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पहली बार इतनी दुविधा में क्यों हैं सियासत के 'चाणक्य' शरद पवार?

शरद पवार 50 साल के अपने राजनीतिक सफर में कभी भी बीजेपी के साथ नहीं गए हैं. पवार कह चुके हैं कि अब वो कोई भी चुनाव नहीं लड़ेंगे. उन्होंने पार्टी की कमान सुप्रिया सुले के हाथों में सौंप दी.

पहली बार इतनी दुविधा में क्यों हैं सियासत के 'चाणक्य' शरद पवार?
मुंबई:

ऐसा लग रहा है मानों महाराष्ट्र की सियासत की घड़ी टिक-टिक करते हुए 12 बजे पर पहुंच रही है. दोनों सुइयों के मिलन का वक्त. चाचा शरद पवार और अजित पवार के एक होने की खबरें उठ रही हैं. चर्चा राहें अलग कर चुके उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे को लेकर भी है. पहले बात राष्ट्रवादी कांग्रेस यानि एनसीपी की...

अलग-अलग स्थापना दिवस मना रहे हैं शरद पवार और अजित पवार

शरद पवार और अजित पवार दोनों अपनी-अपनी पार्टी का स्थापना दिवस अलग-अलग मना रहे हैं. कुछ ही दिन पहले सुप्रिया सुले ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा था कि जहां तक दोनों एनसीपी के साथ आने का सवाल है, यह तो वक्त ही बताएगा. सारे वरिष्ठ नेताओं से बात करके फैसला होगा. जब पार्टी एक थी, तब भी शरद पवार सबको बुलाकर साथ में बात करते थे. ऐसे में सबको बुलाकर मान सम्मान का ध्यान रखते हुए फैसला होगा. पार्टी का झंडा उठाने वाले कार्यकर्ताओं से भी पूछा जाएगा. 

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चाचा-भतीजे के मिलन का क्या नतीजा?

एनसीपी के दोनों धड़े यदि मिल जाएं तो महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया दौर शुरू हो सकता है, क्योंकि एनसीपी महाराष्ट्र में बीजेपी के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी हो जाएगी. एनसीपी शरद पवार को विधानसभा में 11.28 फीसदी वोट मिले थे और उसके 10 विधायक हैं. अजित पवार वाली एनसीपी को 9 फीसदी वोट मिले थे मगर वो एनडीए गठबंधन का हिस्सा थे, इसलिए उनके 41 विधायक जीते. दोनों एनसीपी के वोटों को जोड़ दें तो 20 फीसदी से ज्यादा वोट हो जाते हैं. इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी जो महाराष्ट्र की सबसे बड़ी पार्टी है, उसके 132 विधायक हैं. 26.77 फीसदी वोट खाते में हैं. वहीं लोकसभा में शरद पवार वाली एनसीपी के पास 8 सांसद हैं, तो अजित पवार के पास केवल एक.

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अपने राजनीतिक सफर में कभी भी बीजेपी के साथ नहीं गए शरद पवार

यदि एनसीपी एक होती है और केंद्र में एनडीए को सर्मथन देती है तो इसका सबसे बड़ा असर महाराष्ट्र की राजनीति पर पड़ेगा. तब बीजेपी को केंद्र और राज्य में एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. मगर ये फैसला शरद पवार को करना होगा, क्योंकि वह 50 साल के अपने राजनीतिक सफर में कभी भी बीजेपी के साथ नहीं गए हैं. शरद पवार कह चुके हैं कि अब वो कोई भी चुनाव नहीं लड़ेंगे. उन्होंने पार्टी की कमान सुप्रिया सुले के हाथों में सौंप दी.. मगर उनको यह तय करना होगा, खासकर सैद्धांतिक रूप से कि आने वाले दिनों में एनसीपी का स्वरूप क्या होगा और वो किस खेमे में होगी?

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एनसीपी के एक होने से पहले यह तय करना होगा कि वो किस गठबंधन का हिस्सा होगी, एनडीए का या इंडिया का? क्या शरद पवार केंद्र में एनडीए का हिस्सा बनेंगे? ये सबसे अहम सवाल है. जिस दिन इस सवाल का जवाब मिल जाएगा, एनसीपी के एक होने का रास्ता खुल जाएगा. एक बार यह तय हो जाता है तब एनसीपी में सुप्रिया सुले और अजित पवार की भूमिका तय करने में आसानी होगी.
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अब बात करते हैं ठाकरे भाइयों की... शिव सेना उद्धव गुट से राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी का कहना है कि शिव सेना में विभाजन के बाद दोनों अलग हो गए. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) बनी. हमारी पार्टी का नाम और सिंबल जिस तरह से ले लिया गया, यह विश्वासघात था. ये सारी बातें राज ठाकरे भी समझते हैं. यदि दोनों भाई साथ आने का निर्णय लेते हैं तो अच्छा है. पार्टी के लोग और जनता भी चाहती है कि दोनों साथ हों और आगे बढ़ें.  बाला साहब ठाकरे भी यही चाहते थे.

राज और उद्धव, मिलन का किसे क्या फायदा?

महाविकास आघाडी की जहां तक बात है, जो उसे हर हाल में मजबूती मिलेगी. संख्या को देखते हुए उद्धव ठाकरे को राज के साथ आने से बहुत फायदा तो नहीं मिलेगा, मगर कुछ नगर पालिकाओं में जरूर फायदा मिल सकता है. 2024 के  विधान सभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी और उनके बेटे अमित ठाकरे भी चुनाव हार गए थे.

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राज ठाकरे की पार्टी को महज डेढ़ फीसदी वोट मिले थे, जबकि उद्धव ठाकरे को 10 फीसदी वोट मिले थे और 20 सीटें वे जीत पाए थे. नगर पालिका की बात करें तो राज ठाकरे की मदद उद्धव को मुंबई में भी मिल सकती है. इसके अलावा नासिक और पुणे में भी थोड़ी पकड़ राज ठाकरे रखते हैं.

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