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This Article is From Mar 05, 2019

लोकसभा चुनाव 2019 : मध्यप्रदेश की विदिशा सीट पर क्यों टिकीं सबकी नजरें

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के चुनाव लड़ने से इनकार करने से उठा सवाल- बीजेपी से अब कौन होगा सुरक्षित मैदान में?

लोकसभा चुनाव 2019 : मध्यप्रदेश की विदिशा सीट पर क्यों टिकीं सबकी नजरें
विदिशा लोकसभा सीट पर शिवराज सिंह की पत्नी साधना सिंह के चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं.
नई दिल्ली:

मध्यप्रदेश के विदिशा लोकसभा क्षेत्र (Vidisha Loksabha constituency) पर सबकी नजर है. यह सीट जनसंघ का गढ़ रही है और बीजेपी (BJP) के लिए सुरक्षित सीट मानी जाती है. साल 2009 से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज (Sushma Swaraj) इस क्षेत्र से चुनकर आ रही हैं. इस बार उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है इसलिए यह जिज्ञासा का विषय हो गया है कि आगामी लोकसभा चुनाव में इस सीट से कौन होगा प्रत्याशी? मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) इस सीट पर 1991 से 2004 तक पांच चुनावों में जीत हासिल कर चुके हैं.

विदिशा सीट के लिए बीजेपी की ओर से सबसे प्रबल दावेदार शिवराज सिंह चौहान हैं. हालांकि उन्होंने मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव के बाद कहा था कि वे केंद्र में जाना नहीं चाहते, अपने प्रदेश में ही काम करेंगे. उनकी यदि यही मंशा अब भी है तो बीजेपी इस सीट पर कोई अन्य प्रत्याशी उतारेगी. चर्चा शिवराज सिंह की पत्नी साधना सिंह (Sadhana Singh) के नाम की भी हो रही है. यदि सुषमा स्वराज की तरह बीजेपी का कोई अन्य दिग्गज नेता इस सुरक्षित सीट पर चुनाव लड़ने नहीं आता तो साधना सिंह के चुनाव मैदान में उतरने की पूरी संभावना है.                 

साधना सिंह ने अब तक कोई चुनाव नहीं लड़ा है लेकिन वे अपने पति शिवराज सिंह के साथ उनके राजनीतिक सफर में हर पल साथ रही हैं. शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश के अपने गृह जिले सीहोर के साथ-साथ विदिशा, रायसेन, होशंगाबाद और भोपाल जिले में दो से तीन दशक पहले सैकड़ों किलोमीटर की पदयात्राएं कर चुके हैं. उनके पैदल घूमने के कारण ही उन्हें लोग 'पांव-पांव भैया' भी कहते रहे हैं. इन पदयात्राओं से शिवराज ने जनमानस में अपनी गहरी पैठ जमाई. साधना सिंह भले ही सक्रिय राजनीति में नहीं रही हैं लेकिन शिवराज के मुख्यमंत्री के 13 साल के कार्यकाल में और पहले भी वे निरंतर जनसंपर्क करती रही हैं. यदि शिवराज सिंह चाहेंगे तो साधना सिंह का विदिशा से चुनाव लड़ना तय है.                  

विदिशा क्षेत्र बीजेपी का गढ़ होने के कारण कांग्रेस 1989 से इस सीट पर पराजित होती आ रही है. कांग्रेस इस सीट पर सिर्फ 1980 और 1984 में जीत हासिल कर सकी.

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विदिशा लोकसभा क्षेत्र के सन 1967 में अस्तित्व में आने के बाद पहला चुनाव जनसंघ के पंडित शिव शर्मा ने जीता था. सन 1972  में  जनसंघ के टिकट पर प्रसिद्ध अखबार इंडियन एक्सप्रेस और जनसत्ता के मालिक रामनाथ गोयनका चुनाव जीते. सन 1977 में यह सीट भारतीय लोकदल ने जनसंघ से छीन ली और राघवजी भाई सांसद बने. हालांकि आगे चलकर राघवजी ने लोकदल से नाता तोड़ लिया और बीजेपी में शामिल हो गए. वे मध्यप्रदेश में कई साल मंत्री भी रहे.

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पिछले लोकसभा चुनाव में सुषमा स्वराज ने 714348 वोट हासिल किए थे जो कि कुल मतदाताओं का
43 फीसदी थे. उनके खिलाफ कांग्रेस ने दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह को उतारा था. लक्ष्मण सिंह को 303650 वोट मिले थे जो कि 18 फीसदी थे.

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पिछले तीन लोकसभा चुनावों के दौरान मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार रही है लेकिन इस बार कांग्रेस की सत्ता है. कांग्रेस के लिए विदिशा सीट हासिल करने की चुनौती है तो बीजेपी के लिए यह पारंपरिक सीट बचाए रखने की चुनौती है. आने वाले दिनों में इस सीट के लिए दोनों प्रमुख दलों के प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद बनने वाले चुनावी समीकरण आगामी चुनाव में इस सीट का भविष्य तय करेंगे.

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