उत्तरकाशी हादसा: मजदूरों के लिए वरदान साबित हुई रैट होल माइनिंग, जानें इसका रेस्क्यू में क्या है रोल?

रैट-होल माइनिंग 4 फीट से कम चौड़ी जगह पर खुदाई करने की एक प्रक्रिया है. इसका इस्तेमाल आमतौर पर कोयले की माइनिंग में खूब होता रहा है. झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर पूर्व में रैट होल माइनिंग जमकर होती है.

उत्तरकाशी हादसा: मजदूरों के लिए वरदान साबित हुई रैट होल माइनिंग, जानें इसका रेस्क्यू में क्या है रोल?

रैट माइनर्स 800MM के पाइप में घुसकर ड्रिलिंग की.

खास बातें

  • NGT ने 2014 में रैट होल माइनिंग पर लगाया था बैन
  • मेघालय में बेरोकटोक जारी है रैट-होल माइनिंग
  • 12 रैट होल माइनर्स को सिलक्यारा टनल भेजा गया
उत्तरकाशी:

उत्तराखंड की उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिलक्यारा टनल(Uttarkashi Tunnel Rescue Operation) में 17 दिन से फंसे सभी 41 मजदूरों को निकाल लिया गया है. मजदूरों के लिए रैट होल माइनर्स वरदान साबित हुए. मजदूरों और रेस्क्यू टीम के बीच 60 मीटर की दूरी थी. रैट माइनर्स (Rat-Hole Mining) ने सोमवार शाम से मैनुअली ड्रिलिंग का काम शुरू किया. 12 लोगों की टीम ने रातोंरात  58 मीटर की मैनुअल ड्रिलिंग पूरी कर ली. मंगलवार को 2 मीटर की मैनुअल ड्रिलिंग का काम पूरा किया गया. जब टनल के आर-पार पाइप पुश किया गया, तो NDRF की टीमें टनल के अंदर दाखिल हुईं. इसके बाद बारी-बारी से सभी मजदूरों को बाहर निकाला गया.

चुनौतीपूर्ण रेस्क्यू ऑपरेशन के आखिरी फेज में 25 टन की ऑगर मशीन के फेल हो जाने के बाद फंसे हुए मजदूरों को निकालने के लिए सोमवार से रैट-होल माइनर्स की मदद ली गई. रैट माइनर्स 800MM के पाइप में घुसकर ड्रिलिंग की. ये बारी-बारी से पाइप के अंदर जाते, फिर हाथ के सहारे छोटे फावड़े से खुदाई करते थे. ट्राली से एक बार में तकरीबन 2.5 क्विंटल मलबा लेकर बाहर आते थे. 

आइए जानते हैं क्या है रैट होल माइनिंग और ये कैसे करते हैं काम...

रैट-होल माइनिंग क्या है?
रैट-होल माइनिंग के मतलब से ही साफ है कि छेद में घुसकर चूहे की तरह खुदाई करना. इसमें पतले से छेद से पहाड़ के किनारे से खुदाई शुरू की जाती है. पोल बनाकर धीरे-धीरे छोटी हैंड ड्रिलिंग मशीन से ड्रिल किया जाता है. हाथ से ही मलबे को बाहर निकाला जाता है.

रैट-होल माइनिंग 4 फीट से कम चौड़ी जगह पर खुदाई करने की एक प्रक्रिया है. इसका इस्तेमाल आमतौर पर कोयले की माइनिंग में खूब होता रहा है. झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर पूर्व में रैट होल माइनिंग जमकर होती है. लेकिन रैट होल माइनिंग काफी खतरनाक काम है, इसलिए इसे कई बार बैन भी किया जा चुका है.

रैट-होल माइनिंग पर क्यों लगाया गया बैन?
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने साइंटिफिक नहीं होने के कारण रैट-होल माइनिंग पर 2014 में बैन लगा दिया था. लेकिन ये प्रक्रिया अभी भी बड़े पैमाने पर जारी है. पूर्वोत्तर राज्य में कई हादसों में माइनिंग करते वक्त रैट-होल माइनर्स की मौतें हुई हैं. 2018 में अवैध खनन (Illegal Mining) में शामिल 15 लोग बाढ़ वाली माइनिंग के अंदर फंस गए थे. दो महीने से ज्यादा समय तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान सिर्फ 2 लाशें ही बरामद की जा सकी. ऐसा ही एक हादसा 2021 में हुआ. 5 माइनर्स बाढ़ वाली माइनिंग में फंस गए. रेस्क्यू टीम ने एक महीने तक कोशिश की और ऑपरेशन बंद करने से पहले 3 शव पाए गए थे. रैट होल माइनिंग से पर्यावरण प्रदूषण को भी जोड़ा जाता है.

क्या कहते हैं अधिकारी?
हालांकि, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के सदस्य रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन ने रैट होल माइनिंग को बैन किए जाने को लेकर सफाई दी है. उन्होंने कहा, "नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने 2014 में कोयला खनन के लिए इस तकनीक पर प्रतिबंध लगा दिया था. लेकिन यह एक ऐसी स्किल है, जिसका इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन साइट पर किया जाता है. ये प्रक्रिया हमेशा आसान नहीं होती. लेकिन मुश्किल स्थितियों में इसका इस्तेमाल किया जाता है. टनल में रैट होल माइनर्स एक घंटे तक काम करते थे और फिर बाहर आ जाते थे. वे टेक्निशियन हैं और मजदूरों को बचाने के लिए उनकी स्किल का इस्तेमाल किया गया है."
 

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माइनिंग राज्य सरकार के लिए राजस्व का एक प्रमुख स्रोत
हालांकि, माइनिंग राज्य सरकार के लिए राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है. मणिपुर सरकार ने एनजीटी के प्रतिबंध को यह तर्क देते हुए चुनौती दी है कि इस क्षेत्र के लिए माइनिंग यानी खनन का कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है. 2022 में मेघालय हाईकोर्ट की ओर से नियुक्त एक पैनल ने पाया कि मेघालय में रैट-होल माइनिंग बेरोकटोक जारी है.

उत्तरकाशी रेस्क्यू ऑपरेशन
टनल में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए अमेरिकी ड्रिलिंग मशीन भी मलबे को काट नहीं पाई. जिसके बाद मैनुअल ड्रिलिंग के लिए इस गैरकानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल करना पड़ा. कुल 12 रैट होल माइनर्स को दिल्ली से सिलक्यारा टनल भेजा गया है. हालांकि, उत्तराखंड सरकार के नोडल अफसर नीरज खैरवाल ने साफ किया है कि लाए गए लोग रैट होल माइनर्स नहीं, बल्कि टेकनीक के एक्सपर्ट हैं.

एक्सपर्ट में एक राजपूत राय ने समाचार एजेंसी PTI को बताया कि एक आदमी ड्रिलिंग करता है, दूसरा मलबा इकट्ठा करता है. तीसरा उसे बाहर निकालने के लिए ट्रॉली पर रखता है. हाथ से ही खींचकर मलबे को फेंका जाता है.

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