मध्य प्रदेश में भिंड जिले के अमाह गांव में एक परिवार पर कोरोना का कहर इस तरह से टूटा की पूरा परिवार बिखर गया. कोरोना से पहले पिता की मौत हुई, फिर मां भी चल बसी. अब इस परिवार में तीन बच्चियां और दो बच्चे हैं, जो गांववालों से भीख मांगकर खाने खाते हैं. झोपड़ी टूटी है, बारिश हुई तो श्मशान में टीन शेड के नीचे सो जाते हैं. इनकी कच्ची मड़ैय्या को घर मान लें, ज्यादा कमरे नहीं हैं सो 10 साल की निशा कुछ यूं ही आंगन बुहार लेती है. ठीक ही है कि दो बहनें तीन साल की मनीषा और दो साल की अनीता की चोटी गूंथनी नहीं पड़ती, बाल छोटे हैं. हां, छह साल का बाबू राजा कुछ यूं जींस पकड़े रहता है. सात महीने का गोलू भोला है. दूध से काम चला लेता है. निशा कहती है, दूध पानी मिल जाता है, कपड़े भी मिल जाते हैं. कच्ची मड़ैय्या में रहते हैं, पानी बरसता है तो मरघट में चले जाते हैं.
पिता राघवेंद्र वाल्मीकि रिक्शा चलाते थे, फरवरी में उनकी, मई में मां की कोरोना से मौत हो गई.बच्चे सरकारी फाइलों के मोहताज हैं, मां-बाप काम करने उरई चले गये थे.सरकार ने कोरोना से अनाथ हुए बच्चों को 5000 देने का ऐलान किया, लेकिन इन बच्चों के बीच दो राज्यों की कागजी दीवार है. pic.twitter.com/ss5ToP759T
— Anurag Dwary (@Anurag_Dwary) August 27, 2021
अमाह गांव के सारे घर इनके घर हैं, किसी भी दरवाजे पर जाते हैं, रोटी मिल जाती है. गांववालों ने ही कपड़े दिए हैं, बस मड़ैय्या बारिश में टपकी तो उसी मुक्तिधाम के टीन शेड का आसरा जहां पिता छोड़ गए. सचिन शर्मा अमाह में ही रहते हैं, कहते हैं सरपंच ने दूसरे अधिकारियों को सूचित किया लेकिन कुछ नहीं हुआ, लेकिन पूर्व मंत्री गोविंद सिंह ने आला अधिकारियों को सूचित किया तब कहीं जाकर कुछ कागज बने. इनकी जिंदगी दस्तावेजों पर लटकी है. वहीं नरेंद्र कोरब का कहना है कि गांव के अंदर से लोगों की भावना जागृत हुई कि इनकी मदद करनी है. शासन की नाकामी है, कोरोना में बताया तो था हर व्यक्ति की मदद करेंगे, लेकिन वो कागजों के बग़ैर नहीं होती.
बस मड़ैय्या बारिश में टपकी तो उसी मुक्तिधाम के टीन शेड का आसरा जहां पिता छोड़ गये. pic.twitter.com/MVOXhMcU2q
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पिता राघवेंद्र वाल्मीकि रिक्शा चलाकर परिवार चलाते थे, फरवरी में कोरोना से मौत हो गई, पत्नी अपने पांच बच्चों को लेकर गांव आई, मई में उसकी भी मौत हो गई. बच्चे सरकारी फाइलों के मोहताज हैं. मां-बाप काम करने यूपी के उरई चले गये थे.इनके पास कोई सरकारी दस्तावेज नहीं हैं, प्रशासन कह रहा है हर संभव मदद करेंगे.
इनकी मड़ैय्या को घर मान लें, 10 साल की निशा कुछ यूं ही आंगन बुहार लेती है. 3 साल की मनीषा और 2 साल की अनीता की चोटी गूंथनी नहीं पड़ती बाल छोटे हैं. हां 6 साल का बाबू राजा कुछ यूं जींस पकड़े बहन के समोसे तरेर कर देखता है. 7 महीने का गोलू भोला है दूध से काम चला लेता है. pic.twitter.com/tkCyBtA1mq
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भिंड के कलेक्टर सतीश कुमार एस ने कहा कि उनके सबूत इकठ्ठा करके अगर बाल कल्याण योजना में पात्र रहेंगे तो जल्द सुविधा करेंगे, लेकिन अभी प्राथमिकता है शिशु गृह में शिफ्ट कर दें. दस्तावेज जो भी है जेनेरट कर सकते हैं. पंचनामा और ग्राम पंचायत के आधार पर जो दस्तावेज मिल सकते हैं वो बनाएंगे. सरकार ने कोरोना से अनाथ हुए बच्चों को 5000 रुपये देने का ऐलान किया है, लेकिन इन बच्चों के बीच दो राज्यों की कागजी दीवार है.
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