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20 साल बाद मिला इंसाफ, रेप केस में इंस्पेक्टर सहित सात को 20-20 साल की सजा

यूपी के अलीगढ़ में रेप से जुड़े 23 साल पुराने एक मामले में कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए ना सिर्फ अपराध करने वाले, बल्कि अपराधियों का साथ देने वाले इंस्पेक्टर को भी दोषी मानते हुए सज़ा सुनाई गई है.

20 साल बाद मिला इंसाफ, रेप केस में  इंस्पेक्टर सहित सात को 20-20 साल की सजा
यूपी के अलीगढ़ में रेप के मामले में 20 साल बाद फैसला
अलीगढ़:

कहते हैं न्याय में देरी अन्याय समान है, लेकिन यूपी के अलीगढ़ में रेप से जुड़े 23 साल पुराने एक मामले में कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए ना सिर्फ अपराध करने वाले, बल्कि अपराधियों का साथ देने वाले इंस्पेक्टर को भी दोषी मानते हुए सज़ा सुनाई गई है. अलीगढ़ की एडीजे कोर्ट ने 23 साल पुराने रेप के मामले में तत्कालीन इंस्पेक्टर सहित सात को 20-20 साल की सजा दी है. 

सीबीसीआईडी की जांच में गंभीर खुलासे

अलीगढ़ की एडीजे (एफटीसी फर्स्ट) अंजू राजपूत की अदालत ने साल 2002 के रेप केस की सुनवाई पूरी करते हुए अलीगढ़ के खैर थाने के तत्कालीन निरीक्षक समेत सात आरोपियों को दोषी करार दिया. अदालत ने सभी को 20-20 वर्ष के कठोर कारावास और 50-50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है. वहीं, साक्ष्य के अभाव में दो आरोपियों को बरी कर दिया. इस मामले में सीबीसीआईडी जांच कराई गई थी और सीबीसीआईडी की जांच में गंभीर खुलासे किए गए थे. 

सुबह शौच के लिए खेत गई थी, तभी...

मामला 16 नवंबर 2002 का है. अलीगढ़ के खैर थाना क्षेत्र के एक गांव में दलित किशोरी के साथ तीन युवकों ने सामूहिक दुष्कर्म किया था. वादी ने बताया था कि उसकी नाबालिग बेटी सुबह शौच के लिए खेत गई थी, तभी गांव के साहब सिंह समेत तीन लोगों ने उसके साथ दुष्कर्म किया. बाद में पुलिस ने पीड़िता को गांव के ही दो अन्य युवकों के साथ बरामद किया.

50 से 60 दिन गैंग रेप

रेप से जुड़े इस मामले की जांच के दौरान पीड़िता के 164 के बयान में और भी लोगों का उल्लेख किया गया. उसने बताया तकरीबन 50 से 60 दिन उसके साथ गैंग रेप हुआ. ऐसे में वादी ने पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल उठाते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. अदालत के निर्देश पर पीड़िता के 164 के बयान दर्ज कराए गए और पूरे मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंपी गई थी. 

7 आरोपियों को 20-20 साल की सजा 

हाई कोर्ट के आदेश पर शुरू हुए सीबीसीआईडी जांच के दौरान तत्कालीन निरीक्षक पर गंभीर आरोप सिद्ध हुए कि उन्होंने मामले को दबाने और गुमराह करने का प्रयास किया था. चूंकि मामला 23 साल पुराना है, ऐसे में ट्रायल के दौरान एक आरोपी की मौत हो गई, जबकि एक अन्य का नाम शासन ने वापस ले लिया. बचे हुए सात आरोपियों को अदालत ने दोषी ठहराते हुए 20-20 साल की कैद और 50-50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई.

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