यूपी के गैंगस्टर एक्ट की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाख़िल की गई है. याचिका में दावा किया गया है कि पुलिस द्वारा गैंगस्टर अधिनियम का दुरुपयोग किया जा रहा है, इसके जरिए मनमाने ढंग से जिसके खिलाफ चाहें इन प्रावधानों को लागू करते हैं. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में एक केस होने पर गैंगस्टर एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करने की वैधता को भी चुनौती दी गई है.
याचिका में कहा गया है कि जिस व्यक्ति ने अपराध किया है और जिसके खिलाफ पहले ही FIR दर्ज की जा चुकी है, उसके खिलाफ अधिनियम के तहत फिर से FIR दर्ज करना, भारत के संविधान के अनुच्छेद 20 (2) का उल्लंघन है. ये एक्ट कानून के शासन के खिलाफ है. याचिका में आरोपी की 60 दिन की पुलिस रिमांड देने के प्रावधान को भी चुनौती दी गई है. याचिका में गैंगस्टर एक्ट के तहत मामला दर्ज करने, संपत्तियों की कुर्की, जांच और ट्रायल को लेकर प्रावधानों को चुनौती दी गई है.
याचिका में कहा गया है कि एक्ट में नियम है कि आरोपी का आपराधिक इतिहास प्रासंगिक नहीं है और सिर्फ एक मामला भी FIR के लिए काफी है जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. गैंगस्टर एक्ट और नियम आरोपी व्यक्तियों में भेद नहीं करता इसलिए, पुलिस द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा रहा है. आरोपी की संपत्ति की कुर्की के लिए जिला मजिस्ट्रेट गैंगस्टर्स अभियोजक और फैसला करने वाले बनाए गए हैं जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के स्पष्ट उल्लंघन में है
याचिका में आरोपी की संपत्ति को अधिग्रहण करने के पुलिस के अधिकार को भी चुनौती दी गई है. याचिका में कहा कि यूपी गैंगस्टर ऐक्ट के अधिनियम समानता के अधिकार की कसौटी पर पूरी तरह से विफल है.
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