अपने दोस्त संतोष को मुखाग्नि देते रज्जाक (IANS फोटो)
बैतूल (एमपी):
अब तक आपने दोस्ती के कम ही ऐसे किस्से सुने होंगे, जब किसी मुस्लिम ने हिंदू मित्र का अंतिम संस्कार कर दोस्ती का फर्ज निभाया हो, मगर मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में अब्दुल रज्जाक ने अपने दोस्त संतोष सिंह ठाकुर का पूरे हिंदू रिति-रिवाज से अंतिम संस्कार कर दोस्ती की मिसाल कायम की है।
दोस्ती में धर्म नहीं रही कभी बाधा
ऑटो रिक्शा चलाने वाले रज्जाक का अजीज दोस्त था संतोष। उनकी इस दोस्ती में धर्म कभी बाधा नहीं बना। रज्जाक ऑटो चलाता था और संतोष मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करता था। दोनों के परिवार सोनाघाटी क्षेत्र में रहते हैं। संतोष का स्वास्थ्य करीब 12 दिन पहले बिगड़ गया। उसे टीबी और पीलिया बताया गया। अस्पताल में भर्ती संतोष की रविवार सुबह मौत हो गई।
अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं थे पैसे
संतोष और रज्जाक दोनों ही पेशे से मजदूर हैं, इसलिए उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह अंतिम संस्कार कर सकें। लेकिन रज्जाक और संतोष की पत्नी छायाबाई नहीं चाहती थी कि संतोष को लावारिस की तरह दफनाया जाए। उन्होंने यह बात जिला अस्पताल में पदस्थ अस्थिरोग विशेषज्ञ डॉ. रूपेश पद्माकर को बताई। डॉ. रूपेश पद्माकर ने सामाजिक संगठन 'जनआस्था' के संजय शुक्ला से संपर्क किया। जनआस्था की टीम के महेश साहू और उनके दोस्तों ने अंतिम संस्कार की सभी व्यवस्था करा दी।
संतोष के अंतिम संस्कार के लिए सामग्री का इंतजाम होने के बाद समस्या थी कि मुखाग्नि कौन दे। संतोष का कोई बेटा नहीं था। रिश्तेदार भी मौजूद नहीं थे। इसलिए रज्जाक ने खुद अपने दोस्त को मुखाग्नि देने का फैसला किया। गंज स्थित मोक्षधाम में हिंदू रीति-रिवाज से संतोष को रज्जाक ने मुखाग्नि देकर दोस्ती का फर्ज निभाया।
दोस्ती का धर्म निभाया
रज्जाक का कहना है कि उसकी और संतोष की दोस्ती किसी धर्म पर टिकी नहीं थी, लिहाजा उसने तो उसे मुखाग्नि देकर दोस्ती का धर्म निभाया है। वह श्राद्धकर्म भी हिंदू रीति-रिवाज के मुताबिक करेगा।
जनआस्था के संस्थापक संजय शुक्ला ने बताया कि लावारिस शवों और गरीबों के अंतिम संस्कार में सहयोग करने वाली उनकी संस्था ने संतोष के अंतिम संस्कार में सहयोग कर अपनी जिम्मेदारी निभाई है। शुक्ला ने कहा कि रज्जाक ने संतोष का अंतिम संस्कार कर जाति-धर्म के बंधनों की परवाह किए बगैर दोस्ती की मिसाल कायम की है। वह सच्चा इंसान है।
दोस्ती में धर्म नहीं रही कभी बाधा
ऑटो रिक्शा चलाने वाले रज्जाक का अजीज दोस्त था संतोष। उनकी इस दोस्ती में धर्म कभी बाधा नहीं बना। रज्जाक ऑटो चलाता था और संतोष मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करता था। दोनों के परिवार सोनाघाटी क्षेत्र में रहते हैं। संतोष का स्वास्थ्य करीब 12 दिन पहले बिगड़ गया। उसे टीबी और पीलिया बताया गया। अस्पताल में भर्ती संतोष की रविवार सुबह मौत हो गई।
अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं थे पैसे
संतोष और रज्जाक दोनों ही पेशे से मजदूर हैं, इसलिए उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह अंतिम संस्कार कर सकें। लेकिन रज्जाक और संतोष की पत्नी छायाबाई नहीं चाहती थी कि संतोष को लावारिस की तरह दफनाया जाए। उन्होंने यह बात जिला अस्पताल में पदस्थ अस्थिरोग विशेषज्ञ डॉ. रूपेश पद्माकर को बताई। डॉ. रूपेश पद्माकर ने सामाजिक संगठन 'जनआस्था' के संजय शुक्ला से संपर्क किया। जनआस्था की टीम के महेश साहू और उनके दोस्तों ने अंतिम संस्कार की सभी व्यवस्था करा दी।
संतोष के अंतिम संस्कार के लिए सामग्री का इंतजाम होने के बाद समस्या थी कि मुखाग्नि कौन दे। संतोष का कोई बेटा नहीं था। रिश्तेदार भी मौजूद नहीं थे। इसलिए रज्जाक ने खुद अपने दोस्त को मुखाग्नि देने का फैसला किया। गंज स्थित मोक्षधाम में हिंदू रीति-रिवाज से संतोष को रज्जाक ने मुखाग्नि देकर दोस्ती का फर्ज निभाया।
दोस्ती का धर्म निभाया
रज्जाक का कहना है कि उसकी और संतोष की दोस्ती किसी धर्म पर टिकी नहीं थी, लिहाजा उसने तो उसे मुखाग्नि देकर दोस्ती का धर्म निभाया है। वह श्राद्धकर्म भी हिंदू रीति-रिवाज के मुताबिक करेगा।
जनआस्था के संस्थापक संजय शुक्ला ने बताया कि लावारिस शवों और गरीबों के अंतिम संस्कार में सहयोग करने वाली उनकी संस्था ने संतोष के अंतिम संस्कार में सहयोग कर अपनी जिम्मेदारी निभाई है। शुक्ला ने कहा कि रज्जाक ने संतोष का अंतिम संस्कार कर जाति-धर्म के बंधनों की परवाह किए बगैर दोस्ती की मिसाल कायम की है। वह सच्चा इंसान है।
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