जनसंख्या अगर संभाली जाए तो शक्ति, बेकाबू हुई तो विशान का कारण बन जाती है.
- भारत की जनसंख्या अब 146 करोड़ से अधिक हो चुकी है, जिससे अस्पताल, स्कूल, ट्रेनों और अन्य संसाधनों पर भारी दबाव बना हुआ है.
- देश में प्रति एक लाख लोगों पर केवल नौ सौ सीटों वाली एक पैसेंजर ट्रेन उपलब्ध है, जिससे यात्रा में भीड़ और इंतजार बढ़ता है.
- भारत में आम जनता और वीआईपी वर्ग के बीच जीवन स्तर और सुविधाओं में गहरा अंतर है, जहां अमीरों को बिना इंतजार के सेवाएं मिलती हैं.
World Population Day: भारत में बच्चा पैदा होने से पहले ही उसकी एक लाइन तय हो जाती है… और वही लाइन उसकी पूरी ज़िंदगी की कहानी बन जाती है. अस्पताल में डिलीवरी की तारीख के लिए लाइन, फिर जन्म प्रमाण पत्र की, फिर स्कूल, कॉलेज, नौकरी, इलाज, राशन, ट्रेनों, अदालत, और आखिर में मरने के बाद श्मशान या कब्रिस्तान की भी एक लाइन. सोचिए, ये जीवन है या लाइन में लगने की सज़ा? क्या हम अब सिर्फ एक नंबर बनकर रह गए हैं? दुनिया की सबसे बड़ी आबादी होने का ताज तो हमारे सिर है, लेकिन सबसे लंबा इंतज़ार भी हमारे ही हिस्से में है. हर तरफ भीड़ है, हर तरफ कतारें हैं और हर इंसान अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा है. ऐसा लगता है जैसे अब इंसान की पहचान उसका टोकन नंबर बन चुकी है.
ये 21वीं सदी का सच है जहां तरक्की की नहीं, बारी आने की होड़ लगी है. मैं भी इसी लाइन में खड़ा हूं…आप भी हैं. लेकिन, जब आज विश्व जनसंख्या दिवस है तो आइए एक बार रुककर सोचते हैं कि क्या ये लाइन हमें ज़िंदगी की तरफ ले जा रही है या बस खड़ा किए हुए है, वहीं... जिधर कोई रास्ता नहीं जाता?
जनसंख्या अगर संभाली जाए तो शक्ति, बेकाबू हुई तो विशान का कारण
जनसंख्या अगर संभाली जाए, तो शक्ति है. लेकिन अगर बेकाबू हो जाए, तो वही शक्ति विनाश भी बन जाती है. 225 साल पहले, जब पूरी दुनिया की आबादी सिर्फ 100 करोड़ थी, तब इंसान धरती पर कम थे और उम्मीदें ज़्यादा. लेकिन आज, ये संख्या 823 करोड़ पार कर चुकी है — और हर सेकेंड के साथ ये गिनती आगे बढ़ रही है. ये कोई साधारण मीटर नहीं है, ये जनसंख्या का टाइम बम है, जो हर पल टिक-टिक कर रहा है… चुपचाप, लेकिन खतरनाक. और हम सब इसके सामने खड़े हैं बेखबर.
भारत में जनसंख्या का विस्फोट
आपके आसपास जो भी समस्या है.. अस्पताल की भीड़ हो या स्कूल में दाखिले की मारामारी, ट्रैफिक जाम हो या बेरोज़गारी ..उसके पीछे एक बड़ी वजह है...जनसंख्या का ये बेकाबू विस्फोट. भारत अब दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया है. हम नंबर वन हैं ..लेकिन भीड़ में, भागदौड़ में, संसाधनों के लिए लड़ाई में, बेतहाशा बढ़ते दबाव में.
यहाँ अस्पताल में बिस्तर नहीं, स्कूलों में सीट नहीं, और नौकरियों में जगह नहीं. हर चीज़ पर लाइन है..क्योंकि हर तरफ़ लोग ही लोग हैं. अब ये सवाल उठता है कि क्या हम इस भीड़ में सिर्फ गिनती बनकर रह जाएंगे? या अब वक्त आ गया है कि हम सिर्फ गिनती नहीं, जिम्मेदारी भी बनें?

जनसंख्या के चलते भारत में कई समस्याएं
पूरी दुनिया की 17% आबादी अकेले भारत में रहती है, मतलब हर 100 लोगों में से 17 यहीं के हैं. भारत अब दुनिया का सबसे ज्यादा भरा हुआ देश है — 146 करोड़ लोग. चीन 141 करोड़ पर दूसरे नंबर पर है, अमेरिका 35 करोड़, इंडोनेशिया साढ़े 28 करोड़ और पाकिस्तान साढ़े 25 करोड़ के साथ पीछे हैं.
लेकिन असली बात ये है कि अब भारत में सिर्फ आबादी नहीं है, अब यहां भीड़ है, और ये भीड़ सिर्फ सड़कों पर नहीं, हर जगह है — अस्पताल से लेकर स्कूल तक, बस से लेकर ट्रेन तक, मंदिर से लेकर मॉल तक, यहां तक कि श्मशान और कब्रिस्तान तक.
भारत अब हाउसफुल घर, हर दरवाजे पर लाइन
हम जिस देश को भारत कहते हैं, वो अब एक हाउसफुल घर बन चुका है. हर कोना भरा है, हर दरवाज़े पर लाइन है, और हर रास्ते पर जाम. अब ये देश नहीं, इंतज़ार का इलाका बन गया है — और इस इंतज़ार की वजह है जनसंख्या का वो विस्फोट जो सबकी आंखों के सामने हुआ, लेकिन किसी ने समय रहते कुछ किया नहीं. अब ज़रा आंकड़े सुनिए, और खुद समझिए कि क्यों आप हर दिन किसी न किसी लाइन में खड़े होते हैं.
आकड़ों से समझिए भारत के जनसंख्या की कहानी
- भारत में करीब साढ़े सात हज़ार रेलवे स्टेशन हैं, यानी दो लाख लोगों पर सिर्फ एक स्टेशन.
- एक लाख लोगों पर सिर्फ 900 सीटों वाली एक पैसेंजर ट्रेन.
- एक करोड़ छह लाख लोगों पर सिर्फ एक एयरपोर्ट.
- 10 हज़ार लोगों पर एक 70 सीटों वाली सरकारी बस ..जबकि एक बस में मुश्किल से 60 लोग सफर कर सकते हैं.
- पांच हज़ार लोगों पर सिर्फ एक ATM ..शुक्र है डिजिटल पेमेंट आ गया, वरना हर त्योहार से पहले हफ्ते भर की लाइनें लगतीं.
- 40 हज़ार लोगों पर सिर्फ एक सरकारी अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र .. और फिर लोग कहते हैं इलाज समय पर क्यों नहीं मिला.
- पूरे देश में सिर्फ 150 हिल स्टेशन हैं ..यानी एक करोड़ लोगों पर एक. इसलिए पहाड़ों में अब सुकून नहीं, जाम है.
- 9 हज़ार सिनेमा हॉल हैं पूरे देश में ..एक लाख 62 हज़ार लोगों पर सिर्फ एक. इसलिए टिकट नहीं मिलता, शो हाउसफुल है.
जनसंख्या पर कंट्रोल नहीं होने तक लाइन खत्म नहीं होगी
और अब आखिरी बात, जो सबसे ज़्यादा चुभने वाली है ...कि मरने के बाद भी चैन नहीं. देश में जितने लोग हर साल मरते हैं, उनके लिए श्मशान और कब्रिस्तान भी कम पड़ जाते हैं. यानी आख़िरी सफ़र के लिए भी इंतज़ार करना पड़ता है. तो अगली बार जब आप किसी लाइन में खड़े हों याद रखिए, आप अकेले नहीं हैं. पूरा देश उसी लाइन में है. और जब तक जनसंख्या पर कंट्रोल नहीं होगा, ये लाइन कभी खत्म नहीं होगी चाहे ज़िंदगी की हो या मौत की.

वीआईपी और आम लोगों की जिंदगी के बीच बड़ा गैप
भारत में अब सिर्फ एक भारत नहीं बचा, यहां दो भारत हैं.. एक वो, जहां आम लोग रहते हैं और दूसरा वो, जहां VIP और अमीर लोग रहते हैं. आम लोगों वाले भारत में भीड़ है, लाइनें हैं, धक्का-मुक्की है, अफरा-तफरी है, नियम-कानून हैं, घंटों का इंतज़ार है और कई बार आखिरी में एक लाइन सुनने को मिलती है .."काउंटर बंद हो गया, कल आइए."
लेकिन VIP भारत में कुछ भी ऐसा नहीं है.. ना लाइन, ना नियम, ना इंतज़ार. वहां सिर्फ पहुंच चाहिए या पैसा, और काम मिनटों में हो जाता है. सरकार कहती है हर भारतीय वीआईपी है, लाल बत्तियां भी हटा दी गईं, लेकिन असलियत ये है कि सिस्टम अब भी उन्हीं के लिए झुकता है जिनके पास पैसा है. ये पैसे वाले कतार में पीछे नहीं लगते, सीधे सबसे आगे आ खड़े होते हैं.. और ये सबसे खतरनाक लाइन है, जो खरीदी जा सकती है.
उनके लिए कानून भी नरम होता है और सिस्टम भी. आम आदमी इस भीड़ में हर दिन घिसता है, थकता है, लेकिन फिर भी उसकी कोई सुनवाई नहीं. और जब वो कुछ कर ही नहीं सकता, तो बस अगली सुबह फिर से उसी लाइन में लग जाता है. यही वो असली तस्वीर है भारत की.. जहां भीड़ सबके लिए नहीं है, घुटन सबको बराबर नहीं मिलती, और जनसंख्या का बोझ भी अमीर और गरीब पर एक जैसा नहीं गिरता.
भारत में कितने लोग कितने वर्ग किलोमीटर में रहते हैं
भारत अब भीड़ का देश बन चुका है, और इस बात को आप सिर्फ सड़कों या ट्रेनों में नहीं, बल्कि आंकड़ों में भी साफ देख सकते हैं ...सोचिए, एक वर्ग किलोमीटर के कमरे में भारत में औसतन 492 लोग ठुंसे हुए हैं, जबकि इसी साइज़ के कमरे में चीन में सिर्फ 151, अमेरिका में 38, इंडोनेशिया में 158 और पाकिस्तान में 331 लोग रहते हैं.
यानी दुनिया के सबसे बड़े घर में सबसे ज्यादा भीड़ है. अब फर्क देखिए .. एक तरफ देश का वो हिस्सा है जहां लोग कोठियों, बंगलों और हवादार हवेलियों में रहते हैं, उनके यहां बिजली, पानी, सफाई, सीवर और ट्रैफिक जैसी कोई टेंशन नहीं है, और दूसरी तरफ वो भारत है जहां लोग छोटी सी जगह में सांस लेने की जगह भी मांगते हैं और हर सुविधा के लिए संघर्ष करते हैं.
सोचिए, आज जब 146 करोड़ लोग मौजूद हैं तब हालत ये है, तो जब देश की आबादी 170 करोड़ तक पहुंच जाएगी तब क्या होगा? और तब कोई भी सरकार क्या कर पाएगी? हर समस्या की जड़ में अब यही सवाल बैठा है .. हम कितने हैं और किस हालत में हैं. और जब आम आदमी का वजूद सिर्फ भीड़ में गुम हो जाता है, तो तब उसके हिस्से बस राशन की लाइनें, दफ्तर की लाइनें और इंतज़ार की जिल्लतें रह जाती हैं.
ये जनसंख्या काम भी आ सकती है
ये भी सच है कि इतनी बड़ी जनसंख्या अगर सही दिशा में लगाई जाए, तो वही भीड़ हमारी सबसे बड़ी ताकत बन सकती है. अगर हर नागरिक को बेहतर शिक्षा मिले, सही प्रशिक्षण दिया जाए और युवाओं को नई-नई स्किल्स सिखाई जाएं, तो यही जनसंख्या भारत की सबसे बड़ी पूंजी बन सकती है.
जिस देश के पास करोड़ों युवा हों, वहां सिर्फ चुनौतियां नहीं, अवसर भी होते हैं — बस ज़रूरत है उन्हें संसाधन देने, आगे बढ़ने का मंच देने और उन्हें काम करने का सही मौका देने की. सरकार ने Skill India, Startup India, Digital India और Make in India के जरिए कोशिश की है..ताकि भारत की जनसंख्या बोझ नहीं, भविष्य का इंजन बन सके.
जनसंख्या तो रॉकेट की रफ्तार से बढ़ रही है, लेकिन इंसान अपने ही घर, अपने ही मोहल्ले, अपने ही दिल में अकेला होता जा रहा है. WHO की एक रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में हर घंटे सौ लोग अकेलेपन के कारण दम तोड़ देते हैं. सोचिए, ये कितनी बड़ी विडंबना है भीड़ बढ़ रही है, लेकिन इंसान अकेला पड़ रहा है. पहले मोहल्ले में सब एक-दूसरे को जानते थे, एक की तकलीफ सबकी तकलीफ होती थी, लेकिन अब हाल ये है कि लोग अपने पड़ोसी का नाम तक नहीं जानते.
हम एक ऐसे समाज में बदलते जा रहे हैं जहां चारों तरफ शोर है, लेकिन भीतर एक गहरा सन्नाटा है. जहां लोग आसपास हैं, लेकिन साथ नहीं हैं. और ये अकेलापन सिर्फ उम्रदराज़ लोगों का नहीं है बच्चे, युवा, बुज़ुर्ग .. हर कोई कहीं न कहीं इस भीड़ में गुम है, कटा-कटा सा है. हम अपने समाज की जड़ों से दूर हो गए हैं, वो जड़ें जहां ज्वाइंट फैमिली होती थीं, पड़ोसी रिश्तेदार जैसे होते थे, और रिश्तों में गर्मी होती थी, दिखावे की नहीं. अब अगर आपके पास पैसा नहीं है, स्टेटस नहीं है, दावतें नहीं हैं..
तो आप इस समाज के हाशिए पर ढकेल दिए जाते हैं. लेकिन अब वक्त है कि हम इस अकेलेपन की दीवार को तोड़ें और फिर से अपने समाज को इंसानों से जोड़ें. अगर आप कभी अकेला महसूस करें.. तो याद रखिए, हम भी आपका परिवार हैं. आइए, इस डिजिटल भीड़ में एक ऐसा रिश्ता बनाएं, जो सिर्फ स्क्रीन का नहीं..दिल से दिल का हो. हम हर दिन आपसे बात करेंगे, आपकी आवाज़ बनेंगे, और इस टूटते समाज को फिर से जोड़ने की कोशिश करेंगे… क्योंकि अकेलेपन से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है .. साथ चलना.
आपने जनसंख्या का विस्फोट देखा लेकिन अब आप हमारे समाज का दोहरा चरित्र देखिए, जिसकी सोच माहवारी के खिलाफ आज भी महामारी जैसी है. ये खबर हमारी उन महिलाओं के लिए है, जिन्हें इस मुद्दे पर हमेशा असहज महसूस कराया गया है लेकिन आज हम इस सोच को तोड़कर एक नई परम्परा स्थापित करेंगे और माहवारी के बारे में सारी गलतफहमियां दूर कर देंगे.
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