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क्या बदल रही है देवभूमि की हवा? बद्रीनाथ और मंगलौर सीट पर कांग्रेस की जीत के क्या हैं मायने?

कांग्रेस बद्रीनाथ सीट पर बीजेपी की हार को अयोध्या से भी जोड़ने लगी है. पार्टी ने कहा है कि भगवान बीजेपी से नाराज हैं.

क्या बदल रही है देवभूमि की हवा? बद्रीनाथ और मंगलौर सीट पर कांग्रेस की जीत के क्या हैं मायने?
नई दिल्ली:

भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) का गढ़ माने जाने वाले उत्तराखंड में हुए विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी को झटका लगा है. राज्य की 2 सीटों पर हुए चुनाव में दोनों ही सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार को जीत मिली है. बद्रीनाथ (Badrinath) की सीट कांग्रेस के पास ही थी हालांकि कांग्रेस के विधायक ने पाला बदल लिया था. जिस कारण उपचुनाव करवाना पड़ा. वहीं मंगलौर(Mangalore) की सीट बसपा के खाते में थी विधायक के निधन के कारण इस सीट पर उपचुनाव करवाना पड़ा.  कांग्रेस ने यह सीट बसपा से छीन लिया है. 

मंगलौर सीट का क्या रहा परिणाम? 
उत्तराखंड की मंगलौर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार काजी मोहम्मद निजामुद्दीन ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के करतार सिंह भड़ाना को 422 मतों के मामूली अंतर से पराजित किया.  निजामुद्दीन की इस सीट पर यह चौथी जीत है.  इससे पहले वह दो बार बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर और एक बार कांग्रेस के टिकट पर जीत चुके हैं. 

साल 2022 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में इस सीट पर जीत दर्ज करने वाली बसपा उपचुनाव में तीसरे स्थान पर रही, जहां पार्टी के पूर्व विधायक सरवत करीम अंसारी के बेटे उबेद-उर-रहमान को 19,559 वोट मिले.  निजामुद्दीन को 31,727 जबकि भड़ाना को 31,305 वोट मिले. 

बद्रीनाथ सीट पर क्या रहा परिणाम?
उत्तराखंड में कांग्रेस के लखपत सिंह बुटोला ने शनिवार को बदरीनाथ विधानसभा उपचुनाव में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी पूर्व मंत्री एवं विधायक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राजेंद्र सिंह भंडारी को 5,224 मतों से हराया.  दस जुलाई को हुए मतदान में कुल 54,228 वोट पड़े, जिनमें से 28,161 वोट कांग्रेस को मिले, जबकि भाजपा को 22,937 वोट मिले। भंडारी को 2022 के विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार 10,000 कम वोट मिले.  निर्दलीय उम्मीदवार नवल किशोर खाली तीसर स्थान पर रहे और उन्हें 1813 वोट मिले.  वहीं, सैनिक समाज पार्टी के हिम्मत सिंह को 494 वोट मिले. 

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बीजेपी हार पर करेगी मंथन

उत्तराखंड विधानसभा उपचुनाव में दो सीटों पर बीजेपी को मिली हार की समीक्षा की बात बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने की है.  भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने तो यहां तक कहा कि पूर्व में वह भी बद्रीनाथ सीट पर चुनाव हार चुके हैं.  इस सीट पर हुई हार को पार्टी के अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने स्वीकार करते हुए कहा कि पार्टी चुनाव में हार के कारणों पर मंथन करेगी. 

बीजेपी को क्यों हुई हार, एक्सपर्ट की क्या है राय? 
वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला का बीजेपी की हार को लेकर मानना है कि बद्रीनाथ विधानसभा क्षेत्र में लगभग 98 प्रतिशत मतदाता हिन्दू हैं. इसके बावजूद भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र भंडारी यहां से उपचुनाव हार गये. जखमोला हार के कई कारण बताते हैं. 

  1. हार का एक बड़ा कारण पार्टी की अंदरूनी राजनीति रही. बीजेपी का एक बड़ा गुट यह स्वीकार ही नहीं कर सका कि दो महीने पहले जिस कांग्रेसी नेता के बारे में वह जनता के बीच कमियां गिनाते थे, उसी के बारे में खूबियां कैसे बताएं?
  2. दूसरी बात यह थी कि पार्टी के वरिष्ठ नेता, स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच चुनाव प्रचार को लेकर तालमेल नहीं बिठा सके. ऐसे में एक बड़ा गुट चुनाव प्रचार के लिए बाहर निकला ही नहीं. 
  3. तीसरा कारण यह रहा कि लोकसभा चुनाव में बद्रीनाथ विधानसभा सीट से अनिल बलूनी को लगभग 40 हजार मत मिले थे. ऐसे में भाजपाइयों को विश्वास था कि भाजपा के वोट और राजेंद्र भंडारी के दल-बदलने से उनके साथ आए समर्थक इतने वोट तो पर्याप्त तौर पर हासिल कर लेंगे कि उपचुनाव जीत जाएं. यह अतिविश्वास निकला. यही नहीं, स्वयं गढ़वाल लोकसभा सांसद अनिल बलूनी उनके प्रचार के लिए नहीं पहुंचे. ऐसे में जनता के बीच संदेश गया कि पार्टी राजेंद्र भंडारी को लेकर गंभीर नहीं है.
  4.  कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर राजेंद्र भंडारी के उन तमाम वीडियो को भी वायरल किया जो उन्होंने कांग्रेस विधायक के तौर पर भाजपा के खिलाफ बयान दिये थे. ऐसे में भाजपा कैडर भी वोट डालने बूथ तक गया ही नहीं. यही कारण रहा कि इस सीट पर 51 प्रतिशत ही मतदान हुआ.
  5. आम जनता भी दल-बदल से परेशान थी और यह संदेश गया कि राजेंद्र भंडारी ने स्वार्थवश दल बदला और जनता पर अनावश्यक उपचुनाव का खर्च थोप दिया.

बद्रीनाथ सीट पर कांग्रेस की जीत क्यों है अहम? 
अब बद्रीनाथ सीट को लेकर चर्चा क्यों गर्म है. उत्तराखंड राज्य के बनने से पहले इस सीट को बदरी-केदार नाम से जाना जाता था. लेकिन परिसीमन के बाद 2012 में दशोली, जोशीमठ, गोपेश्वर के साथ इसमें पोखरी क्षेत्र को भी जोड़ा गया और इसका नाम बदलकर बदरीनाथ विधानसभा सीट हो गया. उत्तराखंड की गंगोत्री सीट की ही तरह इस सीट को लेकर भी एक मिथक जुड़ा हुआ है कि जिस दल का प्रत्याशी यहां से विधानसभा पहुंचता है प्रदेश में उसी दल की सरकार बनती है. ऐसे में अब कांग्रेसी कार्यकर्ता इस सीट पर जीत को लेकर उत्साहित हैं. 

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बद्रीनाथ सीट बीजेपी के लिए क्यों रहा है चुनौती? 
बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर अल्पसंख्यक और दलित आबादी बड़ी संख्या में हैं. ऐसे में इस सीट पर जीत के लिए भाजपा को मशक्कत करनी पड़ती है. इस सीट पर कांग्रेस की जीत के पीछे यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि राहुल गांधी ने जिस जोर-शोर से युवाओं की बेरोजगारी का मुद्दा उठाया वह जनता को रास आया. साथ ही यह भी साफ हो गया है कि बसपा की वोट बैंक में कांग्रेस ने सेंध लगाने का जो प्रयोग यूपी में किया था उसमें वह उत्तराखंड में भी कामयाब हुई. 

कांग्रेस बद्रीनाथ सीट पर भाजपा की हार को अयोध्या से भी जोड़ने लगी है. वह कहने लगे हैं कि भगवान बीजेपी से नाराज हैं. अयोध्या हार चुकी भाजपा इस उपचुनाव में बदरीनाथ सीट भी हार गई है और बदरीनारायण भगवान का आशीर्वाद कांग्रेस को मिला.
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जीत से उत्साहित हैं कांग्रेस नेता
जीत की खुशी पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, "यह जीत राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की जीत है.  दोनों विधायकों की जीत गंगा-जमुनी तहजीब की जीत है.  यह जीत बीजेपी के द्वारा सनातन और शंकराचार्य के अपमान का सबूत है. बीजेपी के लिए यह सबक है.  भगवान राम ने अयोध्या में हराया.  बद्री बाबा ने बद्रीनाथ में करारी हार दिलाई. आने वाले समय में केदारनाथ से भी हार का संदेश जाने वाला है. " उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के लोगों ने संदेश दिया हैं.  यहां की जनता पैसे और धमकी देने वाले को नहीं जितती. यहां के लोग सही विचारधारा वाले लोगों को विजयी बनाते हैं. 

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