नागपुर : संघ मुख्यालय में पहुंचे दस हजार खाकी फुलपैंट, अक्टूबर में नेकर होगी रिटायर

नागपुर : संघ मुख्यालय में पहुंचे दस हजार खाकी फुलपैंट, अक्टूबर में नेकर होगी रिटायर

संघ कार्यकर्याओं का नया गणवेश.

खास बातें

  • विजयादशमी पर्व पर नए गणवेश में नजर आएंगे संघ कार्यकर्ता
  • 90 साल बाद आरएसएस ने हाफ पैंट त्यागकर फुलपैंट अपनाया
  • नए पहनावे को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में मिलीजुली प्रतिक्रियाएं
नागपुर:

महाराष्ट्र के नागपुर में स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय में सोमवार को दस हजार खाकी फुलपैंट पहुंच गए. पहली किश्त में पहुंचे इन पैंटों में से प्रत्येक की कीमत 250 रुपये है. यह फुलपैंट आरएसएस के स्वयंसेवकों द्वारा पहने जाने वाले खाकी हाफपैंट की जगह लेंगे.

भाजपा के वैचारिक संरक्षक संगठन आरएसएस के सदस्यों द्वारा खाकी हाफपैंट पिछले 90 सालों से पहने जा रहे हैं. इसी साल विजयादशमी पर्व पर 11 अक्टूबर को संघ के सदस्य हाफ पैंट की जगह फुलपैंट को अपना लेंगे.

संघ के नागपुर कार्यालय में कार्यकर्ताओं के फुलपैंट में नए लुक पर मिलीजुली प्रतिक्रियाएं सामने आईं. पुराने सदस्यों का कहना है कि वे हाफपैंट को प्राथमिकता देंगे क्योंकि यह पहनावा मार्शल आर्ट और मार्च में सुविधाजनक होता है. उनका यह भी कहना है कि हाफपैंट आरएसएस के कार्यकर्ताओं को अलग पहचान देने वाला पहनावा है.
 
हालांकि आरएसएस प्रमुख 65 वर्षीय मोहन भागवत के नेतृत्व में काम करने वाले संघ के युवा सदस्यों का तर्क है कि खाकी फुलपैंट युवाओं को संघ से जुड़ने के लिए प्रेरित करेगा. आरएएसएस का मानना है कि कई युवा हाफपैंट और उसको लेकर किए जाने वाले मजाक के कारण संघ में शामिल होने से कतराते हैं.   

संघ ने गणवेश बदलने का फैसला इसी साल के शुरुआती दिनों में लिया था. खाकी फुलपैंट के साथ सफेद शर्ट, काली टोपी, ब्राउन मोजे और बांस की लाठी गणवेश में शामिल होगी. संघ के नेताओं ने पैंट का रंग बदलकर ग्रे करने का भी विचार किया था लेकिन सहमति इस बात पर बनी कि खाकी रंग राजनीतिक प्रतीक है और यह संघ के साथ कई वर्षों  से जुड़ा है इसलिए इसे नहीं छोड़ा जा सकता.  

इससे पहले संघ ने सन 2011 में अपने गणवेश में लेदर बेल्ट की जगह मोटे कैनवास बैल्ट को शामिल किया था. शुरुआत से संघ के गणवेश में खाकी शर्ट और खाकी हाफपैंट शामिल था. वर्ष 1940 में खाकी शर्ट की जगह सफेद शर्ट शामिल की गई.  

संघ के गणवेश में परिवर्तन का फैसला इस विषय पर करीब दस साल तक चली बहस और सर्वेक्षण के बाद लिया गया. संघ के एक 12 सदस्यीय दल ने देश भर में दौरा करके इस बारे में विचार भी जाने थे.


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