फाइल फोटो
अमेरिका ने करीब 9,800 किलो वजनी गैर परमाणु बम को अफगानिस्तान पर गिराया है. हालिया महीनों में अफगानिस्तान में यह सबसे बड़ी अमेरिकी कार्रवाई है. ऐसा तो अमेरिका ने तब भी नहीं किया था जब अफगानिस्तान में तालिबान के साथ उसकी लड़ाई चरम पर थी. यहीं से अमेरिका के मंसूबों पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं कहा जा रहा है कि 11 टीएनटी विस्फोट की क्षमता रखने वाले इस बम को आईएसआईएस खोरसान(ISIS-K) गुट को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया. यह गुट अफगानिस्तान और पाकिस्तान में सक्रिय है. सीरिया पर हाल में अमेरिकी हवाई हमले के बाद अमेरिका की यह दूसरी बड़ी सैन्य कार्रवाई माना जा रहा है. रक्षा विशेषज्ञ यह भी मान रहे हैं कि अमेरिका ने सुनियोजित सामरिक रणनीति के तहत इस गैर परमाणु बम का इस्तेमाल किया है. दरअसल डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका के सामरिक रुख में सख्ती आई है. इसलिए रक्षा विशेषज्ञ सबसे बड़े बम गिराए जाने की कई वजहें मान रहे हैं :
पाकिस्तान पर असर
इस बम को अफगानिस्तान के नंगरहार इलाके में गिराया गया है. यह पाकिस्तान की तोरहाम बॉर्डर की दूरी से महज 60 किमी दूर है. यानी संदेश साफ है कि पाकिस्तान, अब अफगान-तालिबान, अलकायदा या इस तरह के आतंकवादी संगठनों को पनाह देना बंद करे. ऐसा नहीं होने पर वह पाकिस्तान की सरपरस्ती में चल रहे ठिकानों को भी निशाना बना सकता है. वैसे भी अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों में पहले जैसी गर्मजोशी नहीं है. संभवतया इसीलिए, पाकिस्तान, चीन की शरण में गया है.
अरब जगत को संदेश
आईएसआईएस सुन्नी आतंकी संगठन है. यह इस वक्त सीरिया और इराक में सक्रिय है. अरब जगत के कई सुन्नी देश इसको संरक्षण और मदद भी कर रहे हैं. इस हमले के द्वारा अमेरिका ने इन देशों को परोक्ष रूप से आईएस को शरण देने से बाज आने के लिए कहा है.
अमेरिका और रूस
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर यह आरोप लगते रहे हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में उनकी भूमिका रही है. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने और सीरिया पर अमेरिकी कार्रवाई के बाद इस वक्त दोनों देशों के रिश्ते सबसे निचले स्तर पर हैं. दक्षिणी चीन सागर के मसले पर चीन और ट्रंप प्रशासन के बीच तनातनी है.
उत्तर कोरिया
डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से एक बार फिर अमेरिका और उत्तर कोरिया के रिश्तों में तल्खी बढ़ी है. ओबामा प्रशासन ने उत्तर कोरिया को खास तवज्जो नहीं दी लेकिन ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से वह अमेरिका की नजरों में खटक रहा है. मिसाइल परीक्षणों की धमकी देकर वह अमेरिका को चिढ़ाने वाला काम ही कर रहा है. अमेरिकी प्रशासन भी उसको आगाह कर रहा है. माना जा रहा है कि इस हमले से उसको भी सख्त संदेश दिया गया है.
पाकिस्तान पर असर
इस बम को अफगानिस्तान के नंगरहार इलाके में गिराया गया है. यह पाकिस्तान की तोरहाम बॉर्डर की दूरी से महज 60 किमी दूर है. यानी संदेश साफ है कि पाकिस्तान, अब अफगान-तालिबान, अलकायदा या इस तरह के आतंकवादी संगठनों को पनाह देना बंद करे. ऐसा नहीं होने पर वह पाकिस्तान की सरपरस्ती में चल रहे ठिकानों को भी निशाना बना सकता है. वैसे भी अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों में पहले जैसी गर्मजोशी नहीं है. संभवतया इसीलिए, पाकिस्तान, चीन की शरण में गया है.
अरब जगत को संदेश
आईएसआईएस सुन्नी आतंकी संगठन है. यह इस वक्त सीरिया और इराक में सक्रिय है. अरब जगत के कई सुन्नी देश इसको संरक्षण और मदद भी कर रहे हैं. इस हमले के द्वारा अमेरिका ने इन देशों को परोक्ष रूप से आईएस को शरण देने से बाज आने के लिए कहा है.
अमेरिका और रूस
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर यह आरोप लगते रहे हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में उनकी भूमिका रही है. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने और सीरिया पर अमेरिकी कार्रवाई के बाद इस वक्त दोनों देशों के रिश्ते सबसे निचले स्तर पर हैं. दक्षिणी चीन सागर के मसले पर चीन और ट्रंप प्रशासन के बीच तनातनी है.
उत्तर कोरिया
डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से एक बार फिर अमेरिका और उत्तर कोरिया के रिश्तों में तल्खी बढ़ी है. ओबामा प्रशासन ने उत्तर कोरिया को खास तवज्जो नहीं दी लेकिन ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से वह अमेरिका की नजरों में खटक रहा है. मिसाइल परीक्षणों की धमकी देकर वह अमेरिका को चिढ़ाने वाला काम ही कर रहा है. अमेरिकी प्रशासन भी उसको आगाह कर रहा है. माना जा रहा है कि इस हमले से उसको भी सख्त संदेश दिया गया है.
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