
हलचल, संकट का अंदेशा और एक बार फिर हिलती कुर्सी.. बांग्लादेश वक्त के उस मोड़ पर फिर आ खड़ा दिख रहा है, जहां वो साल भर पहले दिख रहा था. पिछले दो-तीन दिनों में, मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार को कई चुनौतियों (Bangladesh crisis) का सामना करना पड़ा है, जिनमें से एक प्रमुख चुनौती बांग्लादेश की सेना भी दिख रही है. बुधवार (21 मई) को बांग्लादेश के सेनाध्यक्ष (सीओएएस) जनरल वकार-उज-जमान ने अपने अधिकारियों को भाषण देकर वहां की राजनीति को सरगर्म कर दिया है. यह ऐसे समय में हुआ जब बांग्लादेश सेना और यूनुस शासन के बीच देश में चुनाव, कानून व्यवस्था की स्थिति और म्यांमार के रखाइन राज्य में एक मानवीय गलियारे के निर्माण को लेकर तनाव बढ़ गया है.
यूनुस ने बढ़ती राजनीतिक अशांति के बीच अपने पद से इस्तीफा देने पर विचार किया है. मुख्य सलाहकार के आधिकारिक आवास जमुना स्टेट गेस्ट हाउस में गुरुवार शाम को एक बैठक हुई, जिसमें यूनुस ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए दावा किया कि उनका पद पर बने रहने का कोई इरादा नहीं है और वह इस्तीफा देना चाहते हैं.
युनूस को सेनाध्यक्ष की दो-टुक और रखाइन कॉरिडोर का मुद्दा
बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार और सेना के बीच दरार की अटकलें बुधवार को तब और गहरा गईं जब सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान ने कहा कि देश में दिसंबर तक चुनाव होने चाहिए. बांग्लादेशी मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ढाका छावनी में एक कार्यक्रम में सेना के अधिकारियों को संबोधित करते हुए जनरल जमान ने कहा कि चुनाव कराने पर उनका रुख नहीं बदलेगा और केवल एक निर्वाचित सरकार ही किसी देश का भविष्य निर्धारित कर सकती है.
यहां गौर करने वाली बात है कि यूनुस बांग्लादेश में एक अंतरिम सरकार चला रहे हैं. शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में कोई चुनाव नहीं हुआ है. अगली लोकतांत्रिक सरकार के चुने जाने तक ही यूनुस अंतरिम सरकार चलाएंगे. लेकिन उनपर अब यह आरोप लग रहा है कि उनके मन में सत्ता में बने रहने का लालच आ गया है और इसी वजह से वह चुनाव कराने में देरी कर रहे हैं.
प्रस्तावित 'रखाइन कॉरिडोर' बांग्लादेश में सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक बनकर उभरा है. एक तरफ यूनुस इसे बनाने की बात कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ सेनाध्यक्ष जमान ने इस बात पर जोर दिया कि बांग्लादेश सेना ऐसी किसी भी चीज की अनुमति नहीं देगी जो देश की संप्रभुता और भौगोलिक स्थिरता को प्रभावित करेगी. उन्होंने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि अंतरिम सरकार चुनाव तक की गई एक अस्थायी व्यवस्था मात्र है.
सेना प्रमुख ने कहा कि उन्हें किए जा रहे किसी भी सुधार की जानकारी नहीं है क्योंकि इस बारे में उनसे चर्चा नहीं की गई है. विशेषज्ञों ने कहा कि यह टिप्पणी अंतरिम सरकार के चैटोग्राम बंदरगाह पर न्यू मूरिंग कंटेनर टर्मिनल (एनसीटी) के परिचालन नियंत्रण को विदेशी संस्थाओं को ट्रांसफर करने के झुकाव का संकेत देती है. जनरल जमान का कहना है कि "ऐसा निर्णय एक राजनीतिक सरकार द्वारा लिया जाना चाहिए". हालांकि, दूसरी तरफ अंतरिम सरकार ने सेना के साथ मतभेद की खबरों से इनकार किया है.
यहां संकेत साफ मिल रहा है कि बांग्लादेश के सेनाध्यक्ष इस अंतरिम सरकार के साथ तालमेल मिलाकर नहीं चलने वाले. अगर यूनुस की अंतरिम सरकार दिसंबर तक आम चुनाव नहीं कराती है तो स्थिति कोई भी रूप ले सकती है, सेना के हाथों तख्तापलट तक हो सकती है. या पाकिस्तान में जिस तरह आर्मी चीफ आसिम मुनीर का कंट्रोल है, वैसा बांग्लादेश में जनरल वकार-उज-जमान का भी देखने को मिल सकता है. संभावना यह भी है कि अगले कुछ दिन में यूनुस अपना पद छोड़ दें.
चुनाव कराने का मुद्दा
अगस्त 2024 में शेख हसीना को सत्ता से बाहर निकालने का काम बांग्लादेश के छात्र आंदोलन ने किया था. आंदोलन के बाद नाहिद इस्लाम, महफूज आलम और आसिफ साजिब भुइयां सहित कई छात्र नेता अब राजनीतिक नेता बन गए हैं. उन्होंने अब यूनुस के साथ बंद कमरे में चर्चा की. यूनुस ने दावा किया कि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) उन पर चुनाव में देरी करने का आरोप लगा रही है. बीएनपी इस समय बांग्लादेश में बहुत मजबूत स्थिति में है, उसका ज्यूडिशरी से लेकर प्रशासन और सड़क तक पर कंट्रोल है. यूनुस ने कथित तौर पर कहा कि वह ऐसी स्थिति में पक्षपातपूर्ण चुनाव नहीं कराना चाहेंगे, क्योंकि अभी चुनाव हुए तो सरकार बनाने के लिए एक पार्टी का पलड़ा बहुत भारी होगी.
बांग्लादेश में हावी पाकिस्तान समर्थक लॉबी
विश्लेषकों का मानना है कि यूनुस वास्तविक मुद्दों से भटक रहे हैं और आम चुनाव प्रक्रिया में देरी करते दिख रहे हैं. कोई लोकतांत्रिक जनादेश नहीं होने के कारण, छात्र सलाहकारों और पाकिस्तान समर्थक कट्टरपंथी इस्लामी पार्टियों द्वारा समर्थित यूनुस, सुधारों को आगे बढ़ाने की आड़ में बांग्लादेश की राजनीति को खतरे में डाल रहा है.
एक अधिकारी ने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि बिना किसी राजनीतिक जनादेश के, यूनुस लोकतंत्र और सुधारों से बुरी तरह पीछे हट रहे हैं, विपक्षी दलों को तेजी से दबा रहे हैं, असहमति को दबा रहे हैं, मीडिया पर प्रतिबंध लगा रहे हैं और जमात सहित कट्टरपंथी पाकिस्तान समर्थक, इस्लाम समर्थक लॉबी का समर्थन कर रहे हैं."
विशेषज्ञों के अनुसार, लोकतंत्र की आड़ में एक सांप्रदायिक चरमपंथी गठबंधन को वैध बनाने का परोक्ष प्रयास किया जा रहा है. जमात और उसके सहयोगियों सहित कट्टरपंथी इस्लामवादियों का प्राथमिक लक्ष्य किसी भी कीमत पर यूनुस को सत्ता में बनाए रखना है, क्योंकि यूनुस ही अब राज्य तंत्र में फिर से प्रवेश करने की उनकी एकमात्र उम्मीद हैं. हालांकि, पर्यवेक्षकों का मानना है कि यूनुस का सत्ता पर कब्जा करने का सपना तेजी से टूट रहा है.
आतंकवादियों को खुली छूट
यूनुस के शासन में ढाका ने चुपचाप दक्षिण एशिया के कुछ सबसे घातक आतंकवादी संगठनों से जुड़े व्यक्तियों को रिहा किया है, जिनमें जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी), हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी (हूजी), अंसारुल्ला बांग्ला टीम (एबीटी) और हिज्ब-उत-तहरीर शामिल हैं.
इन समूहों को लंबे समय से न केवल बांग्लादेशी सरकार द्वारा बल्कि अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी ढांचे (international counterterrorism frameworks) द्वारा भी ब्लैक लिस्ट में डाल दिया गया है. "राजनीतिक रूप से अपरिपक्व" यूनुस ने वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध सैकड़ों उग्रवादियों को रिहा कर दिया, जिनमें से कई के पास डिजिटल पहुंच, स्लीपर नेटवर्क कनेक्शन और सहानुभूति रखने वाले लोग हैं, जिससे न केवल बांग्लादेश में बल्कि भारत के कमजोर पूर्वोत्तर में भी निष्क्रिय चरमपंथी सेल्स के पुनर्जीवित होने का खतरा है.
एक विश्लेषक ने कहा, "यूनुस स्वतंत्र नहीं हैं, लेकिन पश्चिम और पाकिस्तान समर्थक कट्टरपंथी इस्लामवादियों के कर्जदार हैं. यूनुस के बिना बांग्लादेश को देखना बेहतर होगा, जो मुट्ठी भर लोगों और उन्हें सहारा देने वाले पश्चिम पर अत्यधिक निर्भर हैं. उनके कई मौजूदा फैसलों ने बांग्लादेशी समाज को गहराई से विभाजित कर दिया है. बांग्लादेश को संभालना उनकी क्षमता से परे है."
इनपुट- IANS के लिए बैद्य विकास बसु का आर्टिकल. वे दक्षिण एशिया और यूरेशिया के विशेषज्ञ हैं. वह पहले मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में थे.
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