उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिलक्यारा टनल (Uttarkashi Tunnel Accident)से 17 दिन बाद मंगलवार को रेस्क्यू किए गए 41 मजदूरों को एयरलिफ्ट करके AIIMS ऋषिकेश लाया गया है. इन मजदूरों के लिए रैट होल माइनर्स (Rat Hole Miners) वरदान साबित हुए. बेशक रेस्क्यू ऑपरेशन (Tunnel Rescue Operation) में सभी टीमों का सहयोग था. लेकिन अगर रैट होल माइनर्स रातोंरात खुदाई का काम नहीं करते, तो मजदूरों को शायद निकलने में और इंतजार करना पड़ता. आइए जानते हैं कैसे काम करते हैं रैट होल माइनर्स और क्या है उनका इतिहास:-
क्या है रैट होल माइनिंग?
रैट होल माइनिंग यानी चूहा खुदाई वाली तकनीक. इसके तहत इंसान उसी तरह खुदाई करता है, जैसे चूहा धीरे धीरे कोई बिल बनाता है. मान्यता है कि महाभारत काल में लाक्षा गृह में फंसे पांडवों की जान चूहा खुदाई से बनी सुरंग से ही बची थी. रैट होल माइनिंग का इतिहास 100 साल पुराना है. रैट माइनिंग करने वाले मजदूर अपनी जान जोखिम में डालकर सुरंगें बनाते हैं.
अपनी ज़िंदगी लाचार, लोगों की जान बचाने में दमदार
उत्तरकाशी के टनल में जब विज्ञान फेल हो गया. सुरंग में जब टेक्नोलॉजी का ज्ञान फेल हो गया. जब खुदाई की सारी मशीनें हिमालय की दरदरी चट्टानों से टकराकर नाकाम होने लगीं. जब टनल की वर्टिकल और हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग में अड़चनें आने लगी... तब रैट माइनर्स वरदान साबित हुए. मजदूरों को बाहर निकालने का रास्ता बनाने के लिए आखिरकार सोमवार देर शाम रैट हो माइनर्स की मदद ली गई.
मजदूरों ने गले लगाया
रैट होल माइनर्स को देखते ही मजदूर खुशी से झूम उठे. रैट होल माइनर्स ने NDTV से कहा, "जैसे ही हम उनके पास पहुंचे, उन लोगों ने हमें गले लगा लिया. वो बहुत खुश हो गए थे. मजदूरों ने हमें खाने के लिए बादाम और फल दिए. उन्होंने पानी भी पिलाया." एक अन्य रैट होल माइनर ने कहा, "इससे पहले हमने ऐसे बहुत काम किए हैं, लेकिन इस काम को करके हमें खुशी मिली है. पूरी दुनिया ने हमें इज्जत दी है.अभी तक हमने जो भी काम किए हैं, उसके बदले में पैसे मिले थे. लेकिन यह पहला ऐसा काम है, जिसे करने के बाद हमें खुशी और सम्मान मिला है. ये हमारे लिए बहुत बड़ी चीज है."
मुफलिसी में जिंदगी बिताते हैं रैट माइनर्स
मुश्किल हालात में दूसरों की जान बचाने वाले रैट होल माइनर्स की जिंदगी आमतौर पर मुफलिसी में गुजरती है. चंद पैसे कमाकर अपने परिवार का पेट पालने के लिए ये अपनी जान को भी खतरे में डाल देते हैं. असुरक्षित परिस्थितियों में काम करने वाले रैट होल माइनर्स अक्सर स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित होते हैं. अवैध खनन से सरकार को खनिज रॉयल्टी से वंचित होना पड़ता है. यह पर्यावरण की दृष्टि से विनाशकारी है. रैट होल माइनर्स कभी गरीबी से बाहर निकल नहीं पाए.
बुजुर्ग देते हैं प्रैक्टिकल ट्रेनिंग
रैट होल माइनर्स एक दूसरे की मदद से काम में परफेक्ट होते हैं. इनके सलाहकार आमतौर पर बुजुर्ग होते हैं, जो पहले वही काम करते थे. निश्चित रूप से इसके लिए कोई मानक प्रक्रिया नहीं है. बस जीवित बचे लोगों से ये बुजुर्ग प्रैक्टिकल ट्रेनिंग देते हैं.
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कैसे करते हैं काम?
स्थानीय लोग एक व्यक्ति के लिए रेंगकर या चलकर अंदर जाने के लिए जमीन में एक गड्ढा खोदते हैं. एक बार गड्ढा खोदे जाने के बाद माइनर रस्सी या बांस की सीढ़ियों के सहारे सुरंग के अंदर जाते हैं. फिर फावड़ा और टोकरियों के जरिए हाथ से ही मलबा बाहर निकालते हैं.
कई बार होते हैं हादसे
रैट होल माइनिंग का सबसे ज्यादा इस्तेमाल कोयला खदान में किया जाता है. प्रतिबंध के बावजूद भारत में इस विधि से खनन जारी है. इसलिए इसमें कई बार हादसा भी होता है. अचानक कुछ गिरने से दुर्घटनाएं होती हैं. खदानों से निकलने वाली गैस में सांस लेने की वजह से कई बार इस काम में लगे लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है. ऐसी खनन गतिविधियों में लगे लोग मुश्किल से ही कोई पैसा कमाते हैं.
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उत्तरकाशी के टनल में कैसे की खुदाई?
रैट होल माइनर्स दिल्ली समेत कई राज्यों में वॉटर पाइपलाइन बिछाने के समय अपनी टनलिंग क्षमता दिखा चुके हैं. लेकिन उत्तरकाशी की सुरंग में फंसे लोगों को निकालने के लिए इन लोगों ने खास तकनीक और रणनीति अपनाई.
जब खुदाई 5 मीटर बाकी थी, तभी वहां बारिश होने लगी. इससे बढ़ी ठंड भी खुदाई के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई. लेकिन चूहों की तरह इन झुककर, थोड़ा रुककर खुदाई करते हुए इन लोगों ने आखिरकार सारी अड़चनों को पार करते हुए मजदूरों के निकलने का रास्ता बना डाला.
2014 में NGT ने लगाया बैन
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT)ने जब इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया था, तब यह कहा था कि ये पूरी प्रक्रिया ही एकदम अवैज्ञानिक है. लेकिन मेघालय के खासी और जयंतिया पहाड़ी इलाकों में जहां दुर्गम कोयले के खादान हैं, बहुत से लोगों की इस तकनीक के सहारे रोजी रोटी चलती रही. वे एनजीटी की मांग को लेकर विरोध भी कर चुके हैं. मेघालय में जब इस साल चुनाव हुआ तो एक मांग यह भी थी कि एनजीटी ने जिस रैट होल तकनीक को बैन किया, उसको फ्लेक्सिबल बनाया जाए, ताकि जिनकी उससे आजीविका चलती है, वे कम से कम प्रभावित हों.
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इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट का क्या है फैसला
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के प्रतिबंध को रद्द कर दिया था. शीर्ष अदालत ने वैज्ञानिक तरीके से राज्य में कोयला खनन को अनुमति दे दी थी.
कई देशों में होती है रैट होल माइनिंग
रैट होल माइनिंग अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, एशिया में कई जगहों पर और यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया में भी होती है. मोबाइल फोन बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले खनिज कोल्टन-कोलम्बाइट टैंटलम का खनन विभिन्न अफ्रीकी देशों में अवैध रूप से रैट होल माइनिंग के जरिए किया जाता है. भारत में भी, रैट होल माइनिंग खनन के उन क्षेत्रों में सबसे आम है जहां खनिज कम गहराई पर पाए जाते हैं.
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