
- बेस्ट पटपेढ़ी चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) और राज ठाकरे की मनसे को एक भी सीट नहीं मिली है
- शिवसेना (UBT) ने नौ वर्षों तक बेस्ट पटपेढ़ी में शासन किया था लेकिन इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा
- यूनियन नेता शशांक राव के पैनल ने 14 सीटें जीतकर बेस्ट पटपेढ़ी में बहुमत हासिल कर सबसे बड़ी जीत दर्ज की है
महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे भाईयों को झटका लगा है. बेस्ट पटपेढ़ी चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली है. इस तरह बेस्ट कर्मचारियों की सहकारी संस्था में ठाकरे बंधुओं का प्रभाव पूरी तरह खत्म हो गया.
9 साल का शासन गया हाथ से
उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना (UBT) ने लगातार नौ वर्षों तक बेस्ट पटपेढ़ी में सत्ता पर कब्जा बनाए रखा था. लेकिन इस बार परिणाम पूरी तरह उलट गए. नतीजों में स्पष्ट हुआ कि कर्मचारियों ने ठाकरे भाइयों की राजनीति को नकार दिया और नए नेतृत्व को मौका दिया.
शशांक राव बने विजेता
इस चुनाव में सबसे बड़ी जीत बेस्ट के यूनियन नेता शशांक राव के पैनल को मिली. उन्होंने कुल 14 सीटों पर कब्जा जमाया और बहुमत साबित किया. वहीं, भाजपा समर्थित प्रसाद लाड पैनल को 7 सीटें मिलीं.
- शशांक राव पैनल – 14 सीट
- प्रसाद लाड पैनल (भाजपा) – 07 सीट
- मनसे-शिवसेना (UBT) – 00 सीट
इस परिणाम के बाद शशांक राव बेस्ट पटपेढ़ी के सबसे मजबूत चेहरे के रूप में उभरे हैं.
ठाकरे भाइयों की ‘साझेदारी' भी बेअसर
चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय किया था. रिपोर्ट्स के मुताबिक, उद्धव की पार्टी ने 18 सीटों पर और राज ठाकरे की मनसे ने 2 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन दोनों ही गुटों को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. नतीजे बताते हैं कि यह गठजोड़ कर्मचारियों के बीच भरोसा जीतने में पूरी तरह विफल रहा.
भाजपा के लिए राहत, पर नहीं मिली जीत
भाजपा समर्थित प्रसाद लाड पैनल ने 7 सीटें जीतकर मजबूती दिखाई है, हालांकि वे सत्ता से दूर रहेंगे. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ठाकरे भाइयों की हार से भाजपा को मनोबल मिला है, क्योंकि इससे बृहन्मुंबई में भाजपा की पकड़ और मजबूत हो सकती है.
क्या हैं राजनीतिक संदेश
बेस्ट पटपेढ़ी चुनाव नतीजे सिर्फ एक सहकारी संस्था तक सीमित नहीं हैं. इन्हें मुंबई की राजनीति का बैरोमीटर माना जाता है. शिवसेना (UBT) और मनसे की करारी हार ने यह साफ संकेत दिया है कि कर्मचारियों और यूनियनों के बीच अब ठाकरे परिवार की पकड़ ढीली हो चुकी है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह हार उद्धव और राज ठाकरे दोनों के लिए चेतावनी है.
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