पवन कुमार वर्मा की हालिया किताब "आदि शंकराचार्य-हिंदू धर्म के महानतम विचारक" आदि शंकराचार्य के जीवन-दर्शन पर प्रकाश डालती है.
हिंदू धर्म के महान विचारकों में से एक आदि शंकराचार्य का जन्म 788-820 ईस्वी (हालांकि जन्मतिथि पर विवाद है) के बीच दक्षिण भारत के केरल में हुआ था. आदि शंकराचार्य ने सत्य और ज्ञान की तलाश में पूरे भारत का भ्रमण किया. देश के हर कोने में गए और हिंदू धर्म के पुनरुत्थान के लिए हर जतन किया. हिंदू धर्म के व्यापक प्रचार- प्रसार के लिए उन्होंने मठों के रूप में एक ऐसे 'स्कूल' की स्थापना की जो आगे चलकर हिंदू धर्म को ऊंचाइयों पर ले जाने में मील के पत्थर साबित हुए. आदि शंकराचार्य द्वारा श्रृंगेरी, द्वारका, पुरी और जोशीमठ में स्थापित मठों ने हिंदू धर्म के किसी पवित्र तीर्थ स्थल जैसी ही पहचान बनाई है.
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यूं तो आदि शंकराचार्य पर केंद्रित तमाम किताबें लिखी गई हैं, लेकिन लेखक, कूटनीतिज्ञ और राजनेता पवन कुमार वर्मा की हालिया किताब "आदि शंकराचार्य-हिंदू धर्म के महानतम विचारक" तमाम किताबों से अलग है. पवन कुमार वर्मा ने मूल किताब अंग्रेजी में - "Adi Shankaracharya : Hinduism's Greatest Thinker" के नाम से लिखी है और अंग्रेजी से हिंदी में इसका तर्जुमा धीरज कुमार ने किया है. यात्रा वृतांत शैली में लिखी गई यह किताब आदि शंकराचार्य के जीवन और दर्शन का व्यापक चित्रण है.
आदि शंकराचार्य के बारे में कहा जाता है कि 3 वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही उन्हें वेद और तमाम ग्रंथ जबानी याद हो गए थे. वह एक बार जो चीज सुन लेते थे तो उसे कभी नहीं भूलते थे. आदि शंकराचार्य से जुड़ा एक और किस्सा मशहूर है. कहते हैं कि एक बार शंकराचार्य नदी में स्नान कर रहे थे और उसी समय एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया. शंकराचार्य ने अपनी मां को आवाज दी और कहा... मां मुझे बचाओ...एक मगरमच्छ ने मुझे पकड़ लिया है. हालांकि इसके साथ उन्होंने एक शर्त रख दी और अपनी मां से कहा कि मैं तब तक नहीं बच सकता जब तक आप मुझे सन्यासी बनने की अनुमति नहीं देती हैं. शंकराचार्य की मां कुछ देर के लिए संकोच में पड़ गईं .एक तरफ बेटे के जीवन का प्रश्न था और दूसरी तरफ उसके घर-द्वार से विरक्ति का. जीवन पर विरक्ति की जीत हुई और मां ने शंकराचार्य को सन्यासी बनने की हामी भर दी. कहा जाता है कि इसके बाद मगरमच्छ ने शंकराचार्य को मुक्त कर दिया और वह गायब हो गया!
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लेकिन जरा ठहरिए. क्या वाकई शंकराचार्य के जीवन में इस तरह की कोई घटना हुई थी या यह कपोल- कल्पित विचार है?? पवन कुमार वर्मा की शोधपरक पुस्तक आदि शंकराचार्य के जीवन से जुड़े इस तरह के तमाम किस्सों की पड़ताल करती है और उनकी गहराईयों में जाने का प्रयास करती है. इस किताब की एक खास बात और है. वह यह कि किताब में आदि शंकराचार्य की मौलिक रचनाओं में से चुनिंदा पद्मावली भी समेटी गई है. किताब को पढ़ते हुए आप विश्व के सर्वाधिक जीवंत धर्मों में से एक 'हिंदू धर्म' के मजबूत आधारों से रूबरू होंगे.
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किताब : आदि शंकराचार्य- हिंदू धर्म के महान विचारक
लेखक : पवन कुमार वर्मा
प्रकाशक : वेस्टलैंड बुक्स (यात्रा)
मूल्य : 399 ( हार्ड बाउंड)
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आदि शंकराचार्य के बारे में कहा जाता है कि 3 वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही उन्हें वेद और तमाम ग्रंथ जबानी याद हो गए थे. वह एक बार जो चीज सुन लेते थे तो उसे कभी नहीं भूलते थे. आदि शंकराचार्य से जुड़ा एक और किस्सा मशहूर है. कहते हैं कि एक बार शंकराचार्य नदी में स्नान कर रहे थे और उसी समय एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया. शंकराचार्य ने अपनी मां को आवाज दी और कहा... मां मुझे बचाओ...एक मगरमच्छ ने मुझे पकड़ लिया है. हालांकि इसके साथ उन्होंने एक शर्त रख दी और अपनी मां से कहा कि मैं तब तक नहीं बच सकता जब तक आप मुझे सन्यासी बनने की अनुमति नहीं देती हैं. शंकराचार्य की मां कुछ देर के लिए संकोच में पड़ गईं .एक तरफ बेटे के जीवन का प्रश्न था और दूसरी तरफ उसके घर-द्वार से विरक्ति का. जीवन पर विरक्ति की जीत हुई और मां ने शंकराचार्य को सन्यासी बनने की हामी भर दी. कहा जाता है कि इसके बाद मगरमच्छ ने शंकराचार्य को मुक्त कर दिया और वह गायब हो गया!
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