- चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न को संवैधानिक और नियमित प्रक्रिया बताया है
- आयोग ने बड़े पैमाने पर वोटर डिलीशन के दावों को बढ़ा-चढ़ाकर और राजनीतिक हितों से प्रेरित करार दिया
- 99.77 प्रतिशत मतदाताओं को प्री-फिल्ड एन्यूमरेशन फॉर्म दिए जा चुके हैं, 70.14 प्रतिशत फॉर्म वापस मिले हैं
पश्चिम बंगाल में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न यानी एसआईआर (SIR) को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले चुनाव आयोग (ECI) ने हलफनामा दाखिल कर आरोपों को खारिज किया है. चुनाव आयोग ने कहा कि बड़े पैमाने पर वोटर डिलीशन के दावे “बेहद बढ़ा-चढ़ाकर” पेश किए गए हैं और इनका इस्तेमाल “निहित राजनीतिक हितों” के लिए किया जा रहा है.
ECI ने क्या कुछ कहा
चुनाव आयोग ने कहा कि SIR पूरी तरह संवैधानिक, नियमित और दशकों से चली आ रही प्रक्रिया का हिस्सा है. 24 जून और 27 अक्टूबर 2025 के आदेश वैध हैं. साफ-सुथरी और सटीक मतदाता सूची तैयार करना संवैधानिक दायित्व है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने टी.एन. शेषन केस (1995) में भी मान्यता दी थी. संविधान के अनुच्छेद 324 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धाराएं 15, 21 और 23 आयोग को विशेष पुनरीक्षण का अधिकार देती हैं.
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आयोग का दावा:
99.77% मौजूदा मतदाताओं को प्री-फिल्ड एन्यूमरेशन फॉर्म दिए जा चुके हैं. 70.14% भरे हुए फॉर्म वापस मिल चुके हैं. BLO घर-घर जाकर फॉर्म देते और इकट्ठा करते हैं. घर बंद मिले तो तीन बार नोटिस छोड़ना अनिवार्य है. वृद्ध, दिव्यांग और संवेदनशील समूहों के मतदाताओं को परेशानी न हो, इसके लिए विशेष निर्देश जारी किए गए हैं.
आरोपों पर आयोग की प्रतिक्रिया
ग़लत क्रियान्वयन, बहिष्करण या बड़े पैमाने पर मतदाता हटाए जाने” के दावे पूरी तरह असत्य और बढ़ा-चढ़ाकर बताए गए हैं. पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर विलोपन का आरोप तथ्यों पर आधारित नहीं है, बल्कि मीडिया में एक नैरेटिव के तौर पर फैलाया जा रहा है ताकि राजनीतिक लाभ लिया जा सके.
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सांसद डोला सेन की याचिका में आरोप लगाया गया था कि SIR अवैध और मनमाना है तथा सही मतदाताओं के नाम कट जाएंगे. आयोग ने इसे नकारते हुए कहा कि किसी भी मतदाता का नाम कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना नहीं काटा जा सकता. CJI सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ 9 दिसंबर को पश्चिम बंगाल SIR को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी.
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