Girindranath Jha
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पूर्णिया में किताब दान अभियान और गाँव-गाँव में लाइब्रेरी की बात
- Tuesday September 21, 2021
- Girindranath Jha
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राहुल कुमार बिहार के पूर्णिया जिला में कुछ ऐसा ही कर रहे हैं. साल 2020 के जनवरी महीने में पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार ने एक अभियान की शुरुआत की थी- ‘अभियान किताब दान’.
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किसानी के संग कलम- स्याही करने वाले फणीश्वर नाथ रेणु
- Sunday March 5, 2017
- Girindranath Jha
आज (4 मार्च) मेरे प्रिय लेखक फणीश्वर नाथ रेणु का जन्मदिन है. रेणु अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन खेत में जब भी फसल की हरियाली देखता हूं तो लगता है कि रेणु हैं, हर खेत के मोड़ पे. उन्हें हम सब आंचलिक कथाकार कहते हैं लेकिन सच यह है कि वे उस फसल की तरह बिखरे हैं जिसमें गांव-शहर सब कुछ समाया हुआ है.
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बात शौचालय की, क्योंकि सवाल 'स्वच्छता' का है...
- Sunday January 29, 2017
- Girindranath Jha
इन दिनों गांव-घर में उत्सव का माहौल है. कुछ मौसम का प्रभाव तो कुछ नई फ़सल के कारण. किसानी समाज के पास जब कुछ पैसा आता है तो सामूहिक स्तर पर कुछ न कुछ आयोजन किए जाते हैं.
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किसानी में कुछ अलग : चनका रेसीडेंसी और इयान
- Thursday December 22, 2016
- Girindranath Jha
देखते-देखते चनका रेसीडेंसी के पहले गेस्ट राइटर इयान वुलफोर्ड का एक हफ्ते का चनका प्रवास खत्म हो गया. उनके संग हम सात दिन रहे. वे चनका में ग्रामीण संस्कृति, ग्राम्य गीत और खेत-पथार को समझ-बूझ रहे थे और मैं इस रेणु साहित्य प्रेमी को समझने-बूझने में लगा था. रेणु मेरे प्रिय लेखक हैं, वे मेरे अंचल से हैं. मुझे वे पसंद हैं 'परती परिकथा' के लिए और लोकगीतों के लिए. इयान वुलफोर्ड भी रेणु साहित्य में डूबकर कुछ न कुछ खोज निकालने वालों में एक हैं.
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम चिट्ठी : हुजूर कभी बिना पूर्व सूचना के भी आइए!
- Tuesday December 6, 2016
- Girindranath Jha
माननीय मुख्यमंत्री जी, आप यात्रा करें लेकिन आपके लिए सबकुछ संवारा न जाए. अच्छा होगा यदि आपकी सरकार की योजनाओं के कारण सबकुछ पहले से सजा-संवरा रहे.
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खेत की पाती, किसान के नाम - बेटे, हार मत मानो, लड़ो
- Friday December 2, 2016
- Girindranath Jha
ऐसा कम ही होता है जब माँ अपने बेटे से यह पूछे कि 'कैसे हो?' मां तो अक्सर यही पूछती है 'ख़ुश हो न! कोई दिक़्क़त नहीं है न?' लेकिन इस बार जब मुल्क में सब पैसे के लिए लाइन में लगे हैं, ठीक उस वक़्त जब तुम्हारी दिक़्क़तों को लेकर सबने चुप्पी साध ली है, तब लगा कि मां अपने बेटे का हालचाल ले, अपनी संतान को हिम्मत दे. तो इसलिए मैंने सोचा कि आज तुमसे लंबी बातें करूं.
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पंजाब का पैसा और मजदूर का दर्द
- Sunday November 20, 2016
- Girindranath Jha
हर साल धान के मौसम में बिहार से भारी संख्या में लोगबाग पंजाब की अनाज मंडियों की तरफ़ जाते हैं. जूट के बोरे में धान पैक कर ट्रक में डालने. चूंकि इसमें दिहाड़ी मज़दूरी की रक़म 400 के क़रीब है, जो बिहार से दुगनी है, तो मेहनतकश मज़दूर जनरल डिब्बे में सवार होकर पंजाब के विभिन्न इलाक़ों की मंडियों में डेरा जमा लेते हैं.
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नोट बंद हुआ है धान नहीं न ?
- Friday November 11, 2016
- Girindranath Jha
इन दिनों जब हर तरफ़ नोट के लिए अफ़रातफ़री मची है, उस परिस्थिति में नोट के बदले धान की बात करने वाले को आप बेवक़ूफ़ भी मान सकते हैं लेकिन यह भी सच है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था अभी भी समाज के हर तबके को साथ लेकर चलती है. पैसा आज भी गाँव में फ़सल के बाद ही चलकर आता है.
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संथाल टोले के बहाने... उत्सव के महीने में गांव की बात
- Saturday October 29, 2016
- Girindranath Jha
भागमभाग वाली जीवनशैली में संथाली बस्ती के लोगों से मिलकर मुझे हमेशा सुकून मिला है. मुझे उनकी ही बोली -बानी में रामायण सुनना अच्छा लगता है, क्योंकि वे राम-सीता की बातें तो करते हैं, लेकिन इन सबके संग धरती मैया के बारे में जो वे बताते हैं, उसमें मुझे माटी का प्रेम मिलता है.
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समाजवादी पार्टी में चाचा-भतीजा संघर्ष और महाभारत की याद...
- Tuesday October 25, 2016
- Girindranath Jha
वैसे यह कटु सत्य है कि राजनीति में पचास वर्षों से अधिक समय से सक्रिय मुलायम इस वक़्त अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं. उन्हें पार्टी को बचाना है लेकिन इससे ज्यादा महत्व वे अपने परिवार की एकजुटता को बनाए रखने को दे रहे हैं.
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गुदरी माई, पीर बाबा और दुर्गा पूजा...
- Monday October 10, 2016
- Girindranath Jha
"मेला जा रहे हो न? घूम के आना तो बताना इस बार क्या नया देखे, और हां मेला से लौटते वक्त पीर बाबा और गुदरी माई को चादर चढ़ा आना." हीरा काका को दुर्गा पूजा के मेले से गजब का लगाव है. गांव की दुनिया में हाट-बाजार से आगे मेला एक अड्डा होता है,जहां हर उम्र के लोग जीवन में खुशी की तलाश में पहुंचते हैं. लेकिन यहां मैं हीरा काका के सवालों के जरिए स्मृति को भी खंगालना चाहूंगा.
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'मेरे हिस्से का कपड़ा तो ब्रिटिश सम्राट ने पहन रखा था' - गांधी
- Monday October 3, 2016
- Girindranath Jha
खेत-खलिहान और किताबों की दुनिया में रमे रहने वाले इस किसान को जिस एक शब्द में डूबने की चाहत है, वह है - 'महात्मा गांधी'. बचपन में गांधी जी हमारे पाठ्यक्रम में आए लेकिन तब इतिहास विषय को लेकर ही उन्हें समझ रहा था, या कहिए समझाया जा रहा था. लेकिन उम्र के साथ गांधी शब्द से अपनापा बढ़ता चला गया.
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धान के नाम में बहुत कुछ रक्खा है...!!
- Monday September 26, 2016
- Girindranath Jha
जापान में धान को प्रधानता दी जाती है. ऐसी बात नहीं है कि वहां अन्य फसलों की खेती नहीं होती है लेकिन यह बड़ी बात है कि वहां खेत का अर्थ धान के खेत से जुड़ा है. वहां धान की आराधना की बड़ी पुरानी परंपरा है.
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#युद्धकेविरुद्ध : क्यों हो रही है युद्ध की बात, आखिर क्यों...?
- Sunday September 25, 2016
- Girindranath Jha
जंग की बात जब भी होती है, मन विचलित हो जाता है. कहां हम 'ग्लोबल' हो जाने की बात कर रहे हैं, बाज़ार का विस्तार कर रहे हैं, एक देश के होनहार बच्चे दूसरे मुल्क की नामचीन यूनिवर्सिटी में तालीम ले रहे हैं, कलाकार अपनी कला का वैश्विक स्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं... ऐसे में सच पूछिए, युद्ध जैसे शब्द से चिढ़ होती है. मत करिए युद्ध की बात, मिलकर-बैठकर बात करिए. बातचीत से हर मसले का हल निकल सकता है, बशर्ते बातचीत गंभीर हो.
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हिन्दी दिवस : 'खिचड़ी' को 'चावल मिश्रित दाल' लिखने की क्या जरूरत...
- Wednesday September 21, 2016
- Girindranath Jha
कार्यालय वाली हिन्दी से इतर गांव में जो हिन्दी है उसमें अंग्रेज़ी भी देसज रंग में आपको मिल जाएगी. वैसे भी भाषा अपनी राह ख़ुद बना लेती है.
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पूर्णिया में किताब दान अभियान और गाँव-गाँव में लाइब्रेरी की बात
- Tuesday September 21, 2021
- Girindranath Jha
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राहुल कुमार बिहार के पूर्णिया जिला में कुछ ऐसा ही कर रहे हैं. साल 2020 के जनवरी महीने में पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार ने एक अभियान की शुरुआत की थी- ‘अभियान किताब दान’.
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किसानी के संग कलम- स्याही करने वाले फणीश्वर नाथ रेणु
- Sunday March 5, 2017
- Girindranath Jha
आज (4 मार्च) मेरे प्रिय लेखक फणीश्वर नाथ रेणु का जन्मदिन है. रेणु अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन खेत में जब भी फसल की हरियाली देखता हूं तो लगता है कि रेणु हैं, हर खेत के मोड़ पे. उन्हें हम सब आंचलिक कथाकार कहते हैं लेकिन सच यह है कि वे उस फसल की तरह बिखरे हैं जिसमें गांव-शहर सब कुछ समाया हुआ है.
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बात शौचालय की, क्योंकि सवाल 'स्वच्छता' का है...
- Sunday January 29, 2017
- Girindranath Jha
इन दिनों गांव-घर में उत्सव का माहौल है. कुछ मौसम का प्रभाव तो कुछ नई फ़सल के कारण. किसानी समाज के पास जब कुछ पैसा आता है तो सामूहिक स्तर पर कुछ न कुछ आयोजन किए जाते हैं.
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किसानी में कुछ अलग : चनका रेसीडेंसी और इयान
- Thursday December 22, 2016
- Girindranath Jha
देखते-देखते चनका रेसीडेंसी के पहले गेस्ट राइटर इयान वुलफोर्ड का एक हफ्ते का चनका प्रवास खत्म हो गया. उनके संग हम सात दिन रहे. वे चनका में ग्रामीण संस्कृति, ग्राम्य गीत और खेत-पथार को समझ-बूझ रहे थे और मैं इस रेणु साहित्य प्रेमी को समझने-बूझने में लगा था. रेणु मेरे प्रिय लेखक हैं, वे मेरे अंचल से हैं. मुझे वे पसंद हैं 'परती परिकथा' के लिए और लोकगीतों के लिए. इयान वुलफोर्ड भी रेणु साहित्य में डूबकर कुछ न कुछ खोज निकालने वालों में एक हैं.
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम चिट्ठी : हुजूर कभी बिना पूर्व सूचना के भी आइए!
- Tuesday December 6, 2016
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माननीय मुख्यमंत्री जी, आप यात्रा करें लेकिन आपके लिए सबकुछ संवारा न जाए. अच्छा होगा यदि आपकी सरकार की योजनाओं के कारण सबकुछ पहले से सजा-संवरा रहे.
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खेत की पाती, किसान के नाम - बेटे, हार मत मानो, लड़ो
- Friday December 2, 2016
- Girindranath Jha
ऐसा कम ही होता है जब माँ अपने बेटे से यह पूछे कि 'कैसे हो?' मां तो अक्सर यही पूछती है 'ख़ुश हो न! कोई दिक़्क़त नहीं है न?' लेकिन इस बार जब मुल्क में सब पैसे के लिए लाइन में लगे हैं, ठीक उस वक़्त जब तुम्हारी दिक़्क़तों को लेकर सबने चुप्पी साध ली है, तब लगा कि मां अपने बेटे का हालचाल ले, अपनी संतान को हिम्मत दे. तो इसलिए मैंने सोचा कि आज तुमसे लंबी बातें करूं.
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पंजाब का पैसा और मजदूर का दर्द
- Sunday November 20, 2016
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हर साल धान के मौसम में बिहार से भारी संख्या में लोगबाग पंजाब की अनाज मंडियों की तरफ़ जाते हैं. जूट के बोरे में धान पैक कर ट्रक में डालने. चूंकि इसमें दिहाड़ी मज़दूरी की रक़म 400 के क़रीब है, जो बिहार से दुगनी है, तो मेहनतकश मज़दूर जनरल डिब्बे में सवार होकर पंजाब के विभिन्न इलाक़ों की मंडियों में डेरा जमा लेते हैं.
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नोट बंद हुआ है धान नहीं न ?
- Friday November 11, 2016
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इन दिनों जब हर तरफ़ नोट के लिए अफ़रातफ़री मची है, उस परिस्थिति में नोट के बदले धान की बात करने वाले को आप बेवक़ूफ़ भी मान सकते हैं लेकिन यह भी सच है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था अभी भी समाज के हर तबके को साथ लेकर चलती है. पैसा आज भी गाँव में फ़सल के बाद ही चलकर आता है.
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संथाल टोले के बहाने... उत्सव के महीने में गांव की बात
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भागमभाग वाली जीवनशैली में संथाली बस्ती के लोगों से मिलकर मुझे हमेशा सुकून मिला है. मुझे उनकी ही बोली -बानी में रामायण सुनना अच्छा लगता है, क्योंकि वे राम-सीता की बातें तो करते हैं, लेकिन इन सबके संग धरती मैया के बारे में जो वे बताते हैं, उसमें मुझे माटी का प्रेम मिलता है.
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समाजवादी पार्टी में चाचा-भतीजा संघर्ष और महाभारत की याद...
- Tuesday October 25, 2016
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वैसे यह कटु सत्य है कि राजनीति में पचास वर्षों से अधिक समय से सक्रिय मुलायम इस वक़्त अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं. उन्हें पार्टी को बचाना है लेकिन इससे ज्यादा महत्व वे अपने परिवार की एकजुटता को बनाए रखने को दे रहे हैं.
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गुदरी माई, पीर बाबा और दुर्गा पूजा...
- Monday October 10, 2016
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"मेला जा रहे हो न? घूम के आना तो बताना इस बार क्या नया देखे, और हां मेला से लौटते वक्त पीर बाबा और गुदरी माई को चादर चढ़ा आना." हीरा काका को दुर्गा पूजा के मेले से गजब का लगाव है. गांव की दुनिया में हाट-बाजार से आगे मेला एक अड्डा होता है,जहां हर उम्र के लोग जीवन में खुशी की तलाश में पहुंचते हैं. लेकिन यहां मैं हीरा काका के सवालों के जरिए स्मृति को भी खंगालना चाहूंगा.
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'मेरे हिस्से का कपड़ा तो ब्रिटिश सम्राट ने पहन रखा था' - गांधी
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खेत-खलिहान और किताबों की दुनिया में रमे रहने वाले इस किसान को जिस एक शब्द में डूबने की चाहत है, वह है - 'महात्मा गांधी'. बचपन में गांधी जी हमारे पाठ्यक्रम में आए लेकिन तब इतिहास विषय को लेकर ही उन्हें समझ रहा था, या कहिए समझाया जा रहा था. लेकिन उम्र के साथ गांधी शब्द से अपनापा बढ़ता चला गया.
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धान के नाम में बहुत कुछ रक्खा है...!!
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जापान में धान को प्रधानता दी जाती है. ऐसी बात नहीं है कि वहां अन्य फसलों की खेती नहीं होती है लेकिन यह बड़ी बात है कि वहां खेत का अर्थ धान के खेत से जुड़ा है. वहां धान की आराधना की बड़ी पुरानी परंपरा है.
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#युद्धकेविरुद्ध : क्यों हो रही है युद्ध की बात, आखिर क्यों...?
- Sunday September 25, 2016
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जंग की बात जब भी होती है, मन विचलित हो जाता है. कहां हम 'ग्लोबल' हो जाने की बात कर रहे हैं, बाज़ार का विस्तार कर रहे हैं, एक देश के होनहार बच्चे दूसरे मुल्क की नामचीन यूनिवर्सिटी में तालीम ले रहे हैं, कलाकार अपनी कला का वैश्विक स्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं... ऐसे में सच पूछिए, युद्ध जैसे शब्द से चिढ़ होती है. मत करिए युद्ध की बात, मिलकर-बैठकर बात करिए. बातचीत से हर मसले का हल निकल सकता है, बशर्ते बातचीत गंभीर हो.
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हिन्दी दिवस : 'खिचड़ी' को 'चावल मिश्रित दाल' लिखने की क्या जरूरत...
- Wednesday September 21, 2016
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