घर टूटने का दर्द होम बायर्स की आंखों में साफ नजर आता है.
एक छोटा सा घर खरीदने में एक आम आदमी अपनी जिंदगी की पूरी गाढ़ी कमाई लगा देता है. हालांकि बिल्डर्स, डेवलपर, बैंक और कानूनी चक्कर में फंसकर लाखों होम बायर्स के हाथ में अपने घर की चाबी नहीं आ पाती है. मुंबई और आसपास के इलाकों में बिल्डर लॉबी का ऐसा ही खेल चल रहा है, जहां पर पैसा लिया जाता है, लेकिन घर नहीं दिया जाता. नालासोपारा ईस्ट में 41 अवैध इमारतों के गिरने से 8,000 लोग बेघर हुए हैं, जबकि ठाणे और डोंबिवली में देरी और घटिया निर्माण की शिकायतें बढ़ रही हैं. होम बायर्स को उनके घर पर पूरा अधिकार दिलाने के लिए NDTV इंडिया आज एक ख़ास मुहिम चला रही है. इसके तहत सुजाता द्विवेदी की यह खास रिपोर्ट घर खरीदने वालों के दर्द को बयां करती है.

10वीं कक्षा में पढ़ने वाली गरिमा गुप्ता जब 10 फरवरी को स्कूल से घर लौटी तो उन्हें अपने घर की जगह मिले सिर्फ टूटे दरवाजे, बिखरी ईंटें और उनकी दरारों में दबी गरिमा के बचपन की यादें नजर आयीं. गरिमा ने जिस घर की ओर कदम बढ़ाए थे, वहां अब सिर्फ मलबा था. पिता शिव सहाय गुप्ता की आंखों में लाचारी थी, एक बेबस कोशिश कि किसी तरह फिर से अपनी बेटी को वो घर वापस दे सकें. मां मीना गुप्ता की आंखों से गिरते आंसू बता रहे थे कि जो खो चुका है, वो सिर्फ ईंटें नहीं थीं, वो उनकी पूरी जिंदगी थी. अब ये परिवार एक छोटे से झोपड़े में रहने को मजबूर है. परिवार के सपने बिखर चुके हैं, लेकिन उम्मीद अभी भी बाकी है. हालांकि फिर सवाल भी है कि क्या फिर से उनका घर खड़ा हो पाएगा?

ढाई हजार परिवार हो गए बेघर
नालासोपारा ईस्ट के अचोले इलाके में जय अंबे वेलफेयर सोसायटी के करीब 8,000 रहवासी बेघर हो गए हैं. वसई-विरार महानगरपालिका ने सोसायटी की 41 अवैध इमारतों को गिरा दिया है, जिससे करीब 2,500 परिवार के पास अब घर ही नही रहा. बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी निवासियों को कोई राहत नहीं दी थी, यह कहते हुए कि ये इमारतें पूरी तरह अवैध थीं और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और डंपिंग ग्राउंड के लिए आरक्षित जमीन पर बनी थीं.
एक मां, जिसने डेढ़ साल पहले अपना बेटा खो दिया, आज बेबस है. शीतल ठाकुर की पूरी जमा-पूंजी से बने दो मकान 41 इमारतों के बीच मलबे में तब्दील हो गए. अब अपनी टूटी उम्मीदों और विकलांग पति के साथ यह बुजुर्ग दंपति मजबूरी में मंदिर में रहने को विवश हैं. ना घर, ना आसरा, ना कोई सहारा, मंदिर ही अब इनकी छत भी है और चारदीवारी भी.

शीतल ठाकुर बताती हैं कि हमारे दो मकान थे, दोनों तोड़ दिए गए. डेढ़ साल पहले मेरा बेटा भी चला गया. अब मेरे विकलांग पति और मेरे पास कुछ नहीं बचा. हम सड़क पर आ गए हैं. मंदिर में रहते हैं, वहीं खाते-पीते हैं, लेकिन कब तक? कैसे गुजारा करें.
टूटे दरवाज़े, बिखरी दीवारें और बुझी आंखें
यह सिर्फ एक या दो परिवारों की कहानी नहीं है, विजयलक्ष्मी नगर के हजारों लोग आज सड़क पर आ गए हैं, जो कल अपनी छत के नीचे सुकून से जी रहे थे, वे आज सड़कों पर खड़े हैं. अपने ही घरों से बेदखल और अपने ही शहर में बेगाने. जहां कभी हंसती-खेलती ज़िंदगियां थीं, वहां अब सिर्फ टूटे दरवाज़े, बिखरी दीवारें और बुझी हुई आंखें हैं. मकान तोड़े गए, लेकिन सिर्फ ईंटें नहीं गिरीं, अरमान भी ढह गए.
उषा हथवार कहती हैं कि लोगों और रिश्तेदारों से उधार लेकर किसी तरह गुज़ारा कर रहे हैं. मेरी बेटी बीमार है, लेकिन इलाज के पैसे नहीं हैं. और अब घर भी छिन गया. इस झोपड़ी में जैसे-तैसे जी रहे हैं, लेकिन कब तक? कोई नहीं जानता.
वहीं प्रभुदेव गुप्ता कहते हैं कि हमने 2004 में अपनी जमा-पूंजी लगाकर ये घर खरीदा था, सालों से यहां रह रहे थे, सब कुछ ठीक था. लेकिन अचानक हमारे सामने ही हमारा मकान गिरा दिया गया. सुबह तक ये घर हमारा था, लेकिन 10:30 बजे हमें कह दिया गया कि अब ये हमारा नहीं है। क्यों? कैसे? कोई जवाब नहीं है.

कोर्ट का आदेश चाहिए, फिर मकान बना देंगे: बिल्डर
विजयलक्ष्मी नगर की 41 इमारतों के गिरने से सिर्फ रहवासी ही नहीं, बल्कि बिल्डर्स भी फंसे हैं. उनका दावा है कि जब जमीन बेची गई, तब यह नहीं बताया गया कि यह ‘रिज़र्व्ड' है और यहां सीवेज प्लांट बनेगा. अब अगर बॉम्बे हाई कोर्ट आदेश देता है तो वे फिर से लोगों को उनके घर लौटाने के लिए तैयार हैं.
बिल्डर राय साहब जायसवाल ने कहा कि 41 में से 3 इमारतें मेरी थीं. पहले भी कई बिल्डिंग तोड़ी गईं. लेकिन मैं भागा नहीं. मैं लोगों के साथ खड़ा हूं. बस कोर्ट का आदेश चाहिए, हम फिर से मकान बना देंगे.

नियमों का उल्लंघन कर बच निकलते हैं कई बिल्डर
दरअसल, मुंबई और आसपास के शहरों में बिल्डर-बैंक नेक्सस के कारण हजारों खरीदार ठगे जा रहे हैं. बिल्डर ग्राहकों से पैसा वसूल कर समय पर घर नहीं देते और कई प्रोजेक्ट सालों तक अटके रहते हैं. नए खरीदारों से लिया गया पैसा पुराने निवेशकों को चुकाने में इस्तेमाल होता है, जिससे लोग फंस जाते हैं. बड़े-बड़े वादे कर प्रोजेक्ट लॉन्च होते हैं, लेकिन बाद में सुविधाएं अधूरी दी जाती हैं. बिल्डर-बैंक-निगम अधिकारियों की मिलीभगत से खरीदारों को कोई राहत नहीं मिलती.
EMI और किराया दोनों भरने के बावजूद खरीदारों को घर नहीं मिलता. RERA जैसा कानून होने के बावजूद कई बिल्डर नियमों का उल्लंघन कर बच निकलते हैं.
मुंबई और आसपास के शहरों में बिल्डर-बैंक नेक्सस के कारण हजारों होमबायर्स ठगी के शिकार हो रहे हैं. बुकिंग के सालों बाद भी न तो फ्लैट मिले, न पैसा वापस मिला, लेकिन ईएमआई चुकाने का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे घोटाले की सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं. अब देखना होगा कि क्या इस जांच से पीड़ितों को न्याय मिलेगा या फिर एक और लंबी कानूनी लड़ाई शुरू होगी.
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