मुंबई के होम बायर्स के हालात. (प्रतीकात्मक फोटो)
NDTV Campaign For Home Buyers: अपना घर, हर किसी का सपना होता है. इस सपने को साकार करने के लिए लोग दिन रात मेहनत करते हैं और पाई-पाई जो़कर इस सपने को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ाते हैं. लेकिन कई बार फ्रॉड बिल्डर्स के चक्कर में फंसकर अपनी जमा-पूंजी गंवा बैठते हैं. ये बिल्डर ग्राहकों से तो पैसा ले लेते हैं और समय पर घर नहीं देते. कई प्रोजेक्ट सालों तक अटके ही रहते हैं. वहीं कई बिल्डर घर देने के नाम पर बड़े-बड़े वादे कर प्रोजेक्ट लॉन्च करते है, लेकिन बाद में सुविधाएं पूरी देते ही नहीं. मुंबई (Mumbai Home Buyers) और उसके आसपास का भी हाल कुछ ऐसा ही है. NDTV की खास मुहिम में हमारी सहयोगी सुजाता द्विवेदी ने होम बायर्स की परेशानियों और हालात को बेहतर तरीके से समझने की कोशिश की, क्या है उनका दर्द जानिए.
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41 अवैध इमारतें गिरने से 8,000 लोग बेघर
मुंबई और आसपास के इलाकों में बिल्डर लॉबी का खेल जारी है. पैसा लिया जाता है, लेकिन घर नहीं दिया जाता. बिल्डर फंड डायवर्ट करते हैं,फर्जी अप्रूवल दिखाते हैं और नगर निगम-बैंक की मिलीभगत से नियम तोड़ते हैं. सबवेंशन स्कीम्स में खरीदार EMI चुकाते हैं, मगर फ्लैट का पजेशन नहीं मिलता. नालासोपारा ईस्ट में 41 अवैध इमारतों के गिरने से 8,000 लोग बेघर हुए, जबकि ठाणे और डोंबिवली में देरी और घटिया निर्माण की शिकायतें बढ़ रही हैं.
टूटे दरवाजे, बिखरी ईंटें, आंखों में लाचारी
10वीं कक्षा में पढ़ने वाली गरिमा गुप्ता जब 10 फरवरी को स्कूल से घर लौटी, तब उन्हें अपना घर नही, सिर्फ टूटे दरवाजे, बिखरी ईंटें, और उनकी दरारों में दबी गरिमा के बचपन की यादें नज़र आईं. जिस घर की ओर गरिमा ने कदम बढ़ाए थे, वहां अब सिर्फ मलबा था. पिता शिव सहाय गुप्ता की आंखों में लाचारी थी, एक बेबस कोशिश कि किसी तरह फिर से अपनी बेटी को वो घर वापस दे सकें. मां मीना गुप्ता की आंखों से गिरते आंसू बता रहे थे कि जो खो चुका है, वो सिर्फ ईंटें नहीं थीं, वो उनकी पूरी जिंदगी थी. अब ये परिवार एक छोटे से झोपड़े में रहने को मजबूर है. सपने बिखर चुके हैं, लेकिन उम्मीद अभी भी बाकी है… सवाल बस ही कि क्या फिर से उनका घर खड़ा हो पाएगा?
नालासोपारा ईस्ट के अचोले इलाके में जय अंबे वेलफेयर सोसायटी के करीब 8,000 लोग बेघर हो गए हैं. वसई-विरार महानगरपालिका ने सोसायटी की 41 अवैध इमारतों को गिरा दिया, जिससे करीब 2,500 परिवार के पास अब घर ही नहीं रहा. बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी निवासियों को यह कहते हुए कोई राहत नहीं दी कि ये इमारतें पूरी तरह अवैध थीं और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और डंपिंग ग्राउंड के लिए आरक्षित जमीन पर बनी थीं.
न रहने को घर, न कोई सहारा, ये कैसी बेबसी
एक मां, जिसने डेढ़ साल पहले अपना बेटा खो दिया, आज बेबस है. शीतल ठाकुर की पूरी जमा-पूंजी से बने दो मकान, इन 41 इमारतों के बीच मलबे में तब्दील हो गए. अब अपनी टूटी उम्मीदों और विकलांग पति के साथ, ये बुजुर्ग दंपति मजबूरी में मंदिर में रहने को विवश हैं. ना घर, ना आसरा, ना कोई सहारा, मंदिर ही अब इनकी छत है और चारदीवारी भी. शीतल ठाकुर का कहना है कि उनके दो मकान थे, दोनों तोड़ दिए गए. डेढ़ साल पहले उनका बेटा भी चला गया. अब उनके विकलांग पति और उनके पास कुछ नहीं बचा. वे सड़क पर आ गए हैं. मंदिर में रहते हैं, वहीं खाते-पीते हैं… लेकिन कब तक? कैसे गुजारा करें.
ये सिर्फ एक या दो परिवारों की कहानी नहीं, विजयलक्ष्मी नगर के हजारों लोग आज सड़क पर आ गए हैं. जो कल अपनी छत के नीचे सुकून से जी रहे थे, आज वे सड़कों पर खड़े हैं! अपने ही घरों से बेदखल, अपने ही शहर में बेगाने. जहां कभी हंसती-खेलती ज़िंदगियां थीं, वहां अब सिर्फ टूटे दरवाज़े, बिखरी दीवारें और बुझी हुई आंखें हैं. मकान तोड़े गए, लेकिन सिर्फ ईंटें नहीं गिरीं, अरमान भी ढह गए.
घर चला गया, झोपड़ी में जैसे-तैसे जी रहे
उषा हथवार नाम की महिला का कहना है कि वह लोगों और रिश्तेदारों से उधार लेकर किसी तरह गुज़ारा कर रही हैं. उनकी बेटी बीमार है, लेकिन इलाज के पैसे नहीं हैं. अब घर भी छिन गया. इस झोपड़ी में जैसे-तैसे जी रहे हैं, लेकिन कब तक? कोई नहीं जानता.
वहीं प्रभुदेव गुप्ता और उनकी पत्नी ने कहा कि उन्होंने 2004 में अपनी जमा-पूंजी लगाकर ये घर खरीदा था. सालों से यहां रह रहे थे, सब कुछ ठीक था. लेकिन अचानक उनके सामने ही उनका मकान गिरा दिया गया. सुबह तक ये घर उनका था, लेकिन 10:30 बजे कह दिया गया कि अब ये उनका नहीं है.
क्या कह रहे बिल्डर्स?
विजयलक्ष्मी नगर की 41 इमारतों के गिरने से सिर्फ़ रहवासी नहीं, बल्कि बिल्डर्स भी फंसे हैं. उनका दावा है कि जब ज़मीन बेची गई, तब यह नहीं बताया गया कि यह ‘रिज़र्व्ड' है और यहां सीवेज प्लांट बनेगा. अब अगर बॉम्बे हाईकोर्ट आदेश देता है, तो वे फिर से लोगों को उनके घर लौटाने के लिए तैयार हैं. बिल्डर राय साहब जायसवाल ने कहा कि 41 में से 3 इमारतें मेरी थीं, पहले भी कई बिल्डिंग तोड़ी गईं. लेकिन मैं भागा नहीं, मैं लोगों के साथ खड़ा हूं. बस कोर्ट का आदेश चाहिए, हम फिर से मकान बना देंगे.
खरीदारों के साथ क्या हो रहा?
- मुंबई और आसपास के शहरों में बिल्डर-बैंक नेक्सस के कारण हजारों खरीदार ठगे जा रहे हैं.
- बिल्डर ग्राहकों से पैसा वसूल कर समय पर घर नहीं देते, और कई प्रोजेक्ट सालों तक अटके रहते हैं.
- नए खरीदारों से लिया गया पैसा पुराने निवेशकों को चुकाने में इस्तेमाल होता है, जिससे लोग फंस जाते हैं.
- बड़े-बड़े वादे कर प्रोजेक्ट लॉन्च होते हैं, लेकिन बाद में सुविधाएं अधूरी दी जाती हैं.
- बिल्डर-बैंक-निगम अधिकारियों की मिलीभगत से खरीदारों को कोई राहत नहीं मिलती.
- EMI और किराया दोनों भरने के बावजूद खरीदारों को घर नहीं मिलता.
- RERA जैसा कानून होने के बावजूद कई बिल्डर नियमों का उल्लंघन कर बच निकलते हैं.
बिल्डर-बैंक नेक्सस से होमबायर्स ठगी का शिकार
मुंबई और आसपास के शहरों में बिल्डर-बैंक नेक्सस के कारण हजारों होमबायर्स ठगी के शिकार हो रहे हैं. बुकिंग के सालों बाद भी न तो फ्लैट मिले, न पैसा वापस, लेकिन ईएमआई चुकाने का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे घोटाले की सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं. अब देखना होगा कि क्या इस जांच से पीड़ितों को न्याय मिलेगा या फिर एक और लंबी कानूनी लड़ाई शुरू होगी.
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