मैक्समूलर के बारे में कहा जाता रहा है कि वह भारत से भगवत गीता को चुराकर ले गया था. यह कहना गलत है. जो कभी भारत आया ही नहीं, वह गीता को यहां से कैसे ले गया? मैक्समूलर का तो वेदों के प्रचार में महत्वपूर्ण अवदान है. पश्चिमी दुनिया में इसी विद्वान के कारण वेदों को लोग समझ पाए. इसी तरह दारा शिकोह ने वेदों का फारसी में अनुवाद किया जिससे बाद यह बाकी भाषाओं में दुनिया में पहुंचे. केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के पूर्व कुलपति प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी ने यह बात मध्यप्रदेश के सागर के डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में यह बात कही. वे विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग की ओऔर से आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे.
महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान उज्जैन के सहयोग से ‘वैदिक वांग्मय के विविध आयाम एवं प्रासंगिकता' पर दो दिवसीय अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी हाल ही में आयोजित की गई.
वैदिक मंगलाचरण के साथ शुरू हुई संगोष्ठी में मुख्य अतिथि प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी ने कहा कि वेदों के उपदेश सर्वयुगीन, सार्वजनीन एवं सार्वकालिक हैं. इनकी सभी शाखाओं, सभी संहिताओं, ब्राह्मणों, अरण्यकों, एवं उपनिषदों का अध्ययन निरपेक्ष भाव से करना चाहिए. भारतीय मनीषा का सम्पूर्ण विश्व में जो आदरपूर्ण स्थान है वह वेदों के कारण ही है. मैक्समूलर का वेदों के प्रचार में महत्त्वपूर्ण अवदान है.
भारतीय जनजीवन में वेदों का अप्रतिम योगदान: कुलपति प्रो नीलिमा गुप्ता
इस अवसर पर अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो नीलिमा गुप्ता ने भारतीय संस्कृति, संस्कृत और वेदों के अवदान पर अपना वक्तव्य दिया. उन्होंने कहा कि भारतीय जनजीवन में वेदों का अप्रतिम योगदान है. मानव जीवन के आचार और विचार वेदों एवं उपनिषदों से ही लिए गए हैं. प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में वेदों का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए.
मुख्य वक्ता भारतीय दार्शनिक अनुसंधान नई दिल्ली के सदस्य सचिव प्रो सच्चिदानंद मिश्र ने कहा कि सभी दर्शनों एवं उसकी विभिन्न शाखाओं का मूल उत्स वेद हैं. उन्होंने सांख्य, न्याय आदि दर्शनों का विवेचन करते हुए इसके विकास में वेदों के अवदान को रेखांकित किया. प्रो अमलधारी सिंह ने ऋग्वेद की शाकल शाखा के मंत्रों, सूक्तों एवं अन्य विषय वस्तुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला. शाकल संहिता के सूक्तों पर सूक्ष्मता से अपने विचार प्रस्तुत किए और इसकी महत्ता को भी रेखांकित किया. विशिष्ट अतिथि कुलसचिव संतोष सोहगौरा ने कहा कि वेद विद्याओं के स्रोत हैं. ऋषियों ने अपने अंतःकरण में जिस तत्त्व का साक्षात्कार किया वह वेदवाणी है. केवल भारतीय ही नहीं बल्कि पाश्चात्य विद्वानों ने भी वेदों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है.
शोध पत्रिका ‘सागरिका' एवं पुस्तकों का विमोचन
इस अवसर पर अतिथियों ने विभाग की शोध पत्रिका ‘सागरिका' तथा विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ संजय कुमार द्वारा डॉ रामजी उपाध्याय पर लिखित पुस्तक एवं डॉ बालकृष्ण शर्मा की पुस्तक ‘ध्वनि प्रकाशे मुक्तक विमर्शः' का विमोचन किया. डॉ. राधावालभ त्रिपाठी को सम्मान-पत्र और सभी अतिथियों स्मृति चिन्ह भेंट किया गया. विचार संस्था द्वारा गौ-उत्पाद से निर्मित वस्तुएं भी अतिथियों को भेंट की गईं.
कार्यक्रम में स्वागत भाषण विभागाध्यक्ष प्रो आनंदप्रकाश त्रिपाठी ने दिया और संचालन डॉ नौनिहाल गौतम ने किया. इस अवसर पर भाषा अध्ययनशाला के अधिष्ठाता प्रो बीआई गुरु, डॉ अनूप कुमार मिश्र, प्रो जेके जैन, प्रो नागेश दुबे, प्रो एडी शर्मा, प्रो चंदा बेन, डॉ आशुतोष, डॉ आरपी सिंह, डॉ सुरेन्द्र यादव, डॉ वंदना, डॉ लक्ष्मी पाण्डेय, डॉ हिमांशु सहित विवि के कई शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी, शहर से पधारे गणमान्य नागरिक एवं देश भर से आए प्रतिभागी अतिथि उपस्थित थे.
वैदिक जीवन शैली जीवन की पूर्णता के लिए अनुकरणीय
संगोष्ठी के समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी ने कहा कि वैदिक जीवन शैली जीवन की पूर्णता के लिए अनुकरणीय है. इस वैदिक पक्ष को भी समाज के सामने लाया जाना चाहिए. वैदिक ज्ञान को वैज्ञानिक रीति से समझ कर जीवन में उतारा जाना अध्ययन का मूल प्रयोजन है. जो ग्रन्थ कण्ठस्थीकरण द्वारा व्यक्ति में विद्यमान रहता है, वह अपना अर्थ भी खोलता है. भारत देश में वर्तमान में भी ऐसे मनीषी हैं, जो ऋग्वेद के सम्पूर्ण मंत्रों को कण्ठस्थ कर धनपाठ करने में समर्थ हैं. ऐसी संगोष्ठियां लोंगो को सीमित दायरे से असीम की ओर ले जाती हैं. जयशंकर प्रसाद जैसे हिन्दी के कवियों का मर्म समझने के लिए वेद का ज्ञान अपेक्षित है. ज्ञान की शाश्वत, सनातन व असीम धारा है. उन्होंने यह भी कहा कि ज्ञान की सनातन अव्याहत धारा ही वेद है. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर जैसे विद्वान जिन्होंने वैदिक जीवनशैली को जिया, वे अनुकरणीय हैं.
मुख्य अतिथि महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो विजय कुमार सीजे ने कहा विद्यालयों एवं उच्च शिक्षा संस्थानों में वेदों के उच्चारण और पाठ मात्र तक सीमित न होकर शोधपरक अध्ययन भी वर्तमान समय की अपेक्षा है. वैज्ञानिक संस्थानों आदि में संस्कृत पाठ्यक्रम चल रहे है. व्यावसायिक संस्थानों में भी संस्कृत का अध्यापन चल रहा है. ‘साइंटिफिक लिटरेचर इन संस्कृत' जैसी पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं. सभी विद्याओं में परस्पर सम्बन्ध है. इसलिए अन्तरानुशासनिक विषयों का प्रवर्तन हो रहा है. संस्कृत में सभी ज्ञान विद्यमान हैं, उन्हें खंगालकर वर्तमान से जोड़ने की आवश्यकता है.
विशिष्ट अतिथि प्रो अमलधारी सिंह, वाराणसी ने वैदिक वाड्मय के महत्व और आज के समय में उसकी सार्थकता पर अपने विचार व्यक्त किए. उन्होंने संगोष्ठी में आए सभी विद्वानों, संस्कृत विभाग के कर्मचारियों को सम्मानित किया. स्वागत उद्बोधन संस्कृत के विभागाध्यक्ष एवं संगोष्ठी संयोजक प्रो आनंदप्रकाश त्रिपाठी ने दिया. संचालन डॉ शशिकुमार सिंह ने किया. आभार डॉ रामहेत गौतम ने ज्ञापित किया.
इस दो दिवसीय संगोष्ठी के प्रथम दिवस सांस्कृतिक संध्या एवं संस्कृत कवि समवाय का आयोजन स्वर्ण जंयती सभागार में हुआ. इसमें ललित कला एवं प्रदर्शनकारी कला विभाग के छात्र/छात्राओं ने डॉ राकेश सोनी के निर्देशन में बुंदेली नृत्य बधाई प्रस्तुत किया. पार्थ घोष,यशगोपाल श्रीवास्तव व उनके साथियों के द्वारा प्रस्तुत प्रहसन ‘‘द शू'' ने दर्शकों को प्रभावित किया. निहारिका ठाकुर ने गणेश वंदना व प्रियांशी ने तांडव नृत्य पेश करके प्रेक्षकों को मंत्रमुग्ध कर दिया.
कवि समवाय के अन्तर्गत आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी की अध्यक्षता में बालकृष्ण शर्मा, सीएच नागराजू, कृष्णमोहन पाण्डेय, रामहेत गौतम, पूर्णचन्द्र उपाध्याय, सुकदेव वाजपेयी तथा आचार्य त्रिपाठी ने अपनी स्वरचित संस्कृत कविताओं का पाठ किया. मंच संचालन डॉ नौनिहाल गौतम ने किया और आभार डॉ संजय कुमार ने व्यक्त किया.
इस अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी के छह सत्रों में लगभग 40 विद्वानों ने वैदिक वाड्मय के विभिन्न पक्षों पर अपने गंभीर विचार व्यक्त किए जिनमें प्रमुख हैं - प्रो सच्चिदानन्द मिश्र, डॉ. अमलधारी सिंह, प्रो रहसबिहारी द्विवेदी, डॉ इला घोष, प्रो सुद्युम्न आचार्य, डॉ उदय प्रताप भारती, डॉ पूर्णचन्द्र उपाध्याय, प्रो गिरीष चन्द पन्त, प्रो हरिश्वर दीक्षित, प्रो शीतला प्रसाद पाण्डेय, डॉ सत्येन्द्र कुमार यादव, डॉ कृष्ण मोहन पाण्डेय, डॉ चक्रधर मेहर, डॉ बालकृष्ण शर्मा, डॉ सीएच नागराजू, वैदिक बाबूलाल द्विवेदी, डॉ उमाशंकर त्रिपाठी, डॉ ओम प्रकाष शास्त्री, डॉ प्रदीप कुमार पाण्डेय, डॉ राजकुमार मिश्र, प्रो रामहित त्रिपाठी, डॉ अरुण कुमार मिश्र, डॉ सितांषु पण्डा, डॉ मदनमोहन तिवारी, डॉ शैलेन्दु शेखर वशिष्ठ आदि. इन विद्वानों ने वैदिक मनोविज्ञान, अक्षर विज्ञान, राष्ट्रीय भावना, शिक्षा एवं शिक्षा पद्धति, संस्कृत विश्वास, आयुर्वेद, भौतिकीय विज्ञान, सृष्टि विज्ञान, ऋषि चिंतन, मानवमूल्य, सौम्य का महत्त्व, कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता, जल संरक्षण, यज्ञ स्वरूप, मंत्र चिकित्सा, शिल्पकला, चिकित्सा विज्ञान, पर्यावरण चेतना, हठयोग, धर्मयोग, स्त्री और दर्शन आदि विषयों पर वैदिक वाड्मय के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किए.
इस अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी के संयोजक संस्कृत के विभागाध्यक्ष प्रो आनंदप्रकाश त्रिपाठी थे. सचिव द्वय डॉ शशिकुमार सिंह एवं डॉ संजय कुमार थे. सहसचिव डॉ नौनिहाल गौतम, डॉ किरण आर्या एवं डॉ रामहेत गौतम थे.
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