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This Article is From Mar 19, 2017

मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के सामने हैं यूपी की ये 8 चुनौतियां, कैसे निपटेंगे योगी?

मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के सामने हैं यूपी की ये 8 चुनौतियां, कैसे निपटेंगे योगी?
योगी आदित्यनाथ आज यूपी के सीएम बनने जा रहे हैं.
  • फायरब्रैंड इमेज में परिवर्तन करना होगा
  • राजनीति और धर्म फर्क समझाने का दारोमदार
  • कानून व्यवस्था में सुधार और पुलिस की इमेज में बदलाव की दरकार
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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में बीजेपी की शानदार जीत के बाद योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है. साथ ही सत्ता संतुलन और राज्य की राजनीति की जातिवाद अवधारणा को साधने के लिए बीजेपी ने दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य को भी उपमुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दी है. लेकिन यह सत्य और सांविधानिक है कि मुख्यमंत्री ही सर्वोपरि है. योगी आदित्यनाथ को सीएम चुनकर बीजेपी ने पूर्व उत्तर प्रदेश के साथ साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश को भी साधने का काम किया है. गोरखपुर से लेकर मेरठ, मुजफ्फरनगर तक के मतदाताओं को बीजेपी ने खुश करने के लिए योगी आदित्यनाथ का चयन हुआ है.

फायरब्रैंड इमेज में परिवर्तन करना होगा
योगी आदित्यनाथ गेरुवा वस्त्रधारी हैं. जब काफी छोटे थे तब ही संन्यास ले लिया था. 26 साल की उम्र में सांसद बने और लगातार इनका कद बढ़ता गया और आज योगी मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. राज्य और देश में इनकी छवि एक फायरब्रैंड नेता की बनी है. यह भी इसलिए इनके द्वारा कई बार दिए गए बयान विवादित रहे हैं और योगी अपने ऐसे बयानों के चलते मीडिया में भी घिरे रहे हैं. उनके बयानों के चलते बीजेपी को कई बार असहजता महसूस हुई और पार्टी ने उनके बयानों पर सफाई भी दी. (योगी आदित्यनाथ बेबाक ही नहीं, इमोशनल भी हैं, सबके सामने फूट-फूटकर रो पड़े थे)

राजनीति और धर्म फर्क समझाने का दारोमदार
योगी आदित्यनाथ गोरखपुर की सबसे प्रसिद्ध पीठ के महंत हैं. उनपर हमेशा से यह आरोप लगता रहा है कि वह राजनीति और धर्म को मिलाकर चलते हैं. वह अकसर अपने भाषणों में कहते हैं कि बिना धर्म के राजनीति नहीं हो सकती है. राजनीति धर्म का एक छोटा सा हिस्सा मात्र हैं. लेकिन अब योगी आदित्यनाथ राज्य के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. अब भी क्या वह ऐसी ही बातें करते रहेंगे. राज्य का अल्पसंख्यक वर्ग उनकी ऐसी बातों को लेकर चिंता में है. वहीं, यह चुनौती खुद योगी आदित्यनाथ की है कि अब वह कैसे राज्य के अल्पसंख्यक वर्ग की चिंता को दूर करते हैं और उनके विश्वास को जीतते हैं...

कानून व्यवस्था में सुधार और पुलिस की इमेज में बदलाव की दरकार
समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति पर हमेशा से ही प्रश्न उठते रहे हैं. यह एक सबसे बड़ा कारण माना जाता है अखिलेश यादव सरकार की इतनी बड़ी हार का. राज्य में यह माना जाता रहा है कि समाजवादी पार्टी की सरकार में केवल जाति विशेष और धर्म विशेष के लोगों के बारे में ही ध्यान रखा गया. इसके अलावा यूपी पुलिस पर जनता की सेवा से ज्यादा जनता के राजा के तौर पर कार्य करने का आरोप लगता रहा है. ऐसा लगता रहा है कि मानवाधिकार जैसा शब्द यूपी पुलिस की डिक्शनरी में नहीं है. इतना ही नहीं केवल दो समुदाय से जुड़े लोगों को छोड़कर बाकी लोगों की पुलिस विभाग में कोई सुनवाई नहीं हो रही थी. यह बात अलग है कि सरकार के अंतिम छह महीने के कार्यकाल में अखिलेश यादव ने बतौर मुख्यमंत्री पुलिस व्यवस्था में सुधार का प्रयास किया. उन्होंने 100 नंबर की व्यवस्था दी. यह अपने आप में आश्चर्य है कि देश के सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य में यह व्यवस्था 2016 में आए. पुलिस प्रशासन में पारदर्शिता एक बड़ी समस्या रही है. इसके साथ ही राज्य की पुलिस व्यवस्था का राजनेताओं से करीबी और सत्ताधारी दल के प्रति ज्यादा झुकाव हमेशा से ही राज्य की जनता के लिए मुसीबत बना रहा है. क्या बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश पुलिस की इमेज में बदलाव ला पाएंगे...

महिलाओं की सुरक्षा पर उठे थे सवाल
राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान असमाजिक तत्त्वों को राजनीतिक संरक्षण के आरोल लगे. इतना ही नहीं कई मौकों पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर ऐसे गंभीर आरोप लगे कि राज्य में कानून व्यवस्था के होने पर ही सवालिया निशान लगने लगे. आरोप लगते रहे कि राज्य कि समाजवादी पार्टी सरकार के दौरान महिलाएं सुरक्षित नहीं रही हैं. महिलाओं के जेवर पहन कर निकलने पर जैसे रोक लग गई है. हालात यह हैं कि राहजनी के चलते महिलाओं ने राज्य में कोई गहना पहनना छोड़ दिया है. अब योगी आदित्यनाथ पर यह भी दबाव होगा कि कैसे वह गुजरात, महाराष्ट्र की तरह ऐसा माहौल बनाते हैं कि राज्य की महिलाएं अपने जेवर पहनकर दिन और रात में बेखौफ निकल सकें.

जातिगत राजनीति में संतुलन
देश में उत्तर प्रदेश हमेशा से जातिगत राजनीति का गढ़ माना जाता रहा है. यहां पर जाति आधारित राजनीति के वर्चस्व की वजह से विकास की राजनीति हमेशा नीचले पायदान पर रही है. राजनीतिक तौर विकसित राज्य विकास के मामले में अभी तक बीमारू राज्य की श्रेणी में आता है. योगी आदित्यनाथ साइंस के छात्र  रहे हैं और पढ़ने में काफी अच्छे रहे हैं. उनसे राज्य की जनता को अपेक्षा है कि वह राज्य को बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर निकाले और राज्य के बेरोजगार युवाओं को रोजगार मुहैया कराएं ताकि युवा अपने घरों में रहकर रोजगार करें और लाखों की संख्या में पलायन रुके.

लखनऊ केंद्रित विकास से बाहर विकास की परिभाषा तय करना
यूपी की निवर्तमान समाजवादी पार्टी की सरकार पर हमेशा से ही केवल इटावा और आसपास के इलाकों के विकास का आरोप लगता रहा है. बाकी राज्य में विकास पर ज्यादा ध्यान नहीं देने का आरोप लगा है. यहां तक कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर भी केवल लखनऊ के विकास का आरोप लगा. उनके विकास के विज्ञापन में भी लखनऊ के बाहर के विकास की बात कभी नहीं की गई. अब मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ पर दायित्व होगा कि राज्य में केवल किसी एक क्षेत्र में विकास सीमित न रह जाए. कॉस्मेटिक विकास के दायरे से राज्य को बाहर निकाला जाए और केवल उपहार की राजनीति से बाहर वास्तविक विकास की ओर राज्य को ले जाने की जिम्मेदारी योगी आदित्यनाथ के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी होगी.

नौकरियों में पारदर्शिता नहीं होना से युवाओं में असंतोष
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद से तीसरी और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों में इंटरव्यू व्यवस्था को खत्म कर दिया. उन्होंने कहा कि इससे कई बार उचित प्रत्याशी को सरकारी नौकरी से वंचित होना पड़ता है. वैसे भी यह आरोप नया नहीं है कि लिखित परीक्षा के बाद इंटरव्यू व्यवस्था के पारदर्शी नहीं होने की वजह से कई बार मेधावी छात्रों के साथ अन्याय होता रहा है. ऐसा होता रहा है कि घूस न दिए जाने के कारण प्रावीण्य सूची में अव्वल होने के बाद भी तमाम प्रत्याशी अंतिम सूची में अपना नाम शामिल कराने में असफल होते रहे हैं. समाजवादी पार्टी की सरकार में यह आरोप लगते रहे हैं कि पुलिस से लेकर हर विभाग की नौकरी में लिस्ट पहले से ही तैयार हो जाती थी. यहां तक कि उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग की नौकरियों में भी पारदर्शिता पर सवाल उठे. आयोग के चयन को कोर्ट में चुनौती दी गई. यहां तक कि समाजवादी पार्टी की सरकार में लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष को कोर्ट के आदेश के बाद हटाया गया. अखिलेश यादव सरकार के हारने का एक सबसे अहम कारण यह भी रहा है. अब योगी आदित्यनाथ के सामने युवाओं को लेकर  कुछ ऐसे कदम उठाने की चुनौती है जिससे जाति के आधार पर नौकरियों में दी जा रही अवैध और असंवैधानिक प्राथमिकताओं पर रोक लगे और युवा सरकारी नौकरियों में चयन को लेकर किसी प्रकार से आशंकित न हों.

2019 में केंद्र में मोदी सरकार की वापसी का रोडमैप तैयार करना
2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने का सबसे बड़ा कारण उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 72 पर पार्टी और समर्थकों की जीत रही. अब 2019 में फिर चुनाव में पार्टी को जीत दिलाने का जिम्मा योगी आदित्यनाथ पर होगा. इसके लिए योगी आदित्यनाथ के पास दो साल से भी कम समय है. इसी समय में योगी आदित्यनाथ को ऐसे काम करने हैं ताकि अगले आम चुनाव में पार्टी को राज्य में फिर सफलता मिले. इसके लिए योगी आदित्यनाथ को अभी से रोडमैप तैयार करना होगा जिससे राज्य की अल्पसंख्यक समुदाय से लेकर बहुसंख्यक समुदाय तक, एक जाति से दूसरी जाति तक की जमीनी समस्याओं का समाधान हो सके. कारण साफ है योगी आदित्यनाथ के सामने टारगेट है 2019...
 

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