- उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने बालासाहेब ठाकरे के स्मृति स्थल पर एक साथ जाकर शिवसेना की एकजुटता का संदेश दिया है.
- BMC चुनाव में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के लिए मराठी वोटों का बंटवारा रोकना और कैडर बचाना प्राथमिक चुनौती है.
- मुंबई में मराठी भाषी आबादी घटकर तीस प्रतिशत के आसपास आ गई है, जबकि गुजराती और उत्तर भारतीय मतदाता बढ़ रहे हैं.
महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे का साथ आना एक बड़ा संदेश है. दोनों ठाकरे भाइयों का बालासाहेब ठाकरे के स्मृति स्थल पर एक साथ जाना शिवसैनिकों को यह बताना है कि अब असली विरासत एक साथ है. एकनाथ शिंदे द्वारा शिवसेना का नाम और निशान धनुष-बाण ले जाने के बाद उद्धव ठाकरे के पास अपने कैडर को बचाने की चुनौती है तो राज ठाकरे को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखनी है. बीएमसी चुनावों में दोनों की ही कड़ी परीक्षा होने जा रही है.
उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के लिए 74 हजार करोड़ रुपये के बजट वाली सबसे अमीर महापालिका BMC पर कब्जा बनाए रखने के लिए मराठी वोटों का बंटवारा रोकना सबसे बड़ी प्राथमिकता है.
पुराने शिवसैनिकों में लौटेगा विश्वास!
उद्धव के पास बाल ठाकरे के कट्टर समर्थकों की सहानुभूति है जबकि राज ठाकरे के पास आक्रामक शैली और युवाओं का आकर्षण है, जिसके जरिए महायुति से भिड़ने की रणनीतिक गठजोड़ की रूपरेखा तैयार की गई है.
होटल ब्लू सी-वरली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करना उद्धव के गढ़ यानी आदित्य ठाकरे के निर्वाचन क्षेत्र में भी एक तरह से अपनी ताकत दिखाना है. साथ ही उन्हें यह जरूर उम्मीद होगी कि “ठाकरे” सरनेम के साथ आने से पुराने शिवसैनिकों में यह विश्वास जरूर पैदा होगा कि पार्टी की शक्ति वापस लौट रही है.
एकनाश शिंदे को हो सकता है नुकसान
राज ठाकरे के साथ आने से मराठी वोट बैंक का वो हिस्सा जो मनसे की ओर जाता था, माना जा रहा है कि अब वह गठबंधन को मिलेगा.
यदि ऐसा होता है तो इससे सबसे अधिक नुकसान एकनाथ शिंदे की शिवसेना को होगा. शिंदे की ताकत मराठी वोटों के बंटवारे पर टिकी थी, जो अब एकजुट हो सकते हैं.
मुंबई में मराठी भाषी आबादी करीब 25% से 30% के बीच सिमट गई है. साथ ही गुजराती, मारवाड़ी और उत्तर भारतीय मतदाताओं का प्रभाव लगातार बढ़ा है.
2017 के चुनाव में ऐसा रहा था परिणाम
पिछला BMC चुनाव 2017 में हुआ था. अब करीब आठ साल बाद यह चुनाव होने जा रहा है. उस वक्त शिवसेना और भाजपा ने बिना गठबंधन के एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा था. कुल 227 सीटों के नतीजों के मुताबिक -
- शिवसेना ने सबसे अधिक 84 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की थी.
- भाजपा ने बेहद कड़ी टक्कर देते हुए 82 सीटों पर जीत हासिल की थी जो शिवसेना से मात्र 2 सीट कम थी.
- विपक्ष में कांग्रेस को 31 सीटों से संतोष करना पड़ा था.
- वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी NCP केवल 9 सीटों पर सिमट गई थी.
- इस चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को 7 सीटों पर जीत मिली थी.
- अन्य व निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में 14 सीटें गई थीं.
इस चुनाव के बाद भाजपा ने शिवसेना को बाहर से समर्थन देने का फैसला किया था. इसी कारण से ही शिवसेना का मेयर चुना गया था. हालांकि, बाद में मनसे के 7 में से 6 पार्षद शिवसेना में शामिल हो गए थे, जिससे सदन में शिवसेना का आंकड़ा और बढ़ गया था.
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