गढ़मुक्तेश्वर के कार्तिक मेले में 25 से 30 लाख लोगों के जुटने की संभावना है. हालांकि, पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कुंभ कहे जाने वाले इस मेले में लंपी की वजह से इस साल पशु मेला नहीं लगेगा. इस कारण दूर-दूर से आने वाले पशु पालक थोड़े निराश जरूर हैं. हालांकि, पशु मेला के अलावा इस मेले में अन्य आकर्षण भी है.
मेले में महिलाएं नृत्य करती हैं. वहीं, दूर-दूर से श्रद्धालु अपने पुरखों को दीप दान करने और मन्नत मांगने के लिए गंगा के तट पर पहुंचते हैं. 8 नवंबर तक चलने वाले इस मेले का आध्यात्मिक महत्व बहुत है. कहा जाता है कि कौरव-पांडव युद्ध के बाद पांडवों ने युद्ध में मारे जाने वालों लोगों का दीप दान यहां किया था. इसी के चलते लाखों लोग हर साल यहां पहुंचते हैं.
मेले में शामिल होने के लिए पलवल से पहुंचे सुमेर मलिक ने कहा, " मेरी बुआ, ताई, बहनें यहां आई हैं. हमारे यहां कुंआ पूजन एक प्राचीन परंपरा है बच्चा होने पर ये होता है. उसी के लिए हम आए हैं. ये प्राचीन समय से चला आ रहा है. "
हालांकि, आध्यात्मिक महत्व के अलावा इस मेले में बग्घी से आने की एक पुरानी परंपरा है. यही वजह है कि तमाम परिवारों के पास ट्रैक्टर और गाड़ी होने के बावजूद वो अपने परिवार के साथ बग्घी से आते हैं. हापुड़ निवासी सुमित राणा ने बताया, " मेरे पास ट्रैक्टर भी है लेकिन पुरानी परंपरा है, इसलिए मैं बग्घी से आया हूं."
कार्तिक मेले में पशु मेले का आकर्षण विशेष होता है. दूर दूर से लोग अपने अपने पशुओं को यहां दिखाने , रेस लगाने और बेचने आते थे. लेकिन इस पर लंपी की वजह से पशु मेले पर रोक है. उसके बावजूद संदीप जैसे पशुप्रेमी अपने-अपने पशुओं समेत यहां पहुंचे हैं.
गंगा नदी के किनारे लगने वाला ये मेला हापुड़, मेरठ और अमरोहा की सीमाओं में फैला है. मेले में 25 लाख लोगों से ज्यादा श्रद्धालुओं के जुटने की उम्मीद है. लिहाजा पुलिस की व्यवस्था भी चाकचौबंद है. हापुड़ एसपी दीपक भूकर ने कहा कि पूरे मेले को बीस सेक्टर में बांटा है. दो हजार से ज्यादा पुलिस लगाई गई है. ताकि सुरक्षा को मजबूत किया जा सके.
आध्यात्मिक महत्व के अलावा इस आधुनिक दौर में गढ़मुक्तेश्वर के कार्तिक मेले में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण संस्कृति की कई झलक भी देखने को मिलती है, जो इसे खास बनाती है.
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