
सुप्रीम कोर्ट ने आज एक अहम फैसले में कहा कि किसी के लिए ' नपुंसक' जैसे शब्दों का इस्तेमाल खुदकुशी के लिए उकसाना नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने ससुराल वालों के खिलाफ खुदकुशी के लिए उकसाने की FIR रद्द कर दी और मद्रास हाईकोर्ट का फैसला पलट दिया. सुप्रीम कोर्ट ने पति के ससुरालवालों के खिलाफ IPC की धारा 306 के तहत खुदकुशी के लिए उकसाने के मामले को खारिज कर दिया. अदालत ने फैसला सुनाया कि वैवाहिक विवाद के बाद अपनी बेटी (मृतक की पत्नी) को मायके ले जाते समय उसे आपत्तिजनक भाषा में 'नपुंसक' कहना उकसाने के बराबर नहीं है. पति का सुसाइड नोट मिलने के बाद उसके ससुराल वालों के खिलाफ FIR दर्ज की गई, जिसमें उसने अपने ससुराल वालों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था और कहा था कि उसकी पत्नी को मायके ले जाते समय उसे नपुंसक कहा था.
मद्रास हाईकोर्ट ने ससुराल वालों के खिलाफ FIR को खारिज करने से इनकार कर दिया था. हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने कहा कि सुसाइड नोट में प्रत्यक्ष रूप से उकसाने या लगातार क्रूरता का संकेत नहीं दिया गया है. केवल आहत करने वाली टिप्पणी (जैसे "नपुंसक") उकसाने की पुष्टि नहीं करती है. पति को कथित रूप से अपमानित किए जाने के लगभग एक महीने बाद आत्महत्या की गई.
इस बीच की अवधि में मृतक और आरोपी के बीच कोई संपर्क नहीं था. सुसाइड नोट से यह साबित नहीं होता कि आरोपी ने मृतक को उकसाया या कोई लगातार क्रूरता या उत्पीड़न किया गया, जिससे आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध बनता हो. केवल उत्पीड़न के आरोपों के आधार पर और वह भी एक महीने पहले, जबकि इस बीच अपीलकर्ताओं की ओर से किसी भी तरह का कोई संपर्क नहीं था. घटना के समय तक जिसके बारे में कहा जा सकता है कि मृतक ने आत्महत्या की है या उसे मजबूर किया है, अपराध नहीं बनता है. इरादे का अनुमान नहीं लगाया जा सकता, लेकिन यह स्पष्ट रूप से मौजूद और दृश्यमान होना चाहिए, जो वर्तमान मामले में गायब है. इसमें किसी व्यक्ति को उकसाने की मानसिक प्रक्रिया शामिल है और अपीलकर्ताओं की ओर से किसी सकारात्मक कार्य के बिना, जिसे आत्महत्या करने के लिए उकसाना या सहायता करना कहा जा सकता है अपराध के तत्वों को मौजूद नहीं कहा जा सकता है.
धारा 306 के तहत पहली आवश्यकता के रूप में किसी व्यक्ति द्वारा आत्महत्या करना है, लेकिन इस तरह के कृत्य के लिए उकसाने के लिए, जो कि आवश्यक है, तत्व धारा 107 IPC में पाए जाने चाहिए. धारा 107 आईपीसी के तहत उकसावे की आवश्यकता उकसाना है. दूसरा, खुद या किसी अन्य व्यक्ति के साथ मिलकर ऐसी कोई चीज या कार्य करने की साजिश में शामिल होना या उस साजिश के अनुसरण में कोई कानूनी चूक और तीसरा, जानबूझकर किसी कार्य या उस चीज को करने में कोई अवैध चूक करना.
इस अदालत के कई फैसलें में यह स्थापित है कि धारा 306 आईपीसी के तहत अपराध के आवश्यक तत्व हैं (i) उकसाना; (ii) मृतक को आत्महत्या करने के लिए सहायता करने और उकसाने का अभियुक्त का इरादा. केवल इसलिए कि अभियुक्त का कृत्य मृतक के लिए अत्यधिक अपमानजनक है, अपने आप में आत्महत्या के लिए उकसाने का गठन नहीं करेगा. अपीलकर्ताओं के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले को खारिज कर दिया.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं