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This Article is From Dec 05, 2016

जूनियर हॉकी वर्ल्‍डकप में इस बार भारतीय टीम जीत सकती है खिताब : दीपक ठाकुर

जूनियर हॉकी वर्ल्‍डकप में इस बार भारतीय टीम जीत सकती है खिताब : दीपक ठाकुर
जूनियर हॉकी वर्ल्‍डकप में हरजीत सिंह (बाएं) भारतीय टीम के कप्‍तान हैं (फाइल फोटो)
  • 2001 में विजेता बनी भारतीय टीम में शामिल थे फारवर्ड दीपक
  • भारतीय टीम ने तब फाइनल में अर्जेंटीना को 6-1 से हराया था
  • उस समय टूर्नामेंट में दीपक ठाकुर ने दागे थे सबसे ज्‍यादा गोल
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नई दिल्ली.: भारत को पंद्रह बरस पहले एकमात्र जूनियर हॉकी वर्ल्‍डकप दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले अनुभवी फारवर्ड दीपक ठाकुर का मानना है कि भारतीय हॉकी का अस्तित्व बचाने के लिये वह टूर्नामेंट एक जंग की तरह था और सुविधाओं के अभाव में भी हर खिलाड़ी के निजी हुनर के दम पर टीम ने नामुमकिन को मुमकिन कर डाला.

भारत ने 2001 में ऑस्ट्रेलिया के होबर्ट में फाइनल में अर्जेंटीना को 6-1 से हराकर एकमात्र जूनियर हॉकी वर्ल्‍डकप जीता था. ठाकुर ने उस टूर्नामेंट में सर्वाधिक गोल किए जबकि देवेश चौहान सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर रहे.सेमीफाइनल में भारत ने जर्मनी को 3-2 से हराया था. अगला जूनियर हॉकी वर्ल्‍डकप आठ से 18 दिसंबर तक लखनऊ में खेला जा रहा है और मेजबान भारत को इसका प्रबल दावेदार माना जा रहा है.

ठाकुर ने यादों की परतें खोलते हुए कहा,‘अब हम सोचते हैं तो हैरानी होती है कि हम कैसे जीत गए. वास्तव में वह टीम सिर्फ अपनी क्षमता के दम पर खेली और जीती थी. अटैक, डिफेंस या मिडफील्ड हर विभाग में हमारे पास बेहतरीन खिलाड़ी थे. हमें आज जैसी सुविधाएं नहीं मिली थीं लेकिन भारतीय हॉकी का वजूद बनाए रखने का जुनून हमारी प्रेरणा बना.’

पूर्व कप्तान राजपाल सिंह ने भी कहा कि उस टीम की क्षमता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी घरेलू स्तर पर सारे खिलाड़ी सक्रिय हैं. राजपाल ने कहा,‘आप उस टीम की क्षमता का अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि उसका 18वां खिलाड़ी 2010 में सीनियर टीम का कप्तान बना और वह खिलाड़ी मैं था. घरेलू हॉकी में आज भी उनमें से अधिकांश खिलाड़ी सक्रिय हैं.’सुविधाओं के अभाव के बारे में पूछने पर ठाकुर ने कहा,‘हमें याद है कि हैदराबाद में गर्मी में अभ्‍यास करने के बाद हम होबर्ट में कड़ाके की सर्दी में खेले. यही नहीं, खाना इतना खराब था कि पूरे टूर्नामेंट में पिज्जा खाकर गुजारा किया और हालत यह हो गई थी कि पिज्जा खा-खाकर पेट में दर्द होने लगा था. अब सोचते हैं तो हैरानी होती है कि हम कैसे खेल गए.’

उन्होंने कहा,‘अब तो खिलाड़ियों को सारी सुविधाएं मिल रही हैं. हॉकी में पेशेवरपन आ गया है और अनुकूलन वगैरह का पूरा ध्यान रखा जाता है. अब खिलाड़ी तीन-तीन दिन ट्रेन से सफर करके खेलने नहीं जाते. सुविधाओं के अभाव के बावजूद हमारी टीम में सकारात्मकता थी और हमने पहले ही दिन से ठान रखा था कि भारतीय हॉकी को बचाना है तो यह टूर्नामेंट जीतना ही है.’ पिछले पंद्रह साल में भारत उस सफलता को दोहरा नहीं सका लेकिन इन दोनों धुरंधरों को उम्मीद है कि इस बार अपनी सरजमीं पर टीम पोडियम फिनिश कर सकती है.

ठाकुर ने कहा,‘सेमीफाइनल तक तो भारत की राह आसान लग रही है और घरेलू मैदान पर खेलने का फायदा भी मिलेगा. टीम की तैयारी पुख्ता है और काफी एक्सपोजर मिला है. कोई माइनस प्वाइंट नहीं दिख रहा तो मुझे नहीं लगता कि खिताब तक पहुंचना उतना मुश्किल होना चाहिए.’ वहीं राजपाल ने कहा,‘इस बार पोडियम तक जरूर जा सकते हैं. प्रारूप भी ऐसा है कि इसका फायदा हो सकता है. पहले लीग, सुपर लीग, सेमीफाइनल और फाइनल वाला प्रारूप था लेकिन अब लीग , क्वार्टर फाइनल और फाइनल खेला जाता है. यह पक्ष में भी जा सकता है और खिलाफ भी. देखते हैं कि टीम कैसे इसका फायदा उठाती है.’

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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