कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘अब्बा जान' वाले बयान को लेकर सोमवार को उनपर निशाना साधा और कहा कि कोरोना महामारी के समय गंगा में लाशें तैरने के समय योगी कहीं नजर नहीं आए, लेकिन अब चुनाव नजदीक आने पर अपने पुराने ढर्रे पर जाकर ‘अब्बा जान' को याद करने लगे हैं. पार्टी प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने योगी पर ‘‘ओछी मानसिकता'' रखने का आरोप लगाया और कहा कि लोगों को बांटने की यह तरकीब नहीं चलने वाली है.
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘जिस मुख्यमंत्री को लखनऊ और कलकत्ता का भेद पता न हो, जिस मुख्यमंत्री को भारत और अमेरिका का भेद पता न हो, उस मुख्यमंत्री की बातों को गंभीरता से लेना, गंभीरता का अपमान करना है.'
वल्लभ ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा, ‘‘अब्बा जान- भाई जान करते-करते हो गए सत्ता में विराजमान, चुनाव नजदीक आते ही वापस से शुरू कर दिया, श्मशान- कब्रिस्तान. कोरोना के दौरान आपकी लचर स्वास्थ्य व्यवस्था ने ले ली लाखों लोगों की जान, अब आपको पूरी तरह से उत्तर प्रदेश गया है, पहचान.''
उन्होंने सवाल किया, ‘‘जब लोगों की लाशें गंगा मैया में तैर रही थीं, तब योगी कहां थे? उस समय आप क्या कर रहे थे? जब उत्तर प्रदेश के लोग दिल्ली और मुंबई से पैदल आ रहे थे, तब आप छिपकर कहां बैठे थे? उस समय आपका क्या शासन मॉडल था?''
कांग्रेस नेता ने दावा किया कि विधानसभा चुनाव नजदीक आने पर ‘अब्बा जान' की याद आ गई, ताकि ध्रुवीकरण हो, लेकिन इस बार यह तरकीब नहीं चलने वाली है.
योगी ने रविवार को कुशीनगर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ‘अब्बा जान' वाली टिप्पणी की थी.
पूर्व की समाजवादी पार्टी सरकार का परोक्ष रूप से उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा था, ‘‘अब्बा जान कहने वाले गरीबों की नौकरी पर डाका डालते थे. पूरा परिवार झोला लेकर वसूली के लिए निकल पड़ता था. अब्बा जान कहने वाले राशन हजम कर जाते थे. राशन नेपाल और बांग्लादेश पहुंच जाता था. आज जो गरीबों का राशन निगलेगा, वह जेल चला जाएगा.''
योगी आदित्यनाथ की ओर से आतंकवाद के मुद्दे पर कांग्रेस पर निशाना साधे जाने को लेकर भी गौरव वल्लभ ने उन पर पलटवार किया और कहा कि मुख्यमंत्री को पता होना चाहिए कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में बलिदान का कांग्रेस का पुराना इतिहास है और उसने अपने अनगिनत नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को खोया है.
उन्होंने कहा, ‘‘आजादी के बाद देश के पहले आतंकवादी नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की. इसके बाद हमने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सरदार बेअंत सिंह, विद्याचरण शुक्ल, महेश कर्मा, नंद कुमार पटेल और कई अन्य नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को आतंकवाद एवं उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई में खोया. लेकिन वे लोग इस बलिदान को नहीं समझ सकते जिनके वैचारिक पूर्वज अंग्रेजों की मुखबिरी करते थे.'
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