- मोदी–ट्रंप कॉल बताती है कि टैरिफ विवाद सुलझाने और ट्रेड डील को अंतिम रूप देने की कोशिश तेज हो रही है.
- भारत किसानों, डेयरी और MSME की सुरक्षा पर अड़ा है और अब बराबरी की शर्तों पर आत्मविश्वास से बातचीत कर रहा है.
- अमेरिका भारत को चीन के विकल्प और रणनीतिक साझेदार के रूप में देख रहा है, जिससे डील का महत्व और बढ़ गया है.
भारत और अमेरिका के रिश्ते इस समय बेहद अहम दौर से गुजर रहे हैं क्योंकि आज अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और दोनों देशों के बीच लेन-देन हजारों करोड़ रुपये में चलता है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच बीती रात फोन पर हुई बातचीत आने वाले समय की बड़ी दिशा दिखाने वाला संकेत है. एक तरफ ट्रंप प्रशासन के संकेत साफ हैं कि वह टैरिफ और व्यापार संतुलन पर सख्त बना रहेगा, वहीं भारत चाहता है कि दोनों देशों के बीच टैरिफ बाधाएं घटें और नई ट्रेड डील आगे बढ़े. इसीलिए मोदी–ट्रंप कॉल को रणनीतिक नजरिए से देखा जा रहा है.
इसी बीच अमेरिका के उप व्यापार प्रतिनिधि रिक स्विट्जर भारत आए हुए हैं, जो भारत–अमेरिका व्यापार एजेंडे को और गहरा करने के लिए यहां उच्च-स्तरीय बातचीत कर रहे हैं. यह संयोग नहीं है, बल्कि साफ संकेत है कि अमेरिका जल्द ही भारत के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को पुनः परिभाषित करने की तैयारी में है.
इन्हीं सबके बीच भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल का बयान भी काफी मायने रखता है. उन्होंने कहा कि भारत–अमेरिका व्यापार साझेदारी नई ऊंचाइयों पर है और दोनों देश पूरी गंभीरता से एक-दूसरे के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं. उनका संकेत साफ है कि आने वाला समय बड़े फैसलों वाला हो सकता है.
ऐसे माहौल में मोदी–ट्रंप बातचीत यह बताने के लिए काफी है कि दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र आने वाले वर्षों के लिए अपने रिश्तों की नई शुरुआत कर रहे हैं और इसका असर सिर्फ राजनीति में नहीं, भारत की जेब तक महसूस होगा.
दोनों देशों के लिए टैरिफ समाधान अहम
मोदी–ट्रंप फोन कॉल का टाइमिंग बताता है कि 'टैरिफ तनाव का समाधान' अब सबसे अहम है. मोदी और ट्रंप के बीच हुई फोन कॉल का फोकस साफ था— ट्रेड, टेक्नोलॉजी, ऊर्जा, सुरक्षा और डिफेंस सहयोग को बढ़ाना.
यह कॉल इसलिए अहम बन गई क्योंकि अमेरिका ने भारत पर कुल 50% टैरिफ लगा रखा है —
▪ पहली बार 25%, व्यापार घाटे के कारण
▪ दूसरी बार 25%, रूस से कच्चा तेल खरीदने की वजह से
इससे भारतीय निर्यात, खासकर MSME सेक्टर, सीधे प्रभावित हुआ. रुपया 90 प्रति डॉलर के ऐतिहासिक निचले स्तर से नीचे गया है. ऐसे समय में दोनों नेताओं की बातचीत संकेत देती है कि टैरिफ विवाद कम करने की दिशा में तेजी आने वाली है.
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ट्रेड डील अपने निर्णायक मोड़ पर है- गोयल ने दिया सीधा संदेश
पीयूष गोयल ने साफ कहा कि अगर अमेरिका भारत के ऑफर से खुश है, तो उसे इसके कागज पर दस्तखत कर देना चाहिए. अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि (USTR) जेमीसन ग्रीयर ने यह स्वीकार किया कि भारत ने अब तक का सबसे अच्छा ऑफर दिया है. यह बयान बताता है कि 5 राउंड की बातचीत के बाद ट्रेड डील पहली बार वास्तविक साइनिंग-स्टेज के करीब दिख रही है. लेकिन भारत ने डील के डेडलाइन देने से इनकार किया है, ताकि जल्दबाजी में कोई गलती न हो- यानी अब भारत दबाव नहीं बल्कि आत्मविश्वास की स्थिति में बातचीत कर रहा है.
अमेरिका को भारत की जरूरत
इसके पीछे वजह यह है कि भारत जानता है कि आज की तारीख में भारत अमेरिका की जरूरत है. अमेरिका पर यह दबाव है कि उसे चीन के 'वैकल्पिक बाजार' की तलाश है और भारत उसके लिए सबसे उपयुक्त है. अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि जेमीसन ग्रीयर का बयान कि भारत ने सबसे अच्छा ऑफर दिया है और वह अमेरिका के लिए 'व्यावहारिक वैकल्पिक बाजार' है- यह दिखाता है कि अमेरिका भी भारत को खोने का जोखिम नहीं लेना चाहता.
ट्रंप सरकार को इन तीन वजहों से भारत की जरूरत है- पहला, भारत सप्लाई चेन के नए केंद्र के रूप में उभर रहा है. दूसरा, यह एशिया में एक रणनीतिक साझेदार के रूप में पहले से मौजूद है. और तीसरा, ट्रंप चीन पर अमेरिकी निर्भरता कम करना चाहते हैं, जिसके लिए उन्हें उसी के समान एक बड़े बाजार की जरूरत है, जो भारत के रूप में मौजूद है. यानी, ट्रेड डील अब सिर्फ आर्थिक कारणों से ही नहीं बल्कि रणनीतिक वजहों से भी महत्वपूर्ण हो गई है.
भारत भी इन मुद्दों पर अड़ा है...
यही कारण है कि भारत ने स्पष्ट ‘रेड लाइन्स' खींच दी हैं. भारत अब किसान, डेयरी और MSME सेक्टर पर कोई समझौता नहीं करना चाहता.
वहीं, अमेरिका ट्रेड डील के बदले भारत से चाहता है वो उसे बादाम, कॉर्न, सेब जैसे कृषि आयात पर बड़ी रियायतें दे. उद्योग उत्पादों पर ड्यूटी में कटौती करे. पर भारत ने साफ मना कर दिया कि किसानों के हितों से कोई समझौता नहीं करेगा. उसने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि डेयरी और MSME को प्रभावित करने वाली रियायतें भी संभव नहीं हैं. यह बताता है कि भारत अब बराबरी की शर्तों पर डील चाहता है. यानी, डील तभी होगी जब दोनों पक्षों को फायदा हो.

भारत के लिए अमेरिका कितना अहम?
बेशक भारत के लिए अमेरिकी बाजार बहुत मायने रखता है. भारत अपने कुल निर्यात का 18% यहीं बेचता है. जब से 50% टैरिफ लगाया गया है, भारतीय उद्योग मार्जिन बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं. साथ ही नए बाजार की तलाश भी जारी है. लेकिन अमेरिका जैसा प्रीमियम मार्केट कहीं नहीं है. इसलिए भारत टैरिफ हटाने या इसे कम करने की जद्दोजहद में जुटा है. टैरिफ हटते ही भारत को इसका तुरंत लाभ मिलेगा. सकारात्मक डील भारतीय अर्थव्यवस्था, रुपये और निर्यात पर असरकार होगी. रुपये के दबाव में तुरंत सुधार आएगा. निवेश, टेक्नोलॉजी और रक्षा सहयोग में तेजी आएगी. साथ ही इससे इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक संतुलन और मजबूत होगा. मोदी-ट्रंप के बीच हुई बातचीत इसी बड़े संदर्भ में एक टोन सेटिंग मोमेंट है. यह एक संकेत हैं कि डील अपने अंतिम चरण में है और जल्द ही एक बड़ा एलान हो सकता है.
यह फोन कॉल रूस के राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे के तुरंत बाद आया है. अमेरिका संदेश देना चाहता है कि वो बदलते वैश्विक परिदृश्य में विश्व शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए भारत के साथ मिलकर काम करना चाहता है. लिहाजा इस बातचीत का असर आगे ट्रेड डील, सामरिक सहयोग और वैश्विक नेतृत्व की दिशा पर भी पड़ता दिखेगा. कुल मिलाकर यह कहा जाए कि आने वाले महीनों में व्यापार, सुरक्षा और वैश्विक राजनीति- तीनों मोर्चों पर कुछ बड़ा होने वाला है और भारत का इसमें अहम किरदार होगा, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी.
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