असम सरकार ने ‘हर घर तिरंगा''कार्यक्रम के तहत 13 से 15 अगस्त के बीच पूरे राज्य में करीब 80 लाख राष्ट्रीय ध्वज फहराने का लक्ष्य निर्धारित किया है. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने राज्य के लोगों से अपील की है कि वो 13 से 15 अगस्त तक अपने घरों में राष्ट्रीय ध्वज फहराएं. वहीं अब इस मामले में विपक्षी दलों की तीखी प्रतिक्रिया आ रही है, विपक्ष इस मामले को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से जोड़ रह है.
दरअसल सरमा ने मंगलवार को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा था कि किसी की राष्ट्रीयता साबित करने के लिए NRC में नामों को शामिल करने के लिए आवेदन करने की तुलना में राष्ट्रीय ध्वज फहराना अधिक विश्वसनीय तरीका है. सरमा ने असम के उदलगुरी जिले में एक कार्यक्रम में कहा "इस साल 13 से 15 अगस्त के बीच अपने घरों में राष्ट्रीय ध्वज फहराएं. आप सिर्फ एनआरसी के लिए आवेदन करने से भारतीय नागरिक हैं, ये काफी नहीं है. आपको तिरंगा पहनकर सबूत देना होगा कि आप भारत माता के बच्चे हैं या नहीं? राष्ट्रीय ध्वज राशन की दुकानों में 16 रुपये में उपलब्ध होगा. हम इसे मुफ्त में नहीं लेंगे क्योंकि देश के प्रति हमारा दायित्व है, हम दूसरों द्वारा दिया गया झंडा नहीं लेंगे, हम इसे स्वयं खरीदें,"
असम कांग्रेस प्रवक्ता अरूबा भट्टाचार्जी ने इस मुद्दे पर सीएम को घेरते हुए कहा कि "मुख्यमंत्री शायद भूल गए होंगे कि आज वह आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की सेवा कर रहे हैं. सालों तक आरएसएस मुख्यालय में राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया गया, तो क्या आरएसएस राष्ट्रविरोधी था?"
भट्टाचार्जी ने आगे कहा कि "लोगों को देशभक्ति पर आपके पाठ की जरूरत नहीं है, इस देश ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी है, इसलिए देशवासियों को क्या करना चाहिए, इस पर टिप्पणी करने से पहले, उन्हें ( सरमा) अपनी जिम्मेदारियों को देखना चाहिए. एक मुख्यमंत्री होने के नाते वह कैसे एनआरसी पर टिप्पणी कर सकते हैं? एनआरसी संविधान के अनुसार की जाने वाली एक प्रक्रिया है और वह हमारी देशभक्ति पर फैसला सुनाने वाला कौन होते हैं?"
एआईयूडीएफ विधायक रफीकुल इस्लाम ने कहा कि "पहले, उन्हें (आरएसएस प्रमुख) मोहन भागवत से जाकर पूछना चाहिए कि 2002 तक नागपुर में आरएसएस मुख्यालय पर राष्ट्रीय ध्वज क्यों नहीं फहराया गया. आरएसएस देशभक्त है या नहीं, पहले यह पता लगाने की जरूरत है?"
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