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क्या शनि के चांद पर ही मिलेंगे एलियंस? बर्फीले जमीन के नीचे बसा समंदर 'उगल रहा जिंदगी'

शनि ग्रह के लिए नासा का कैसिनी मिशन 2017 में ही समाप्त हो गया था, लेकिन वैज्ञानिक अभी भी इससे मिले डेटा के खजाने में गहरे दबे हुए निष्कर्ष निकाल रहे हैं.

क्या शनि के चांद पर ही मिलेंगे एलियंस? बर्फीले जमीन के नीचे बसा समंदर 'उगल रहा जिंदगी'
शनि ग्रह के चांद एन्सेलाडस पर जीवन की आस
  • शनि ग्रह के चंद्रमा एन्सेलाडस से जल वाष्प में जीवन के लिए आवश्यक जटिल कार्बनिक अणुओं की खोज हुई है
  • नासा के कैसिनी मिशन ने बीस साल पहले एन्सेलाडस के वाटर गीजर का नमूना लिया था और उसका विश्लेषण जारी है
  • एन्सेलाडस की सतह की दरारें एक उपसतह महासागर से जुड़ी हैं जो जल वाष्प और कार्बनिक अणुओं का स्रोत हैं
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क्या धरती से परे किसी और ग्रह, किसी और सेलीस्टियल बॉडी (खगोलीय पिंड) में जीवन है? क्या अपनी धरती से बहुत दूर कहीं एलियंस रहते हैं. यह वह सवाल है जो इंसानों के जेहन में सदियों से कौतुहल जगाती है. एलियन का मतलब यह नहीं कि वो ‘कोई मिल गया' के जादू कि तरह हाथ-पैर वाला कोई अज्ञात जीव ही होगा. वो धरती से परे कहीं भी किसी रूप में सजीव जीव हो सकता है, कोई बैक्टीरिया-वायरस हो सकता है. अब एलियन वाले सवाल के जवाब खोजते वैज्ञानिकों को एक बड़ा ब्रेकथ्रू मिला है और वो भी शनि ग्रह के एक बर्फ में जमे हुए चांद पर. 

इस चांद का नाम एन्सेलाडस (Enceladus) है. इस चांद से जेट की तरह निकलने वाले पानी के भाप (वाटर गीजर) में ऐसे जटिल कार्बनिक मॉलेक्यूल मिले हैं जो जीवन के निर्माण के लिए जरूरी रासायनिक प्रतिक्रियाओं की श्रृंखला का हिस्सा बनते हैं. नासा के कैसिनी अंतरिक्ष यान ने पहली बार इस चांद के वाटर गीटर का नमूना लगभग बीस साल पहले लिया था और अब उसके एनालिसिस से यह बात सामने आई है.

स्पेस डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार शनि ग्रह के लिए नासा का कैसिनी मिशन 2017 में ही समाप्त हो गया था, लेकिन वैज्ञानिक अभी भी इससे मिले डेटा के खजाने में गहरे दबे हुए निष्कर्ष निकाल रहे हैं.

रिपोर्ट के अनुसार इन कार्बनिक मॉलेक्यूल्स की खोज ("कार्बनिक" का अर्थ है कि उनमें कार्बन होता है) बर्फीले चंद्रमा एन्सेलाडस में किसी रूप में जीवन की उम्मीद को मजबूत करता है. 2005 में, कैसिनी ने पाया था कि एन्सेलाडस की सतह में विशाल दरारों से जल वाष्प (वाटर वेपर) के गुबार अंतरिक्ष में फैल रहे थे. ऐसा माना जाता है कि ये दरारें 500-किलोमीटर-चौड़े चंद्रमा के भीतर एक उपसतह महासागर की ओर ले जाती हैं, और यह महासागर ही पानी उपलब्ध कराता है.

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इस जल वाष्प कुछ हिस्सा एन्सेलाडस की सतह पर वापस आ जाता है, जबकि इसका अधिकांश भाग अंतरिक्ष में चला जाता है. यह जल वाष्प इस चांद के चारों ओर एक फैली हुई रिंग बनाता है, जिसे ई-रिंग कहा जाता है. 

रिपोर्ट के अनुसार फ्री यूनिवर्सिटैट बर्लिन और जर्मनी में स्टटगार्ट यूनिवर्सिटी में काम करने वाले वैज्ञानिर नोजेर ख्वाजा ने बताया है कि उनकी नई एनालिसस में उन कार्बनिक मॉलेक्यूल के सबूत मिले है जो इससे पहले छूट गए थे. पता चला है कि ई-रिंग में मौजूद वही कार्बनिक मॉलेक्यूल चांद की दरारों से निकलते जल वाष्प में भी हैं. इससे वैज्ञानिकों को पता चला कि इन कार्बनिक मॉलेक्यूल की उत्पत्ति समुद्र से हुई होगी.

ख्वाजा की टीम को कई अन्य कार्बनिक मॉलेक्यूल भी मिले जो इस चांद के जल वाष्प के संबंध में पहले नहीं पाए गए थे. इनमें एलिफैटिक, (हेटेरो) चक्रीय एस्टर/क्षारीय, ईथर/एथिल और संभवतः नाइट्रोजन- और ऑक्सीजन रखने वाले कॉम्पाउंड शामिल हैं. पृथ्वी पर, ये मॉलेक्यूल उन रासायनिक प्रतिक्रियाओं की श्रृंखला का हिस्सा हैं जो जीवन के निर्माण की ओर ले जाते हैं.

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