 
                                            कोच पॉल वैन हास (फाइल फोटो)
                                                                                                                        
                                        
                                        
                                                                                नई दिल्ली: 
                                        भारतीय हॉकी में एक बार फिर उथल-पुथल मची हुई है। कोच पॉल वैन हास कह रहे हैं कि उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है जबकि हॉकी इंडिया के चीफ़ नरेंदर बत्रा कह रहे हैं कि उन्हें हटाया नहीं गया है।
वैन बनाम बत्रा
जो भी हो इन सबके बीच सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है भारतीय हॉकी का। जबकि टीम को रियो ओलिंपिक की तैयारी में जुट जाना चाहिए था। ओलिंपिक में अब करीब 1 साल का ही वक्त बचा है।
अहम की लड़ाई
दरअसल, यह अहम की लड़ाई है। घटना बेल्जियम में हुए वर्ल्ड हॉकी लीग की है। भारत ने मलेशिया को 3-2 से हराया ही था कि बत्रा मैदान पर पहुंच कर टीम से बात करने लगे। वॉन ने उन्हें मैदान से बाहर जाने को कह दिया। वॉन का कहना था कि मैदान पर टीम को नसीहत देना कोच का काम होता है। बत्रा को ये बात नागवार गुज़री। शायद कोच पॉल वॉन की ग़लती ये थी कि उन्हें ये बात थोड़े अदब से कहनी चाहिए थी।
आई एम द बॉस
इसके सिर्फ़ 20 दिन बाद कोच पॉल वैन हास को अहसास दिलाया जा रहा है कि बॉस कौन है। हिमाचल में चल रहे राष्ट्रीय कैंप के लिए वॉन को नहीं बुलाया गया।
पॉल वैन हास का कहना है, मुझे राष्ट्रीय कैंप में आने से मना कर दिया गया। मुझे भारत आने के लिए टिकट नहीं दिया गया। हैरानी की बात है कि एक साल के अंदर दूसरी बार कोच को हटाया गया है। एशिया कप में गोल्ड जीतकर भारत ने रियो ओलिंपिक के लिए क्वॉलिफ़ाई किया। इसके 47 दिनों के बाद ही कोच टेरी वॉल्श को बर्ख़ास्त कर दिया गया था। इनसे पहले मोटी तनख्वाह पर लाए गए होज़े ब्रासा और माइकल नॉब्स को भी विपरीत हालात में जाना पड़ा था।
नरेंदर बत्रा के हॉकी इंडिया ने 5 साल में 4 तो केपीएस गिल के भारतीय हॉकी संघ ने 14 साल में 17 कोच बदल डाले।
इस बीच SAI की चुप्पी हैरान कर रही है। 24 जुलाई को हॉकी इंडिया की स्पेशल समिती की बैठक में आगे का रास्ता तय होगा है। बेल्जियम वर्ल्ड हॉकी लीग में चौथे स्थान पर रहे भारतीय हॉकी टीम को ओलिंपिक के पहले लंबी तैयारी करनी है। इस उथलपुथल के बीच क्या तैयारी होगी?
                                                                        
                                    
                                वैन बनाम बत्रा
जो भी हो इन सबके बीच सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है भारतीय हॉकी का। जबकि टीम को रियो ओलिंपिक की तैयारी में जुट जाना चाहिए था। ओलिंपिक में अब करीब 1 साल का ही वक्त बचा है।
अहम की लड़ाई
दरअसल, यह अहम की लड़ाई है। घटना बेल्जियम में हुए वर्ल्ड हॉकी लीग की है। भारत ने मलेशिया को 3-2 से हराया ही था कि बत्रा मैदान पर पहुंच कर टीम से बात करने लगे। वॉन ने उन्हें मैदान से बाहर जाने को कह दिया। वॉन का कहना था कि मैदान पर टीम को नसीहत देना कोच का काम होता है। बत्रा को ये बात नागवार गुज़री। शायद कोच पॉल वॉन की ग़लती ये थी कि उन्हें ये बात थोड़े अदब से कहनी चाहिए थी।
आई एम द बॉस
इसके सिर्फ़ 20 दिन बाद कोच पॉल वैन हास को अहसास दिलाया जा रहा है कि बॉस कौन है। हिमाचल में चल रहे राष्ट्रीय कैंप के लिए वॉन को नहीं बुलाया गया।
पॉल वैन हास का कहना है, मुझे राष्ट्रीय कैंप में आने से मना कर दिया गया। मुझे भारत आने के लिए टिकट नहीं दिया गया। हैरानी की बात है कि एक साल के अंदर दूसरी बार कोच को हटाया गया है। एशिया कप में गोल्ड जीतकर भारत ने रियो ओलिंपिक के लिए क्वॉलिफ़ाई किया। इसके 47 दिनों के बाद ही कोच टेरी वॉल्श को बर्ख़ास्त कर दिया गया था। इनसे पहले मोटी तनख्वाह पर लाए गए होज़े ब्रासा और माइकल नॉब्स को भी विपरीत हालात में जाना पड़ा था।
नरेंदर बत्रा के हॉकी इंडिया ने 5 साल में 4 तो केपीएस गिल के भारतीय हॉकी संघ ने 14 साल में 17 कोच बदल डाले।
इस बीच SAI की चुप्पी हैरान कर रही है। 24 जुलाई को हॉकी इंडिया की स्पेशल समिती की बैठक में आगे का रास्ता तय होगा है। बेल्जियम वर्ल्ड हॉकी लीग में चौथे स्थान पर रहे भारतीय हॉकी टीम को ओलिंपिक के पहले लंबी तैयारी करनी है। इस उथलपुथल के बीच क्या तैयारी होगी?
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