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क्‍या है संथारा? जानिए जैन धर्म में स्‍वैच्छिक मृत्‍यु तक उपवास की प्रथा के बारे में

संथारा को सल्लेखाना के नाम से भी जाना जाता है. यह एक जैन जैन धार्मिक प्रथा है, जिसमें व्यक्ति स्वेच्छा से उपवास के माध्यम से अपना जीवन समाप्त करना चुनता है.

क्‍या है संथारा? जानिए जैन धर्म में स्‍वैच्छिक मृत्‍यु तक उपवास की प्रथा के बारे में
यह घटना हाल ही में सामने आई है, जिसे गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है.

मध्‍य प्रदेश के इंदौर में लाइलाज बीमारी से जूझ रही एक तीन साल की बच्‍ची की संथारा के बाद मौत हो गई. एक आध्‍यात्मिक गुरु के कहने पर संथारा कराया गया था. इस घटना की खबर तब सामने आई जब 'गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में बच्‍ची को सबसे कम उम्र में संथारा लेने वाली बालिका के रूप में दर्ज किया गया. जैन धर्म में संथारा स्‍वैच्छिक मृत्‍यु तक उपवास की प्रथा है. देश भर में इस मामले की काफी चर्चा है और इसे लेकर लोग अपने-अपने विचार रख रहे हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि क्‍या है यह पूरा मामला और जैन धर्म की इस प्रथा के बारे में. 

पेशे से आईटी प्रोफेशनल्‍स पीयूष और वर्षा जैन की बेटी वियाना जैन को पिछले दिसंबर में ब्रेन ट्यूमर का पता चला था. सर्जरी और उपचार विफल होने के बाद परिवार ने आध्‍यात्‍म की शरण ली. 21 मार्च को जैन भिक्षु राजेश मुनि महाराज के दर्शन के दौरान बच्ची को उसके माता-पिता की सहमति से संथारा व्रत दिलाया गया. कुछ ही मिनटों के बाद उसकी मौत हो गई.  

संथारा क्या है?

कर्नाटक में पुरातत्व और संग्रहालय विभाग के प्रमुख ए सुंदरा के अनुसार, संथारा को सल्लेखाना के नाम से भी जाना जाता है. यह एक जैन जैन धार्मिक प्रथा है, जिसमें व्यक्ति स्वेच्छा से उपवास के माध्यम से अपना जीवन समाप्त करना चुनता है. इस प्रथा में धीरे-धीरे भोजन और पानी से परहेज करना शामिल है और जैन लोग इसे आत्मा को शुद्ध करने और मुक्ति प्राप्त करने के तरीके के रूप में अपनाते हैं. हालांकि यह व्रत अपनी इच्छा से नहीं लिया जा सकता है. 

ए सुंदरा के शोध के अनुसार, जैन धर्मग्रंथों में स्पष्ट रूप से यह उल्‍लेख है कि संथारा केवल उसी वक्‍त लिया जाना चाहिए जब मृत्यु निकट हो या जब कोई व्यक्ति बुढ़ापे, लाइलाज बीमारी या अकाल जैसी चरम स्थितियों के कारण धार्मिक कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो. 

उदाहरण के लिए, यदि किसी की दृष्टि खराब होने के कारण वह अनजाने में जीवों को नुकसान पहुंचाता है और अहिंसा के सिद्धांत का उल्लंघन करता है तो वह संथारा चुन सकता है. 

संथारा का कैसे किया जाता है पालन?

समंतभद्र द्वारा रचित रत्नकरंद श्रावकाचार चौथी शताब्‍दी के आसपास का एक महत्वपूर्ण जैन ग्रंथ है. यह संथारा व्रत और इसका पालन कैसे किया जाना चाहिए, इसकी स्पष्ट व्याख्या करता है. 

ग्रंथ में कहा गया है कि यह व्रत आत्मा को शरीर से मुक्त करने के लिए लिया जाना चाहिए, लेकिन केवल चरम स्थितियों के दौरान जैसे प्राकृतिक आपदा, बुढ़ापा या ऐसी बीमारी जिसका इलाज नहीं किया जा सकता.

व्रत लेने वाले किसी भी व्यक्ति को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए, अपनी सारी संपत्ति त्याग देनी चाहिए और मानसिक रूप से प्रियजनों से अलग हो जाना चाहिए. उन्हें सभी को माफ कर देना चाहिए, माफी मांगनी चाहिए और अपने गलत कामों के लिए खेद महसूस करना चाहिए. फिर, शांत मन से उन्हें प्रार्थना पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और धीरे-धीरे खाना-पीना बंद कर देना चाहिए और मृत्यु तक उपवास करना चाहिए. 

क्या संथारा कानूनी है?

जैन धर्म में संथारा एक स्वीकृत और पूजनीय प्रथा है. बावजूद इसके इसे भारत में कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.  2015 में राजस्थान हाई कोर्ट ने एक फैसला सुनाया कि संथारा को अवैध माना जाना चाहिए, इसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के बराबर माना जाना चाहिए. कोर्ट का तर्क था कि किसी के जीवन को समाप्त करने का स्वैच्छिक निर्णय आत्मक्षति का एक रूप है और इसे धार्मिक प्रथा के रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता. 

हालांकि, इस फैसले का जैन समुदाय ने विरोध किया. एक महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पर रोक लगा दी, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता संरक्षण के तहत संथारा को जारी रखने की अनुमति मिल गई. 

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