विज्ञापन
This Article is From Dec 26, 2011

अलकायदा के लिए अफ्रीका बना ठिकाना : रपट

लंदन: ओसामा बिन लादेन सहित कई शीर्ष आतंकवादियों के खात्मे के बाद पाकिस्तान में कमजोर होते आतंकवादी संगठन अलकायदा के अब उत्तरी अफ्रीका को अपना ठिकाना बनाने का संदेह है। सोमवार को एक मीडिया रपट में यह बात कही गई। समाचार पत्र 'द गार्जियन' के मुताबिक ब्रिटिश अधिकारियों का मानना है कि साल 2012 की अंतिम कार्रवाइयों में पाकिस्तान में अलकायदा के बचे-खुचे आतंकवादी भी समाप्त हो जाएंगे। एक अधिकारी ने कहा कि अलकायदा के ज्यादातर बड़े आतंकवादी मानवरहित ड्रोन हमलों में मारे गए थे और अब कुछ मुट्ठीभर आतंकवादी ही जीवित बचे हैं। अलकायदा के शीर्ष आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को दो मई को पाकिस्तान के एबटाबाद में मार गिराया गया था। अमेरिकी कमांडो ने विशेष कार्रवाई में उसे मार गिराया था। सूत्रों का कहना है कि अलकायदा के दो बड़े नेता लीबिया की ओर बढ़े हैं जबकि अन्य भी मार्ग में हैं। इससे यह डर पनपने लगा है कि उत्तरी अफ्रीका जिहाद का नया अखाड़ा बन सकता है। एक सूत्र ने बताया, "उत्तर अफ्रीका के कुछ बेहद अनुभवी लोगों के समूह ने पूर्वोत्तर अफगानिस्तान के कुनार प्रांत को छोड़ दिया है। वे बरसों से वहां अपना ठिकाना बनाए हुए थे। अब वे वापस मध्यपूर्व लौट आए हैं।" मीडिया रपट में कहा गया है कि यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि गठबंधन सेनाओं के अफगानिस्तान से हटने की वजह से अधिक सुरक्षा के लिए अफगानिस्तान व पाकिस्तान छोड़कर उत्तर अफ्रीका का रुख किया गया है या यह अरब में वसंतु ऋतु समाप्त होने के बाद उसका फायदा उठाने की रणनीति है। पाकिस्तान के कबायली इलाकों में अस्थायी ठिकानों तक छोटे-छोटे समूह में पहुंचना अलकायदा आतंकवादियों के लिए मुश्किल हो गया था। एक अधिकारी ने कहा, "मुझे लगता है कि वे वास्तव में बहुत कमजोर हो गए हैं।" उन्होंने कहा, "आप यह नहीं कह सकते कि उनसे खतरा नहीं है, वे खतरनाक हो सकते हैं लेकिन यह खतरा बहुत थोड़ा है।" खुफिया सूत्रों ने 'द गार्जियन' को बताया कि उनके अनुमान के मुताबिक अफगानिस्तान में अलकायदा या अलकायदा से जुड़े आतंकवादी संगठनों के 100 से भी कम आतंकी हैं। एक अधिकारी ने कहा कि इस बात के प्रमाण मिले हैं कि हक्कानी नेटवर्क पाकिस्तानी खुफिया सेवाओं व आतंकवादी समूहों के बीच मध्यस्थ का काम करता है। अधिकारी ने कहा, "यदि पाकिस्तानी सेना हक्कानी के खिलाफ कार्रवाई करती है तो इससे उसे कोई फायदा नहीं होना है। यदि हक्कानी के खिलाफ कार्रवाई में सेना को भारी नुकसान होता है और फिर भी इस समूह को समाप्त करने में कामयाबी नहीं मिलती तो सेना उस पर से अपना अधिकार खो देगी और उसका एक मजबूत मध्यस्थ भी खो जाएगा। यदि उसे सफलता मिलती है तो भी वह एक मुख्य सहयोगी खो देगी।"

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com