे हैं जिनमें यह दावा किया गया है कि चीन का रुख़ नैतिक आधार पर सही है और पश्चिम ने भारत को ‘शह' दी है। बता दें कि ‘ग्लोबल टाइम्स’ सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के प्रकाशनों का हिस्सा है। भारत के प्रवेश को रोकने के चीन के रुख को सही ठहराते हुए आज के लेख में भी वही तर्क दिया गया जो अक्सर बार बार दिया जाता रहा है कि एनएसजी में शामिल होने के लिए भारत का एनपीटी पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य है और नए सदस्यों के प्रवेश के लिए सर्वसम्मति आवश्यक है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं