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अफगानिस्तान से तनाव के बीच अब भारतीय सेना को पाकिस्तानी मुनीर ने दी गीदड़भभकी, जानिए वजह

पाकिस्तान एक नए और खतरनाक दौर में प्रवेश कर रहा है, जहां सत्ता और विदेशी समर्थन के प्रति उसके शासकों का जुनून आखिरकार उस नाज़ुक संतुलन को बिगाड़ सकता है, जिसने देश को टूटने से बचाया है.

अफगानिस्तान से तनाव के बीच अब भारतीय सेना को पाकिस्तानी मुनीर ने दी गीदड़भभकी, जानिए वजह
  • असीम मुनीर ने भारतीय सेना को चेतावनी देते हुए युद्ध में करारा जवाब देने की बात कही है.
  • मुनीर ने भारत के हथियारों से भूगोल बदलने की धमकी दी और परमाणु युद्ध से बचाव की सलाह दी है.
  • पाकिस्तान की सेना धार्मिक कट्टरपंथी समूहों के साथ संघर्ष कर रही है, जिन्हें उसने पहले बढ़ावा दिया था.
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पाकिस्तान के फील्ड मार्शल असीम मुनीर ने भारतीय सेना को गीदड़भभकी दी है. पाकिस्तानी आर्मी के पासिंग आउट परेड में असीम मुनीर ने कहा कि उसकी सेना ने अपनी क्षमता हर युद्ध में दिखाई है. अगर आगे किसी दुश्मन ने पाकिस्तान पर हमला करने की कोशिश की तो उसकी सोच से ज्यादा करारा जवाब दिया जाएगा.

मुनीर ने आगे सीधे भारत का नाम लेकर कहा कि उसके हथियार अब भारत का भूगोल बदल देंगे. ये हमला इतना करारा होगा कि भारत कभी भूल नहीं पाएगा. मैं भारतीय सेना को सलाह और चेतावनी देता हूं कि परमाणु देशों के बीच युद्ध का कोई स्पेस नहीं है. पाकिस्तान के साथ कोर मुद्दों को इंटरनेशनल नियमों के तहत बात कर हल करें. मुनीर ने कहा कि बातचीत बराबरी और इज्जत के साथ होनी चाहिए. हम तुम्हारे उन्मादी भाषणों से नहीं डरेंगे और छोटे स्तर की भी उकसावे की कार्रवाई का भरपूर जवाब देंगे. इतना कहने के बाद मुनीर हांफने लगा. कुछ सांसे लेने के बाद बोला कि अब भारत के हाथ में इस पूरे इलाके की शांति निर्भर है.   

रिपोर्ट में हुआ खुलासा

पाकिस्तानी सेना, जो कभी देश की वैचारिक सीमाओं की रक्षक थी, अब उन्हीं कट्टरपंथी इस्लामी समूहों के साथ संघर्ष कर रही है, जिन्हें उसने बढ़ावा देकर 'भस्मासुर' बनने में मदद की थी. शुक्रवार को सामने आई एक रिपोर्ट में यह बात कही गई. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान की रणनीति में आंतरिक विरोधाभास स्पष्ट हैं, जहां सेना के जनरल पश्चिम को संयम का उपदेश देते हैं और उग्रवाद पर अंकुश लगाने का वादा करते हैं, वहीं दूसरी ओर वे अपने देश में लोकतांत्रिक विरोध को दबाने के लिए धार्मिक राष्ट्रवाद का इस्तेमाल करते हैं.

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'ग्रीक सिटी टाइम्स' की एक रिपोर्ट में बताया गया, "तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) और अन्य इस्लामी समूहों के हाल में किए गए हिंसक विरोध प्रदर्शनों से पता चलता है कि देश अपने पश्चिम-प्रेमी शासकों और धार्मिक रूप से प्रेरित सड़क आंदोलनों के बीच कितना गहराई से बंट गया है. फील्ड मार्शल असीम मुनीर के नेतृत्व में पाकिस्तान का सैन्य प्रतिष्ठान, वाशिंगटन के साथ संबंधों को फिर से सुधारने और इजरायल-गाजा शांति प्रक्रिया का चुपचाप समर्थन करने की कोशिश में अपने ही वैचारिक सहयोगियों, दक्षिणपंथी इस्लामी गुटों को विश्वास में लेने में विफल रहा है. इसका परिणाम घातक अशांति, सामूहिक गिरफ्तारियां और सड़कों पर खुला विद्रोह है."

सेना के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, "सबसे हालिया विरोध प्रदर्शन सितंबर के अंत और अक्टूबर 2025 की शुरुआत में भड़के, जब टीएलपी कार्यकर्ताओं की लाहौर, कराची और रावलपिंडी में पुलिस के साथ झड़प हुई. यह खबर सामने आई कि इस्लामाबाद ने इजरायल-गाजा स्थिति को सामान्य बनाने के उद्देश्य से पश्चिम समर्थित वार्ता का चुपचाप समर्थन करने पर सहमति जताई है." रिपोर्ट में जोर देते हुए कहा गया है कि हजारों टीएलपी समर्थक पाकिस्तान भर के शहरों में सड़कों पर उतर आए, सेना के खिलाफ नारे लगाए और जनरलों पर "डॉलर के लिए इस्लाम को बेचने" का आरोप लगाया.

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रिपोर्ट के अनुसार, विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए. पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस, रबर की गोलियों और फायरिंग तक का सहारा लिया. मानवाधिकार समूहों और स्थानीय मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि कई लोग मारे गए और दर्जनों घायल हुए, जिनमें युवा टीएलपी कार्यकर्ता भी शामिल थे. रिपोर्ट में कहा गया है, "इस गुस्से की जड़ यह धारणा है कि पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान ने स्वार्थ के लिए अपनी वैचारिक प्रतिबद्धताओं को त्याग दिया है. वही सेना जो कभी धार्मिक मुद्दों पर समर्थन जुटाने के लिए टीएलपी और अन्य बरेलवी या देवबंदी संगठनों जैसे इस्लामी आंदोलनों का इस्तेमाल करती थी, अब जब वे उसकी नीतिगत दिशा को चुनौती देते हैं, तो उन्हें दुश्मन मान लेती है."

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क्या टूट सकता है पाकिस्तान

इसमें कहा गया है, "वर्षों तक, टीएलपी सेना के लिए एक सुविधाजनक दबाव वाल्व के रूप में काम करती रही, जिसका इस्तेमाल उदारवादी और लोकतांत्रिक आंदोलनों का मुकाबला करने और राजनीतिक परिदृश्य पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए किया जाता था. लेकिन आज, जब जनरल पश्चिमी अनुमोदन और आर्थिक सहायता चाहते हैं, तो टीएलपी बेकार हो गई है." रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि नियंत्रण बनाए रखने के लिए पाकिस्तानी सेना के बढ़ते दमन से धार्मिक और राजनीतिक समूहों के विरोध-प्रदर्शन तेज होने की संभावना है. घरेलू असंतोष को दबाते हुए पश्चिम के साथ जुड़ने की उसकी कोशिशें ध्रुवीकरण को और गहरा करेंगी, और पाकिस्तान, जो चरमपंथ का निर्यात करता था, अब इससे जूझ रहा है. रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है, "पाकिस्तानी जनरलों को भले ही लगता हो कि वे इस तूफान को ताकत के बल पर संभाल सकते हैं, लेकिन इतिहास कुछ और ही कहता है. पाकिस्तान एक नए और खतरनाक दौर में प्रवेश कर रहा है, जहां सत्ता और विदेशी समर्थन के प्रति उसके शासकों का जुनून आखिरकार उस नाज़ुक संतुलन को बिगाड़ सकता है, जिसने देश को टूटने से बचाया है."

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