हिंदी साहित्य के धरोहर रांगेय राघव का आज जन्मदिन है
"गहन कालिमा के पट ओढ़े
विकल विकल सी रात रो रही
दूर क्षीण तारों में कोई
टिमटिम करती बात हो रही.."
रांगेय राघव की ये पंक्तियां उनके मिजाज को बताने के लिए काफी हैं. आलौकिक प्रतिभा के धनी तमिल भाषी, लेकिन हिंदी साहित्य के धरोहर रांगेय राघव का आज जन्मदिन है.
कई भाषाओं के धनी
रांगेय राघव को हिंदी का शेक्सपीयर कहा जाता है. 1942 में बंगाल में अकाल पर उनकी रिपोर्ट 'तूफानों के बीच' काफी चर्चित रही. उन्होंने कई विदेशी भाषाओं, जैसे जर्मन और फ्रांसीसी साहित्यकारों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया. राघव द्वारा की गई शेक्सपीयर की रचनाओं का हिंदी अनुवाद मूल रचना ही प्रतीत होती है. इसी के चलते रांगेय को 'हिंदी के शेक्सपीयर' की संज्ञा दी गई.
कुछ यूं हुई शुरुआत
रांगेय राघव ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी शुरुआत कविता से की. लेकिन उन्हें पहचान गद्य लेखक के रूप में मिली. उनका पहला उपन्यास 'घरौंदा' महज 23 साल की उम्र में छपा. इस पर उनकी पत्नी सुलोचना ने लिखा था- "पढ़ने में अच्छे होने के बावजूद भी अर्थशास्त्र में उन्हें कपार्टमेंट आया. इसका पता बाद में चला जब 'घरौंदा' तैयार हो गया. अर्थशास्त्र की क्लास जाने के बजाए वह कॉलेज प्रांगन में 'घरौंदा' लिखने में व्यस्त रहते थे." यह उनका पहला मौलिक उपन्यास है, जिसे उन्होंने महज 18 साल की उम्र में लिखा था.
अहम उपन्यास:
इसके बाद उन्होंने कई उल्लेखनीय उपन्यास लिखे, जिनमें 'कब तक पुकारूं', 'विषाद-मठ', 'मुर्दो का टीला', 'सीधा-साधा रास्ता', 'अंधेरे का जुगनू' और 'बोलते खंडहर' आदि मुख्य हैं. उनकी रची प्रत्येक कृति बेजोड़ है.
साल 1957 में प्रकाशित उनकी सबसे चर्चित उपन्यास 'कब तक पुकारूं' और कहानी 'गदल' वर्ण-व्यवस्था और लैंगिक मतभेद जैसी सामाजिक विकृतियों पर आधारित है. एक प्रसंग में राघव कहते हैं, "यह जात-पात सब आदमी के बनाए बंधन हैं. दुनिया में एक मुल्क अमेरिका है, जहां काले हब्सी रहते हैं. उन पर अत्याचार होता है, क्योंकि वहां के बाकि हुकूमत करने वाले लोग गोरे रंग के हैं."
प्रमुख कृतियां:
रांगेय राधव ने महज 39 साल की उम्र में कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, रिपोर्ताज के अलावा आलोचना, संस्कृति और सभ्यता पर कुल मिलाकर 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं. रांगेय राघव ने हिंदी कहानी को भारतीय समाज के उन धूल-कांटों भरे रास्तों, भारतीय गांवों की कच्ची और कीचड़-भरी पगडंडियों से परिचित कराया, जिनसे वह भले ही अब तक पूर्ण रूप से अपरिचित न रहे हो पर इस तरह घुले-मिले भी नहीं थे.
रांगेय राघव को उनके असाधारण कृतियों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. 1947 में उन्हें हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार, 1954 में डालमिया पुरस्कार, 1957 और 1959 में उत्तर प्रदेश शासन पुरस्कार, 1961 में राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1966 में मरणोपरांत महात्मा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
'जानपील' के शौकीन:
राघव को सिगरेट पीने का बहुत शौक था. वह हमेशा 'जानपील' नाम की सिगरेट पीते रहते थे, दूसरी सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाते. उनके लिखने की मेज पर सिगरेट की कई डिब्बियां रखी रहती थीं. उनका कमरा सिगरेट की गंध और धुएं से भरा रहता था. सिगरेट उनकी जरूरत बन गई थी. बिना सिगरेट के वह कुछ भी करने में असमर्थ थे. 1962 में सिगरेट पीने की आदत के कारण ही हिंदी के इस विलक्षण साहित्यकार का निधन हो गया.
हिंदी साहित्य का यह योद्धा महज 39 साल की उम्र में हिंदी साहित्य को विरान कर गया. 12 सितंबर, 1962 को मुंबई में रांगेय राघव का निधन हो गया. इनकी अद्भुत रचना ने हिंदी साहित्य में कई कृतिमान स्थापित किए. हिंदी साहित्यकारों की कतार में अपने रचनात्मक वैशिष्ट्य और सृजन विविधता के कारण वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे.
आईएएनए से इनपुट
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
विकल विकल सी रात रो रही
दूर क्षीण तारों में कोई
टिमटिम करती बात हो रही.."
रांगेय राघव की ये पंक्तियां उनके मिजाज को बताने के लिए काफी हैं. आलौकिक प्रतिभा के धनी तमिल भाषी, लेकिन हिंदी साहित्य के धरोहर रांगेय राघव का आज जन्मदिन है.
कई भाषाओं के धनी
रांगेय राघव को हिंदी का शेक्सपीयर कहा जाता है. 1942 में बंगाल में अकाल पर उनकी रिपोर्ट 'तूफानों के बीच' काफी चर्चित रही. उन्होंने कई विदेशी भाषाओं, जैसे जर्मन और फ्रांसीसी साहित्यकारों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया. राघव द्वारा की गई शेक्सपीयर की रचनाओं का हिंदी अनुवाद मूल रचना ही प्रतीत होती है. इसी के चलते रांगेय को 'हिंदी के शेक्सपीयर' की संज्ञा दी गई.
कुछ यूं हुई शुरुआत
रांगेय राघव ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी शुरुआत कविता से की. लेकिन उन्हें पहचान गद्य लेखक के रूप में मिली. उनका पहला उपन्यास 'घरौंदा' महज 23 साल की उम्र में छपा. इस पर उनकी पत्नी सुलोचना ने लिखा था- "पढ़ने में अच्छे होने के बावजूद भी अर्थशास्त्र में उन्हें कपार्टमेंट आया. इसका पता बाद में चला जब 'घरौंदा' तैयार हो गया. अर्थशास्त्र की क्लास जाने के बजाए वह कॉलेज प्रांगन में 'घरौंदा' लिखने में व्यस्त रहते थे." यह उनका पहला मौलिक उपन्यास है, जिसे उन्होंने महज 18 साल की उम्र में लिखा था.
अहम उपन्यास:
इसके बाद उन्होंने कई उल्लेखनीय उपन्यास लिखे, जिनमें 'कब तक पुकारूं', 'विषाद-मठ', 'मुर्दो का टीला', 'सीधा-साधा रास्ता', 'अंधेरे का जुगनू' और 'बोलते खंडहर' आदि मुख्य हैं. उनकी रची प्रत्येक कृति बेजोड़ है.
साल 1957 में प्रकाशित उनकी सबसे चर्चित उपन्यास 'कब तक पुकारूं' और कहानी 'गदल' वर्ण-व्यवस्था और लैंगिक मतभेद जैसी सामाजिक विकृतियों पर आधारित है. एक प्रसंग में राघव कहते हैं, "यह जात-पात सब आदमी के बनाए बंधन हैं. दुनिया में एक मुल्क अमेरिका है, जहां काले हब्सी रहते हैं. उन पर अत्याचार होता है, क्योंकि वहां के बाकि हुकूमत करने वाले लोग गोरे रंग के हैं."
प्रमुख कृतियां:
रांगेय राधव ने महज 39 साल की उम्र में कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, रिपोर्ताज के अलावा आलोचना, संस्कृति और सभ्यता पर कुल मिलाकर 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं. रांगेय राघव ने हिंदी कहानी को भारतीय समाज के उन धूल-कांटों भरे रास्तों, भारतीय गांवों की कच्ची और कीचड़-भरी पगडंडियों से परिचित कराया, जिनसे वह भले ही अब तक पूर्ण रूप से अपरिचित न रहे हो पर इस तरह घुले-मिले भी नहीं थे.
रांगेय राघव को उनके असाधारण कृतियों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. 1947 में उन्हें हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार, 1954 में डालमिया पुरस्कार, 1957 और 1959 में उत्तर प्रदेश शासन पुरस्कार, 1961 में राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1966 में मरणोपरांत महात्मा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
'जानपील' के शौकीन:
राघव को सिगरेट पीने का बहुत शौक था. वह हमेशा 'जानपील' नाम की सिगरेट पीते रहते थे, दूसरी सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाते. उनके लिखने की मेज पर सिगरेट की कई डिब्बियां रखी रहती थीं. उनका कमरा सिगरेट की गंध और धुएं से भरा रहता था. सिगरेट उनकी जरूरत बन गई थी. बिना सिगरेट के वह कुछ भी करने में असमर्थ थे. 1962 में सिगरेट पीने की आदत के कारण ही हिंदी के इस विलक्षण साहित्यकार का निधन हो गया.
हिंदी साहित्य का यह योद्धा महज 39 साल की उम्र में हिंदी साहित्य को विरान कर गया. 12 सितंबर, 1962 को मुंबई में रांगेय राघव का निधन हो गया. इनकी अद्भुत रचना ने हिंदी साहित्य में कई कृतिमान स्थापित किए. हिंदी साहित्यकारों की कतार में अपने रचनात्मक वैशिष्ट्य और सृजन विविधता के कारण वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे.
आईएएनए से इनपुट
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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