मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) बनाने वाले आजम खान (Azam Khan) नाराज हैं. नाराज तो इससे पहले भी वे कई बार हुए, फिर मना लिए गए. कभी उनकी सुनी गई, तो कभी अनसुनी रह गई. हर चुनाव में वे रूठ जाते हैं. फिर मना भी लिए जाते हैं. मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के दौर तक यही होता रहा है. आजम खान जेल में बंद हैं, पर उनके हवाले से जारी एक चिट्ठी से बात बिगड़ गई है. आजम के करीबियों का दावा है कि इस बार मामला आर पार का हो सकता है.
तो क्या अखिलेश यादव और आजम खान के रास्ते अलग हो सकते हैं! आजम के करीबी नेताओं का दावा है कि वे समाजवादी पार्टी से अलग एक नई पार्टी का ऐलान कर सकते हैं. जेल से जारी उनके संदेश ने समाजवादी पार्टी में खलबली मचा दी है. चंद्रशेखर रावण के साथ मिलकर आजम खान यूपी चुनाव से पहले एक मोर्चा बना सकते हैं. असदुद्दीन ओवैसी भी इस नए फ्रंट में शामिल हो सकते हैं. ऐसा हुआ तो फिर अखिलेश यादव और उनकी पार्टी को कितना नुकसान हो सकता है. इस पर हिसाब किताब भी अभी से शुरू हो गया है.
आजम खान का जेल से संदेश
आजम खान और अखिलेश यादव के रिश्ते हमेशा ही कभी नरम तो कभी गरम वाले रहे हैं. वे जब अखिलेश की सरकार में मंत्री रहे या फिर अब जेल में बंद हैं. आजम की हमेशा शिकायत रही कि उनकी अनदेखी की जाती है. जानबूझकर दूसरे मुस्लिम नेताओं को उनके मुकाबले खड़ा किया जा रहा है. इसलिए जेल से उनका संदेश आया है. रामपुर से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अजय नागर के लेटरहेड पर यह चिट्ठी जारी हुई है. इसमें इंडिया गठबंधन पर रामपुर में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार की अनदेखी करने का आरोप लगाया गया है. कहीं पर निगाहें और कहीं पर निशाने की तर्ज पर आजम का संदेश आया है. आरोप इंडिया गठबंधन पर लगाकर अखिलेश यादव को कठघरे में खड़ा किया गया है. आजम का कहना है कि संभल पर संसद में चर्चा हुई लेकिन रामपुर पर क्यों नहीं.
जेल से आजम खान की चिट्ठी आई है. अब बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी. चर्चा यह है कि इस बार आजम खान आरपार की लड़ाई के मूड में हैं, इसके लिए भले ही समाजवादी पार्टी से अलग क्यों न होना पड़ा. अखिलेश यादव से उनकी नाराजगी की कई वजहें हैं.
आजम को पार्टी के अंदर ही चुनौती मिल रही
आजम खान समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरा हैं. पर अब उन्हें लगता है कि उनके नेतृत्व को पार्टी के अंदर से ही चुनौती दी जा रही है. उनके मुकाबले दूसरे मुस्लिम नेताओं को खड़ा किया जा रहा है. वे चाहते थे अखिलेश यादव रामपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ें, पर उनसे बिना पूछे उनके विरोधी मोहिबुल्लाह नदवी को टिकट दे दिया गया. आजम खान इस बात से भी नाराज हैं कि जब वे और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम जेल में बंद हैं, समाजवादी पार्टी ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया है.
जेल में मिलने गए समाजवादी पार्टी के एक नेता को आजम खान ने कहा अगर अखिलेश यादव या फिर उनके परिवार पर मेरी तरह कई मुकदमे होते तो क्या होता! क्या पार्टी ऐसे ही चुप रहती! ऐसे में सवाल उठता है कि आजम खान आगे क्या कर सकते हैं. उनके करीबी नेताओं की मानें तो वे एक नई पार्टी बना सकते हैं. वैसे भी आजम खान कहते रहे हैं कि समाजवादी पार्टी में उनकी सियासत मुलायम सिंह यादव तक है. वे पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे हैं. चंद्रशेखर रावण हाल के दिनों में आजम खान, उनकी पत्नी और उनके बेटे से मिल चुके हैं. जिस दिन वे अब्दुल्ला आजम से मिलने जेल गए थे, उसी दिन अखिलेश यादव अचानक आजम की पत्नी से मिलने रामपुर पहुंच गए थे. आजम खान और आजाद समाज पार्टी के संस्थापक चंद्रशेखर के बहुत अच्छे रिश्ते हैं. आजम से मिलने के बाद चंद्रशेखर ने कहा था जब मुझ पर गोली चली थी तब वे मेरे साथ रहे अब जब वे मुसीबत में हैं तो मैं उनके साथ हूं.
दलित-मुस्लिम समीकरण वाला नया मोर्चा
आजम खान और चंद्रशेखर रावण मिलकर यूपी चुनाव से पहले एक राजनैतिक मोर्चा बनाने की तैयारी में हैं. फार्मूला यह है कि दलित-मुस्लिम वाला D-M समीकरण एक नई ताकत बन सकता है. आजम से जेल में मिलने गए एक व्यक्ति ने फोन पर उनकी असदुद्दीन ओवैसी से भी बात कराई है. अगर इस मोर्चे में AIMIM की भी एंट्री होती है तो फिर पश्चिमी यूपी में खेल हो सकता है. ओवैसी जब भी यूपी आते हैं आजम का हमदर्द होने का जिक्र जरूर करते हैं.
नाराज होना और फिर मान जाना आजम खान की राजनीति का एक स्टाइल रहा है. इसी दम पर उन्होंने कपिल सिब्बल को निर्दलीय ही राज्यसभा का सांसद बनवा दिया था. उनके खिलाफ चल रहे मुकदमों में सुप्रीम कोर्ट में सिब्बल ही पैरवी कर रहे हैं. आजम खान के कहने पर ही मुरादाबाद से रूचिवीरा को लोकसभा का टिकट मिला. वे सांसद भी बन गईं. उनके कहने पर अखिलेश यादव MLA और MLC के टिकट भी देते रहे हैं
क्या दोहराया जाएगा इतिहास?
आजम खान के न होने से समाजवादी पार्टी एक बार तगड़ा झटका खा चुकी है. बात साल 2009 के लोकसभा चुनाव की है. तब अमर सिंह, जया प्रदा और कल्याण सिंह के मुलायम सिंह से करीबी संबंध होने पर आजम ने बगावत कर दी थी. आजम को पार्टी से बाहर कर दिया गया था. उस चुनाव में मुस्लिम वोटों की बंटवारा हुआ. कांग्रेस को इसका फायदा हुआ और पार्टी ने लोकसभा की 21 सीटें जीत लीं. क्या एक बार फिर इतिहास दोहराने की तैयारी है.
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