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This Article is From Apr 19, 2019

मोदी लहर में भी सपा के इस किले को जीत नहीं पाई थी BJP, क्या इस बार होगा उलटफेर, देखें- आंकड़े क्या कहते हैं

उत्तर प्रदेश की बदायूं लोकसभा सीट (Badaun Seat) समाजवादी पार्टी (सपा) का गढ़ मानी जाती है, लेकिन इस बार बीजेपी ने इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताक़त लगा रखी है. 

मोदी लहर में भी सपा के इस किले को जीत नहीं पाई थी BJP, क्या इस बार होगा उलटफेर, देखें- आंकड़े क्या कहते हैं
बदायूं में बीजेपी की संघमित्रा मौर्य और सपा के धर्मेंद्र यादव के बीच लड़ाई है.
नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश की बदायूं लोकसभा सीट (Badaun Seat) समाजवादी पार्टी (सपा) का गढ़ मानी जाती है, लेकिन इस बार बीजेपी ने इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताक़त लगा रखी है. समाजवादी पार्टी ने यहां से दो बार के सांसद और अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) को उम्मीदवार बनाया है, जबकि बीजेपी ने उत्तरप्रदेश के कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य (Sanghmitra Maurya) को यहां से मैदान में उतारा है. इस सीट की सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि यहां पर वाजपेयी लहर से लेकर मोदी लहर तक नाकाम हो चुकी है, जबकि 1996 के बाद से समाजवादी पार्टी यहां कभी नहीं हारी है. ऐसे में इस बार देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी बदायूं (Badaun Lok Sabha Seat) में कोई करिश्मा कर पाती है या सपा फिर अपने किले पर कब्जा जमाती है. 

बदायूं का जातीय समीकरण सपा के पक्ष में
बदायूं (Badaun) यादव और मुस्लिम बहुल जिला है. यह फैक्टर सपा के पक्ष में जाता है. गौर करने वाली बात यह है कि सपा पहले से ही सोशल इंजीनियरिंग के मोर्च पर वाई-एम (यादव-मुस्लिम) समीकरण को साधती रही है और बदायूं की सीट ऐसी है जहां पार्टी करीबन इस समीकरण को साधने में सफल होती है. यही वजह है कि 2 दशक से ज्यादा समय से पार्टी का इस सीट पर कब्जा है.  

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1991 में बीजेपी आखिरी बार जीती थी चुनाव
बदायूं की सीट (Badaun Seat) जीतने के लिए BJP पुरजोर कोशिश कर रही है और कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है. यही वजह है कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक यहां रैली कर चुके हैं. गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी बदायूं में चुनावी सभा को संबोधित कर चुके हैं. पिछली बार के आंकड़ों पर नजर डालें तो मोदी लहर के बावजूद सपा के धर्मेंद्र यादव यहां जीतने में कामयाब रहे थे. धर्मेंद्र यादव  (Dharmendra Yadav) को कुल 48 प्रतिशत वोट मिले थे और उन्होंने 1.66 लाख वोट से जीत दर्ज की थी. पिछली बार यहां से बीजेपी उम्मीदवार को भले ही हार का सामना करना पड़ा हो, लेकिन उसे भी 32 फीसद वोट मिले थे. यही वजह है कि बीजेपी इस बार कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती है. 

अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है कांग्रेस
कांग्रेस ने इस बार पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता सलीम इकबाल शेरवानी को बदायूं से मैदान में उतारा है. हालांकि पार्टी यहां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. साल 1984 में कांग्रेस यहां से आखिरी बार चुनाव जीती थी, उसके बाद जो सत्ता से बाहर हुई तो अबतक वापसी नहीं कर सकी है. 

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बदायूं एक नजर में 
कुल 19 लाख मतदाता 
4 लाख यादव मतदाता 
3.75 लाख मुस्लिम मतदाता 
2.28 लाख गैरयादव ओबीसी मतदाता 
1.75 लाख अनुसूचित मतदाता 
1.25 लाख वैश्य मतदाता 
1.25 लाख ब्राहण मतदाता 

Video: सपा का मजबूत किला है बदायूं

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