G20 के प्रमुख देशों ने एक बार फिर रविवार को जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के खतरों से बचने के लिए ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रमुख लक्ष्य के प्रति अपनी-अपनी प्रतिबद्ध जताई है. हालांकि, दुनियाभर के नेताओं ने लक्ष्य प्राप्ति पर निराशा जताते हुए चेतावनी दी कि ग्लासगो में शुरू होने वाली संयुक्त राष्ट्र की जलवायु वार्ता को सफल बनाने के लिए और अधिक कार्बन उत्सर्जन कटौती की आवश्यकता है.
रविवार को शुरू हुए COP26 शिखर सम्मेलन के मेजबान, ब्रिटिश प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि रोम में दो दिनों की बातचीत के बाद विश्व नेताओं की प्रतिज्ञा "पर्याप्त नहीं" है. उन्होंने पूरी धरती के लिए गंभीर परिणामों की चेतावनी दी.
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, "अगर ग्लासगो विफल हो जाता है, तो पूरी बात विफल हो जाएगी." उन्होंने कहा, "G-20 की प्रतिबद्धताएं ग्लोबल वार्मिंग के लक्ष्यों में समंदर की एक बूंद के समान है."
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संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी G-20 शिखर सम्मेलन के परिणाम पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने रोम छोड़ दिया "मेरी उम्मीदें पूरी नहीं हुईं - हालांकि उम्मीदें अभी दफन नहीं हुई हैं."
G-20 देश पूरी दुनिया के कार्बन उत्सर्जन में करीब 80 फीसदी का योगदान देते हैं, इसलिए संयुक्त राष्ट्र इन देशों से कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्यों का दृढतापूर्वक पालन चाहता है लेकिन अभी तक ऐसा संभव नहीं हो सका है.
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हालांकि, एक अंतिम विज्ञप्ति में G20 देशों ने ऐतिहासिक 2015 पेरिस जलवायु समझौते के तहत तय लक्ष्यों के प्रति अपने समर्थन की पुष्टि की है. पेरिस समझौते में "वैश्विक औसत तापमान में बढ़ोतरी 2 डिग्री से नीचे रखने और इसे पूर्व-औद्योगिक स्तरों यानी 1.5 डिग्री तक सीमित करने के प्रयासों" को आगे बढ़ाने को कहा गया था.
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