मुंबई:
माफिया और पूर्व विधायक अरुण गवली की सजा पर विशेष मकोका अदालत ने 31 अगस्त के लिए अपना फैसला टाल दिया है।
सरकारी और बचाव पक्ष की सजा लिए दलीलों की सुनवाई पूरी होने के बाद विशेष मकोका अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है। अब 31 अगस्त को अदालत यह फैसला लेगी कि माफिया और पूर्व विधायक अरुण गवली को फंसी दी जाए या फिर उम्र कैद की सजा।
गवली को अदालत ने मकोका की धाराओं के तहत हत्या, हत्या की साजिश और षडयंत्र का दोषी पाया है। गवली 2007 में शिव सेना के पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की हत्या का दोषी पाया गया है। सुनवाई के दौरान सरकारी पक्ष ने अरुण गवली सहित हत्या के शूटर विजय गिरी के साथ-साथ हत्या की सुपारी लेने वाले प्रताप गोडसे के लिए भी फंसी की सजा की मांग की।
सरकारी पक्ष के वकील राजा ठाकरे ने मकोका अदालत को बताया कि भले ही गवली का यह मामला 'रेअरेस्ट ऑफ़ रेअर' में नहीं आता हो लेकिन मकोका की धारा 311 के तहत गवली को उसके संगठित अपराध के लिए फंसी की सजा हो सकती है।
ठाकरे ने कहा, "जिस समय जामसांडेकर की हत्या की गई, उस समय वह बीएमसी के पार्षद थे और जिस समय अरुण गवली ने जामसांडेकर की हत्या की सुपारी ली वह महाराष्ट्र के निर्वाचित विधायक थे।"
सरकारी पक्ष ने यह भी दलील दी कि महाराष्ट्र के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी गैंग के मुखिया को संगठित अपराध की धाराओं के तहत सजा मिली हो।
वहीं, बचाव पक्ष ने सरकारी पक्ष की फांसी की सजा को घटाकर आजीवन कारावास में तब्दील करने की गुजारिश की है। बचाव पक्ष के वकील सुदीप पासबोला ने अरुण गवली की बढ़ती उम्र के साथ ख़राब सेहत का भी हवाला दिया। पासबोला ने अदालत को बताया कि फंसी की सजा सिर्फ और सिर्फ 'रेअरेस्ट ऑफ़ रेअर' के अपराध में ही दी जाती है।
पूरी सुनवाई के बाद अरुण गवली ने अदालत को बताया, 'मैं क्यों महज 30 लाख रुपयों के लिए किसी शिव सेना के पार्षद की हत्या करूंगा। जबकि शिव सेना की मदद से ही मैं अपनी राजनीतिक लक्ष्य तक जा रहा था।'
जामसांडेकर की 2007 में उनके साकीनाका स्थित आवास में घुसकर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
मामले की जांच कर रहे मुंबई क्राइम ब्रांच ने गवली सहित 13 लोगों पर संगठित अपराध की धारा मकोका के तहत आरोपपत्र दायर किया था। मामले में विशेष मकोका अदालत ने सबूतों के अभाव में दो लोगों को बरी कर दिया। अब 31 अगस्त को अदालत गवली के भविष्य का फैसला करेगी।
सरकारी और बचाव पक्ष की सजा लिए दलीलों की सुनवाई पूरी होने के बाद विशेष मकोका अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है। अब 31 अगस्त को अदालत यह फैसला लेगी कि माफिया और पूर्व विधायक अरुण गवली को फंसी दी जाए या फिर उम्र कैद की सजा।
गवली को अदालत ने मकोका की धाराओं के तहत हत्या, हत्या की साजिश और षडयंत्र का दोषी पाया है। गवली 2007 में शिव सेना के पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की हत्या का दोषी पाया गया है। सुनवाई के दौरान सरकारी पक्ष ने अरुण गवली सहित हत्या के शूटर विजय गिरी के साथ-साथ हत्या की सुपारी लेने वाले प्रताप गोडसे के लिए भी फंसी की सजा की मांग की।
सरकारी पक्ष के वकील राजा ठाकरे ने मकोका अदालत को बताया कि भले ही गवली का यह मामला 'रेअरेस्ट ऑफ़ रेअर' में नहीं आता हो लेकिन मकोका की धारा 311 के तहत गवली को उसके संगठित अपराध के लिए फंसी की सजा हो सकती है।
ठाकरे ने कहा, "जिस समय जामसांडेकर की हत्या की गई, उस समय वह बीएमसी के पार्षद थे और जिस समय अरुण गवली ने जामसांडेकर की हत्या की सुपारी ली वह महाराष्ट्र के निर्वाचित विधायक थे।"
सरकारी पक्ष ने यह भी दलील दी कि महाराष्ट्र के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी गैंग के मुखिया को संगठित अपराध की धाराओं के तहत सजा मिली हो।
वहीं, बचाव पक्ष ने सरकारी पक्ष की फांसी की सजा को घटाकर आजीवन कारावास में तब्दील करने की गुजारिश की है। बचाव पक्ष के वकील सुदीप पासबोला ने अरुण गवली की बढ़ती उम्र के साथ ख़राब सेहत का भी हवाला दिया। पासबोला ने अदालत को बताया कि फंसी की सजा सिर्फ और सिर्फ 'रेअरेस्ट ऑफ़ रेअर' के अपराध में ही दी जाती है।
पूरी सुनवाई के बाद अरुण गवली ने अदालत को बताया, 'मैं क्यों महज 30 लाख रुपयों के लिए किसी शिव सेना के पार्षद की हत्या करूंगा। जबकि शिव सेना की मदद से ही मैं अपनी राजनीतिक लक्ष्य तक जा रहा था।'
जामसांडेकर की 2007 में उनके साकीनाका स्थित आवास में घुसकर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
मामले की जांच कर रहे मुंबई क्राइम ब्रांच ने गवली सहित 13 लोगों पर संगठित अपराध की धारा मकोका के तहत आरोपपत्र दायर किया था। मामले में विशेष मकोका अदालत ने सबूतों के अभाव में दो लोगों को बरी कर दिया। अब 31 अगस्त को अदालत गवली के भविष्य का फैसला करेगी।