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This Article is From Feb 17, 2016

जेएनयू मामले की गंभीरता को देखकर पुलिस को आने दिया गया : यूनिवर्सिटी प्रशासन

जेएनयू मामले की गंभीरता को देखकर पुलिस को आने दिया गया : यूनिवर्सिटी प्रशासन
नई दिल्‍ली: जेएनयू कैम्पस में मचे बवाल में प्रदर्शनकारी छात्रों का एक सवाल यह है कि आख़िरकार विश्वविद्यालय प्रशासन ने पुलिस को अंदर आने की इजाज़त क्यों और कैसे दी और फिर जबकि जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के ख़िलाफ कोई साक्ष्य नहीं था फिर भी पुलिस उसे उठाकर ले गई।

कैम्पस में पुलिस आने की इजाज़त देने के मुद्दे पर जेएनयू के रजिस्ट्रार की सफाई है कि 11 फरवरी को साउथ दिल्ली के डीसीपी ने विश्वविद्यालय के सुरक्षा अधिकारी को चिठ्ठी लिखकर कहा कि 9 फरवरी को परिसर में कुछ छात्रों ने देश विरोधी नारे लगाए हैं। इस मामले में कार्रवाई के सिलसिले में उन्होने कैंपस में आकर ज़रूरी क़दम उठाने की बात की। विश्वविद्यालय प्रशासन ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस को कानून अपना काम करने और मामले की जांच करने की इजाज़त दे दी।

रजिस्‍ट्रार बोले, यह केवल एक बार के लिए इजाजत थी
रजिस्ट्रार भूपिन्दर ज़ुत्शी का कहना है कि यह बस एक बार के लिए दी गई इजाज़त थी। कन्हैया कुमार को उठाए जाने के सवाल पर वे कहते हैं कि ये पुलिस को तय करना था कि कानूनन उसे किस तरह से आगे बढ़ना है। वे यह भी साफ कर रहे हैं कि पुलिस को कैम्पस में डेरा डालने या बार-बार आने की कोई एकमुश्त मंज़ूरी नहीं दी गई है।

मंजूरी रद्द करने के बावजूद आयोजकों ने कार्यक्रम किया
एक फैक्ट शीट जारी कर विश्वविद्यालय की ओर से कहा गया है कि उमर ख़ालिद, कोमल, अनिर्वाण और अवस्थी नाम के चार छात्रों ने 9 फरवरी के सांस्कृतिक कार्यक्रम की मंज़ूरी मांगी थी, जो दे दी गई थी। लेकिन बाद में विश्वविद्यालय की सुरक्षा एजेंसी को भनक लगी कि यहां अफ़जल गुरु और मक़बूल बट्ट की फांसी और कश्मीर की आज़ादी से जुड़ी बातें होनी हैं तो कार्यक्रम की मंज़ूरी रद्द कर दी गई। लेकिन आयोजकों ने न सिर्फ एक कार्यक्रम को अंजाम दिया बल्कि वहां भारत विरोधी नारे भी लगाए।

यूनिवर्सिटी की जांच समिति 25 को देगी अंतिम रिपोर्ट
दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के सवाल पर जेएनयू प्रशासन का कहना है कि 9 फरवरी की घटना की जांच के लिए 12 फरवरी को प्रोफेसर राकेश भटनागर, प्रोफेसर हिमाद्री बोहीदार और प्रोफेसर सुमन के धर के रूप में जो तीन सदस्यीय जांच समिति बनाई गई थी, उसने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में आठ छात्रों के शामिल होने की बात की थी। कमेटी के सुझाव के आधार पर इन आठों छात्रों के शैक्षणिक कार्यकलापों से अलग रखने की सलाह दी थी, जिसे मान लिया गया। समिति अपनी अंतिम रिपोर्ट 25 फरवरी को देगी और उससे पहले वह हर साक्ष्य जुटाने और इस मामले में शामिल हर किसी से जानकारी हासिल करने की कोशिश में है। यूनिवर्सिटी का ये भी कहना है कि अंतरिम रिपोर्ट को पुलिस के साथ भी साझा किया गया है। इस मामले में वो आगे की कार्रवाई कैसे करती है, यह पुलिस पर निर्भर करता है।

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