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This Article is From Dec 27, 2022

कश्मीरी पंडित कर्मियों ने घाटी से बाहर तबादला रोकने के आदेश के खिलाफ CAT का दरवाजा खटखटाया

आतंकवादियों द्वारा लक्षित हमले के मद्देनजर घाटी से बाहर स्थानांतरित करने की मांग को लेकर कश्मीरी पंडित कर्मचारी गत सात महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं.

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कश्मीरी पंडित कर्मियों ने घाटी से बाहर तबादला रोकने के आदेश के खिलाफ CAT का दरवाजा खटखटाया
आतंकियों के टारगेटेड अटैक के मद्देनजर घाटी से बाहर स्थानांतरित करने की मांग को लेकर कश्मीरी पंडित कर्मचारी प्रदर्शन कर रहे हैं
जम्मू:

प्रदर्शन कर रहे कश्मीरी पंडित कर्मचारियों ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन के उस आदेश के खिलाफ केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) का दरवाजा खटखटाया है जिसमें प्रधानमंत्री विशेष पैकेज के तहत नौकरी प्राप्त कर्मियों का तबादला घाटी से बाहर नहीं करने की बात कही गई है. कर्मचारियों ने कैट की श्रीनगर पीठ का रुख जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा की उस घोषणा के बाद किया है जिसमें कहा गया था कि प्रदर्शन कर रहे कर्मियों को वेतन नहीं दिया जाएगा. उप राज्यपाल की उक्त घोषणा की सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने आलोचना की थी.

उल्लेखनीय है कि आतंकवादियों द्वारा लक्षित हमले के मद्देनजर घाटी से बाहर स्थानांतरित करने की मांग को लेकर कश्मीरी पंडित कर्मचारी गत सात महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रदर्शन कर रहे कर्मियों ने सरकार द्वारा सुरक्षित माहौल मुहैया कराने और लंबित वेतन देने तक संबंधित स्थानांतरण स्थलों पर कार्यभार संभालने से भी अंतरिम राहत देने की मांग की है.भूपिंदर भट्ट और योगेश पंडिता की ओर से दायर याचिका 30 दिसंबर को अधिकरण का कार्य शुरू होने के बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने की उम्मीद है.कर्मचारियों ने जम्मू-कश्मीर कश्मीरी पंडित प्रवासी (विशेष अभियान) भर्ती नियम -2009 के उप नियम चार के चौथे नियम को चुनौती दी है, जिसमें प्रावधान है कि योजना के तहत नौकरी पाने वाले कर्मी अगर किसी कारण से दोबारा घाटी से पलायन करते हैं तो वे बिना किसी पूर्व सूचना के अपनी नौकरी खो देंगे और उनको बर्खास्त किया जा सकता है.

कर्मचारियों ने अपनी याचिका में कहा, ‘‘लक्षित हत्याओं से स्पष्ट हो गया है कि प्रतिवादी (जम्मू-कश्मीर प्रशासन) कश्मीरी पंडित कर्मियों को उनके तैनाती स्थल पर सुरक्षित माहौल मुहैया कराने में असफल रहा है, लेकिन नियम कश्मीरी पंडितों की जिंदगी और सुरक्षा को खतरे में डालता है, जो स्पष्ट रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 में प्रदत्त जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है और ऐसे में इसे रद्द किए जाने की आवश्यकता है.''

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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