![पहले कुंदरकी और अब मिल्कीपुर-दिल्ली... BJP की 'जीत पर जीत' के पीछे की इनसाइड स्टोरी पहले कुंदरकी और अब मिल्कीपुर-दिल्ली... BJP की 'जीत पर जीत' के पीछे की इनसाइड स्टोरी](https://c.ndtvimg.com/2025-02/sti2cjho_delhi-bjp-_650x400_08_February_25.jpg?im=FeatureCrop,algorithm=dnn,width=773,height=435)
हार का कोई साथी नहीं होता है. वो अनाथ हो जाता है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी यूपी में चित हो गई थी. बीजेपी को बस 33 सीटें मिलीं. इस तरह से 2019 के चुनाव के मुक़ाबले पार्टी को 29 सीटों का नुक़सान हुआ. जितने लोग, उतनी बातें. बीजेपी की हार की तरह-तरह की वजहें बताई गईं. बीजेपी के ख़राब प्रदर्शन के बाद इसका साइड इफ़ेक्ट भी दिखने लगा. लखनऊ में हुई पार्टी की प्रदेश कार्यकारिणी में संगठन बनाम सरकार का विवाद हो गया. संगठन ने हार का ठीकरा राज्य सरकार पर फोड़ा और सरकार ने संगठन पर. माहौल ये बना कि बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं है. बीजेपी का ग्राफ़ नीचे गिरना शुरू हो गया है.यूपी की राजनीति बदल रही है.
बीजेपी ने उपचुनाव में कैसे पलटी बाजी?
आठ महीने बाद कहानी पूरी बदल गई है. विधानसभा की दस सीटों पर हुए उपचुनाव ने बाजी पलट दी है. अब तो बस चर्चा बीजेपी के विजय अभियान की हो रही है. मिल्कीपुर चुनाव के नतीजों से नया नैरेटिव बना है.ये नैरेटिव है कि बीजेपी कुछ भी कर सकती है.दशकों तक समाजवादी पार्टी का गढ़ रही मिल्कीपुर पर अब भगवा झंडा फहरा रहा है. कुंदरकी में चुनाव जीतना बीजेपी के लिए सपना था. यहां के 65 प्रतिशत वोटर मुस्लिम हैं,पर जीत बीजेपी की हुई. करहल में भी बीजेपी कम वोटों से हारी. अखिलेश यादव यहां से विधायक रहे हैं.
बीजेपी की जीत का मंत्र जानिए
आखिर बीजेपी की जीत का मंत्र क्या है ! कहते हैं ठेस लगने से बुद्धि बढ़ती है. तो बीजेपी ने भी लोकसभा चुनाव के बाद कोर्स करेक्शन शुरू कर दिया है. सबसे पहला काम सरकार और संगठन में दूरी पाटने का हुआ. सीएम योगी आदित्यनाथ और पार्टी के संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह ने मिलकर होम वर्क किया. एक-एक सीट के लिए रणनीति बनी. समाज के हर बिरादरी और तबके तक पहुंचने पर फ़ोकस किया गया.योगी आदित्यनाथ ने धर्मपाल से बात कर संगठन और सरकार वाली साझा कमेटियां बनाई.
मिल्कीपुर की राह कैसे हुई आसान?
अब मिल्कीपुर का ही केस ही ले लीजिए. सबसे पहले योगी सरकार ने यहां सात मंत्रियों की ड्यूटी लगाई. संगठन के साथ मिलकर मंत्रियों ने बूथ प्रभारियों संग कई दौर की बैठकें की. कोशिश ये कि कार्यकर्ता ही पार्टी की शक्ति हैं. सारे गिले शिकवे दूर किए गए. किस बूथ पर किस बिरादरी के सबसे अधिक वोटर हैं. इस डेटा के आधार पर उसी समाज के संगठन के नेता और विधायक की ड्यूटी लगाई गई. गांव-गांव जाकर मीटिंग हुई. एक बार नहीं कई बार. मैन टू मैन मार्किंग की रणनीति संगठन मंत्री धर्मपाल सिंह ने बनाई. एक भी अपना वोटर टूटे नहीं और विपक्ष का वोटर छूटे नहीं. इसी फॉर्मूले पर काम हुआ.
संगठन में बल वाली थ्योरी काम आई
अखिलेश यादव के PDA मतलब पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समीकरण को तोड़ने का प्लान बना. सबसे पहले OBC समाज पर काम शुरू हुआ. एक-एक बूथ की लिस्ट बनी. कितने वोटर हैं. अपने वोटर कौन हैं और विपक्ष के किन वोटरों को अपना बनाया जा सकता है. इसके पीछे संगठन ने कार्यकर्ताओं की टोली लगा दी. जो वोटर बाहर चले गए हैं उन्हें मतदान के दिन बुलाने की रणनीति धर्मपाल सिंह ने बनाई. ऐसे दस लोगों की पहचान कर उनके पीछे एक कार्यकर्ता को लगाया गया. इसका ज़बरदस्त फ़ायदा हुआ. मिल्कीपुर में 414 बूथ हैं. हर बूथ पर कम से कम सौ वोट बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया. नतीजा सामने है.
यहां सपा पर भारी पड़ गई बीजेपी
2 और 2 मिलकर कभी कभी 22 भी हो जाते हैं. यूपी में बीजेपी कैंप में इन दिनों ऐसा ही माहौल है.वरना किसी ने सोचा भी था कि कुंदरकी में पार्टी जीत भी सकती है.पर ये चमत्कार हुआ. ये चमत्कार संगठन और सरकार के तालमेल के कारण हुआ. मुसलमानों के एक तबके ने बीजेपी को वोट किया. करहल में यादव वोट में बंटवारा हो गया. यहां बीजेपी मे अखिलेश यादव के भतीजे के खिलाफ उनके परिवार से ही एक नेता को टिकट दिया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार ने काम किया. संगठन मंत्री धर्मपाल सिंह की अगुवाई में पार्टी नेताओं ने अपनी ज़िम्मेदारी संभाली. बस मिशन पूरा हो गया
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