उत्तराखंड के तीन सिविल जजों ने सुप्रीम कोर्ट में अधिकारों के लिए गुहार लगाई जिस पर उन्हें राहत मिली है.
नई दिल्ली:
ऐसा नहीं है कि आम नागरिक ही अपने मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ देश की सबसे बड़ी अदालत पहुंचते हैं. खुद जजों को भी कभी-कभी इसकी जरूरत पड़ जाती है. ऐसे ही मामले में उत्तराखंड के तीन सिविल जजों ने अपने अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई और कोर्ट से उन्हें राहत भी मिली.
सुप्रीम कोर्ट ने रुद्रपुर के एडिशनल सिविल जज राहुल कुमार श्रीवास्तव, कोटद्वार के सिविल जज भवदीप रावत्रे और कोटद्वार के ही सिविल जज योगेंद्र कुमार सागर को हाईकोर्ट के नियम पर रोक लगाते हुए उत्तराखंड हायर ज्यूडिशियल सर्विस की परीक्षा में बैठने की इजाजत दे दी है. हालांकि उनका परिणाम सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक होल्ड पर रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जजों की याचिका पर उत्तराखंड हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
गौरतलब है कि तीनों जजों ने हाईकोर्ट के उस नियम को चुनौती दी है जिसमें कहा गया है कि उच्च न्यायिक सेवा की परीक्षा के लिए सात साल के अनुभव वाले वकील ही आवेदन कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जजों के वकील रजत शर्मा और राम किशोर यादव ने कहा कि इन जजों के पास वकालत का अनुभव नहीं है लेकिन वे इससे ज्यादा वक्त से जज रहे हैं और उन्हें कानून का अनुभव है. ऐसे में अगर वे इस परीक्षा में शामिल नहीं हो पाते तो यह उनके मौलिक अधिकारों का हनन होगा.
उन्होंने दलील दी कि इससे पहले हैदराबाद के एक जज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट नियम पर रोक लगा चुका है. कई हाईकोर्ट नियमों में बदलाव कर चुके हैं और जजों को भी इसमें शामिल कर चुके हैं.
सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए हाईकोर्ट के नियम पर रोक लगा दी और तीनों जजों को 25 जून को होने वाली प्रारंभिक परीक्षा और 29-30 जुलाई को होने वाली मेन परीक्षा में बैठने की इजाजत दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है और कहा है कि अगले आदेश तक जजों की परीक्षा का परिणाम होल्ड पर रहेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने रुद्रपुर के एडिशनल सिविल जज राहुल कुमार श्रीवास्तव, कोटद्वार के सिविल जज भवदीप रावत्रे और कोटद्वार के ही सिविल जज योगेंद्र कुमार सागर को हाईकोर्ट के नियम पर रोक लगाते हुए उत्तराखंड हायर ज्यूडिशियल सर्विस की परीक्षा में बैठने की इजाजत दे दी है. हालांकि उनका परिणाम सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक होल्ड पर रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जजों की याचिका पर उत्तराखंड हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
गौरतलब है कि तीनों जजों ने हाईकोर्ट के उस नियम को चुनौती दी है जिसमें कहा गया है कि उच्च न्यायिक सेवा की परीक्षा के लिए सात साल के अनुभव वाले वकील ही आवेदन कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जजों के वकील रजत शर्मा और राम किशोर यादव ने कहा कि इन जजों के पास वकालत का अनुभव नहीं है लेकिन वे इससे ज्यादा वक्त से जज रहे हैं और उन्हें कानून का अनुभव है. ऐसे में अगर वे इस परीक्षा में शामिल नहीं हो पाते तो यह उनके मौलिक अधिकारों का हनन होगा.
उन्होंने दलील दी कि इससे पहले हैदराबाद के एक जज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट नियम पर रोक लगा चुका है. कई हाईकोर्ट नियमों में बदलाव कर चुके हैं और जजों को भी इसमें शामिल कर चुके हैं.
सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए हाईकोर्ट के नियम पर रोक लगा दी और तीनों जजों को 25 जून को होने वाली प्रारंभिक परीक्षा और 29-30 जुलाई को होने वाली मेन परीक्षा में बैठने की इजाजत दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है और कहा है कि अगले आदेश तक जजों की परीक्षा का परिणाम होल्ड पर रहेगा.
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