"महिलाओं को वंदन की नहीं, सम्मान और समानता की जरूरत": लोकसभा में बोलीं DMK सांसद कनिमोझी

Women's Reservation Bill: संवैधानिक संशोधन विधेयक 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' (Nari Shakti Vandan Adhiniyam) पर चर्चा में भाग लेते हुए कनिमोझी ने कहा कि इस विधेयक में 'परिसीमन के बाद' (after delimitation) से संबंधित खंड को हटा दिया जाना चाहिए, क्योंकि महिलाओं के लिए आरक्षण लागू करने में बहुत ज्यादा देरी हो सकती है.

नई दिल्ली:

संसद के विशेष सत्र (Parliament Special Session) के तीसरे दिन बुधवार को लोकसभा में महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन विधेयक) पर डिबेट जारी है. इस बिल को लेकर डीएमके सांसद कनिमोझी (DMK MP Kanimozhi)ने 'गोपनीयता का पर्दा' रखने पर सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा, "ये विधेयक (Women's Reservation Bill) आरक्षण के बारे में नहीं है, बल्कि पूर्वाग्रह और अन्याय को दूर करने का काम है." उन्होंने कहा, "महिलाओं को वंदन, पूजा की जरूरत नहीं है. उन्हें सम्मान और समानता की जरूरत है. इस देश और इस संसद में महिलाओं का अधिकार उतना ही है, जितना पुरुषों का है. महिलाएं बराबरी का सम्मान चाहती हैं."

संवैधानिक संशोधन विधेयक 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' (Nari Shakti Vandan Adhiniyam) पर चर्चा में भाग लेते हुए कनिमोझी ने कहा कि इस विधेयक में 'परिसीमन के बाद' (after delimitation) से संबंधित खंड को हटा दिया जाना चाहिए, क्योंकि महिलाओं के लिए आरक्षण लागू करने में बहुत ज्यादा देरी हो सकती है. विधेयक में प्रस्तावित लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया के बाद ही लागू होगा.

और कितना इंतजार करना होगा- कनिमोझी
कनिमोझी ने कहा, "हमें इस विधेयक को लागू होते देखने के लिए कब तक इंतजार करना चाहिए? इसे आने वाले संसदीय चुनावों में आसानी से लागू किया जा सकता है. आपको यह समझना चाहिए कि यह विधेयक आरक्षण नहीं है, बल्कि पूर्वाग्रह और अन्याय को दूर करने का एक अधिनियम है." उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रतीकवाद की राजनीति (politics of tokenism) को विचारों की राजनीति में विकसित होना चाहिए.

सरकार ने कौन सी सहमति बनाई- कनिमोझी
डीएमके सांसद ने कहा, "संसद में पूछे गए उनके प्रश्नों के उत्तर में सरकार की ओर से लगभग यही जवाब मिला कि इस पर विभिन्न हितधारकों से विचार किया जा रहा है. आम-सहमति बनाकर इसे लाया जाएगा." कनिमोझी ने कहा, "सरकार ने कौन सी सहमति बनाई, बल्कि यह विधेयक तो गोपनीयता के साथ लाया गया. सर्वदलीय बैठक में भी इसके बारे में विपक्षी दलों को कुछ नहीं बताया गया. अचानक से सदस्यों के सामने कम्प्यूटर स्क्रीन पर विधेयक आ गया. बिल्कुल जैक-इन-द-बॉक्स की तरह."

आज 13 साल फिर...
डीएमके सदस्य कनिमोझी ने कहा कि सबसे पहली बार महिला आरक्षण विधेयक 1996 में तत्कालीन संयुक्त मोर्चा सरकार द्वारा उनकी पार्टी के सहयोग से लाया गया था. उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार भी विधेयक लाई थी, लेकिन इस विधेयक को राज्यसभा में कांग्रेस-नीत यूपीए ने पारित कराया. कनिमोझी ने कहा कि उन्हें 2010 में राज्यसभा में इस विधेयक पर चर्चा में भाग लेने का मौका मिला था. आज 13 वर्ष बाद वह लोकसभा में इसी विधेयक पर अपने विचार रख रही हैं.

कनिमोझी ने कहा, "तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि ने 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने की मांग की थी. वहीं, 2017 में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और डीएमके नेता स्टालिन ने भी मोदी को पत्र लिखकर यह अनुरोध किया था." कनिमोझी ने कहा कि वह स्वयं भी इस विषय को कई बार संसद में उठा चुकी हैं.

लोकसभा में 19 सितंबर को 128वां संविधान संशोधन बिल यानी नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश किया गया. इसके मुताबिक लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% रिजर्वेशन लागू किया जाएगा. लोकसभा की 543 सीटों में 181 महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. 

तीन दशक से पेंडिंग था महिला आरक्षण बिल
संसद में महिलाओं के आरक्षण का प्रस्ताव करीब 3 दशक से पेंडिंग है. यह मुद्दा पहली बार 1974 में महिलाओं की स्थिति का आकलन करने वाली समिति ने उठाया था. 2010 में मनमोहन सरकार ने राज्यसभा में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण बिल को बहुमत से पारित करा लिया था. तब सपा और आरजेडी ने बिल का विरोध करते हुए तत्कालीन UPA सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दे दी थी. इसके बाद बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया गया. 

परिसीमन के बाद ही लागू होगा बिल
नए विधेयक में सबसे बड़ा पेंच यह है कि यह डीलिमिटेशन यानी परिसीमन के बाद ही लागू होगा. परिसीमन इस विधेयक के पास होने के बाद होने वाली जनगणना के आधार पर होगा. 2024 में होने वाले आम चुनावों से पहले जनगणना और परिसीमन करीब-करीब असंभव है. इस फॉर्मूले के मुताबिक, विधानसभा और लोकसभा चुनाव समय पर हुए, तो इस बार महिला आरक्षण लागू नहीं होगा. यह 2029 के लोकसभा चुनाव या इससे पहले के कुछ विधानसभा चुनावों से लागू हो सकता है.

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