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NDTV की मुहिम: फुटपाथ नहीं, ये 'फूटे-पाथ' हैं, जरा मुंबई के पैदल आदमी का दर्द सुनिए

मुंबई के फुटपाथ अब पैदल चलने लायक नहीं बचे हैं. कहीं गड्ढे, कहीं खड़ी गाड़ियां, तो कहीं अतिक्रमण ने इन्हें बेकार बना दिया है. सुबह की जॉगिंग हो या रोज़मर्रा का सफर, लोग अब सड़क पर तेज रफ्तार वाहनों के बीच जान जोखिम में डालकर चलने को मजबूर हैं.

NDTV की मुहिम: फुटपाथ नहीं, ये 'फूटे-पाथ' हैं, जरा मुंबई के पैदल आदमी का दर्द सुनिए
22% रास्ते ही पैदल यात्रियों के चलने योग्य, 2023 में हादसे में मरने वालों में 40% पैदल यात्री थे
मुंबई:

ऐ भाई जरा देखकर चलो... जरा हटकर, जरा बचकर यह मुंबई है मेरी जान... मुंबई में अगर आप फुटपाथ पर चल रहे हैं, तो फिल्मी गाने की ये दो लाइनें हमेशा ध्यान रख लीजिए. फुटपाथ पैदल आदमी के लिए हैं. उनके चलने की जगह है. लेकिन इनकी हालत ऐसी टूटी-फूटी है कि आप इन्हें 'फूटे-पाथ' कह लीजिए. मुंबई में कई जगह फुटपाथ गायब है. इस पर सड़क का कब्जा हो चुका है. कई जगह ऐसी हैं, जहां ठेली-पटरीवालों ने अपनी दुकान सजा ली हैं. NDTV इंडिया ने पैदल चलने वालों के हक की आवाज उठाते हुए मुंबई के 'फटेहाल' फुटपाथों की पड़ताल की. जानिए ग्राउंड रिपोर्ट में हमें क्या क्या मिला. पैदल चलने वालों ने हमसे अपना क्या क्या दर्ज बयां किया...

ये फुटपाथ, जो कभी मुम्बइकरों के चलने और सुरक्षा के लिए बनाए गए थे. आज टूटे, बिखरे, और बेजान पड़े हैं. कहीं कचरे का अंबार कहीं नशेड़ियों का अड्डा. तो कहीं प्रेमी जोड़ों का कोना बन चुके हैं. यहां टूटे पड़े CCTV कैमरे बयान कर रहे हैं कि बीएमसी की नज़र में पैदल चलने वालों की जान की कोई कीमत नहीं है .वरना फ़ुटपाथों का ये हाल न होता.

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16 मार्च को लोखंडवाला बैक रोड पर एक मां और बेटी तेज रफ्तार कार और खड़ी बस के बीच फंसकर गंभीर रूप से घायल हो गए. वजह थी फुटपाथ तो, यहां फुटपाथ चलने के लायक नहीं थे. अंधेरी से लेकर बोरिवली तक, एक ओर खड़ी बसें और वैन, दूसरी ओर घने पेड़, बीच में पैदल चलने की जगह ही नहीं बची. जब फुटपाथ ही नहीं रहेगा, तो लोग मजबूरन सड़कों पर उतरेंगे, जहां हर कदम जानलेवा साबित हो सकता है.

क्या कहती है आम जनता

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लोखंडवाला बैक रोड हादसे पर बात करते हुए एक स्थानीय नागरिक ने कहा कि अगर आप लोकल हो तो आपको पता चलेगा कि कार वाले की गलती है. मगर उस महिला को सड़क पर लाने की जिम्मेदारी किसकी थी. आप देखें रहे हैं कि फुटपाथ पर चलना कितना चुनौती भरा है. एक अन्य स्थानीय नागरिक और मार्केटिंग प्रोफेशनल बलराम विश्वकर्मा ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि लोखंडवाला में जो हादसा हुआ, वो सिर्फ इसीलिए हुआ क्योंकि बाकी फुटपाथ चलने लायक नहीं थे. मां और बेटी मजबूरन सड़क पर चलीं और तेज़ रफ्तार गाड़ी ने उन्हें टक्कर मार दी. ये समस्या सिर्फ एक इलाके की नहीं, बल्कि पूरे शहर की है. हम चाहते हैं कि हमें एक ऐसा फुटपाथ मिले जो सुरक्षित हो, ना कि गलत कामों का अड्डा बने.

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'हमारे फुटपाथ बद से बदतर'

पर्यावरणविद जोरू भतेना ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि हमारे फुटपाथ बद से बदतर होते जा रहे हैं. बीएमसी ने 100 करोड़ का बजट फुटपाथ के लिए जरूर रखा है, लेकिन असल मसला पॉलिसी को लागू करने की है. फुटपाथ कोई रॉकेट साइंस नहीं है. दुनिया में सभी जगह फुटपाथ हैं. लेकिन बात पॉलिसी बनाने और उसे लागू करने की होती है. मुंबई की अगर बात करें तो यहां फुटपाथों के नाम पर काफी पैसा बहाया जाता है.अब यहां ही देखिए. फुटपाथ पर ग्रिल लगा दिया जाता है. इसका फायदा क्या है? हॉकर इसका दुरुपयोग करते हैं. कोई अपना ठेला लगा देगा. कोई कुछ टांग देगा. स्टील की रेलिंग बस पैसा बहाने का एक तरीका है. 

क्या कहते हैं ठेले-पटरीवाले

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एक ठेली वाली ने कहा कि वो 50 साल से यहां पर गन्ने का जूस बेच रहा है. बाबूल लाल ने बताया कि उन्होंने लाइसेंस के लिए अप्लाई किया है. एक अन्य ठेली वाले सुशील गुप्ता ने कहा कि सरकार की बात सही है दिक्कत होती है, अगर हम फुटपाथ पर लगाएं तब भी दिक्कत है, अगर सड़क पर लगाएं तो भी दिक्कत है. 60 साल से हम यहां पर रेहड़ी लगा रहे हैं.

क्या है बीएमसी का पक्ष

इस पूरे मामले में बीएमसी का कहना है कि "मुंबई में पैदल यात्रियों के लिए फुटपाथ बाधामुक्त रखने के लिए सख्त कार्रवाई जारी है. अवैध फेरीवाले, अतिक्रमण और लावारिस वाहन हटाए जा रहे हैं. अधिकारियों के निर्देश पर विभिन्न विभाग मिलकर यह अभियान चला रहे हैं, और फुटपाथ की सुविधा बनाए रखना उनकी प्राथमिकता है."

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जल्द सुधरेगी फुटपाथ की हालत

  1. बीएमसी के 2025-2026 के बजट में यूनिवर्सल फुटपाथ पॉलिसी के तहत सुधार का वादा किया गया है.
  2. 100 करोड़ रुपये के प्रावधान के साथ, इस पहल का लक्ष्य मुंबई को अधिक पैदल व दिव्यांग अनुकूल बनाना है.
  3. बहरहाल असली चुनौती ये है की 2016 में बनाई गई इस पॉलिसी का असर कब दिखेगा.
  4. क्या ये नीति वास्तव में बदलाव लाएगी, या फिर मुंबईकरों को असुरक्षित फुटपाथों से जूझते रहना पड़ेगा?

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