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This Article is From Nov 06, 2022

बिहार के उपचुनाव के परिणाम भाजपा के लिए चिंताजनक क्यों हैं?

इस जीत के पीछे एआईएमआईएम के प्रत्याशी अब्दुल सलाम का बारह हजार से अधिक वोट लाना और उसके अलावा बीएसपी प्रत्याशी के रूप में इंदिरा यादव के आठ हजार वोट ने निर्णायक भूमिका अदा की.

बिहार के उपचुनाव के परिणाम भाजपा के लिए चिंताजनक क्यों हैं?
बिहार के उपचुनाव के परिणाम एक तरह से भाजपा के लिए चिंताजनक है.
पटना:

बिहार में दो सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणाम में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल अपनी-अपनी सीट जीतने में कामयाब रहे. मोकामा राजद ने जीता तो गोपालगंज भाजपा ने. इन दोनों सीटों पर भाजपा और राजद और उससे पूर्व अब की उनकी सहयोगी जनता दल यूनाइटेड 2005 नवंबर के विधानसभा चुनाव से जीतती आ रही हैं.

मोकामा सीट पर उपचुनाव अनंत सिंह के दोषी पाये जाने के बाद अयोग्य करार होने के बाद हुआ. इस बार उनकी पत्नी नीलम देवी ने पुराने प्रतिद्वंदी पूर्व सांसद सूरजभान सिंह के करीबी ललन सिंह की पत्नी सोनम देवी को हराया. सोनम देवी, मोकामा के बाहुबली ललन सिंह की पत्नी हैं और वह भी पूर्व में अनंत सिंह से चुनाव हार चुके हैं. इस सीट पर अनंत सिंह का जीत का सोलह हजार वोट का अंतर पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले आधा था लेकिन अनंत सिंह को अपने स्वजातीय वोट का जो भी नुकसान हुआ, उसकी भरपाई नीतीश कुमार के आधारभूत वोटर ने की. हालांकि, नीतीश इस बार उनके लिए प्रचार करने नहीं आए लेकिन प्रचार से मतदान तक सब राष्ट्रीय जनता दल के प्रत्याशी नीलम देवी की जीत तय मान कर चल रहे थे.

सबसे रोचक परिणाम गोपालगंज का रहा. जहां सहानुभूति निश्चित रूप से महागठबंधन के सामाजिक समीकरण को मात देने में सफल रहा. यहां भाजपा के विजयी प्रत्याशी के लिए उनके पति स्वर्गीय सुभाष सिंह का सामाजिक संबंध सबसे अधिक प्रभावी रहा. उनके संबंध सभी वर्ग के लोगों में था, राष्ट्रीय जनता दल ने वैश्य समाज के मोहन गुप्ता को अपना प्रत्याशी बनाकर पूरे उप चुनाव को रोचक बना दिया था. हालांकि, इस जीत के पीछे एआईएमआईएम के प्रत्याशी अब्दुल सलाम का बारह हजार से अधिक वोट लाना और उसके अलावा बीएसपी प्रत्याशी के रूप में इंदिरा यादव के आठ हजार वोट ने निर्णायक भूमिका इसलिए अदा की, क्योंकि ये वोट महागठबंधन का आधारभूत वोट माना जाता है और इसका छिटकना राजद के लिए महंगा सौदा साबित हुआ.भाजपा के लिए आम चुनाव में इस सीट को जीतना एक कड़ी चुनौती होगा, क्योंकि हर बार एआईएमआईएम और बीएसपी का दांव काम करेगा, कोई नहीं जानता.

तेजस्वी यादव भले उपचुनाव में अब तूफानी दौरा नहीं करते लेकिन उनके लिए संतोष की बात यह है कि अपने पार्टी के तमाम नेताओं के दबाव के बाबजूद उन्होंने सीवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के परिवार के सामने झुकने से इनकार कर दिया, जिससे भाजपा को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण कराने की सारी योजना धरी की धरी रह गई. दूसरा वैश्य उम्मीदवार को लगातार दूसरी बार उम्मीदवार बनाकर उन्होंने संदेश दिया कि अपने आधारभूत वोटर मुस्लिम यादव से निकलकर वो सभी जातियों के लोगों को प्रत्याशी बनाने में कोई परहेज नहीं करते.

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